सुना तो सिर्फ दिल का
मेरा जन्म 22 फरवरी को हुआ । मैं दूसरे नम्बर पर थी।
बहन के एक साल बाद ही मेरे आगमन से कोई ज्यादा खुशी नहीं हुई थी मेरे परिवार को।और फिर मेरे बाद दो और बहनें , तब एक भाई। मम्मी भी नौकरी में थे और दादी का परिवार भी बड़ा था ।तो मम्मी की बेटी तो मेरी बड़ी बहन ही बन कर रही और मैं बुआ और चाची की बेटी बन गई ।
घर में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था तो सहेलियों की जान थी मैं। किसी के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार।
सभी अध्यापकों की चहेती ,पढ़ाई में अव्वल, राष्ट्रपति सजींवा रैडी से सम्माननित , हर काम में नम्बर वन , स्टेज की जान , खेलों में भी नम्बर वन तो घर कम और बाहर ज्यादा रहती थी ।
इस तरह धीरे धीरे अपने पापा के बहुत करीब होती गई ।
वो एक दुकानदार थे , भाई छोटा था तो पापा का बेटा बन गई ।उनकी दुकान सभांलना , ग्राहक देखना सब करने लगी ।अपने भाई को बेस्ट स्पीकर बनाया।बहनों के साथ खडी़ रही ।हर समय व्यस्थ ,भाग दोड़ और हल्की मुस्कान।
जल्दी ही सरकारी नौकरी भी लग गई । मात्र 21 साल में खूबसूरत नहीं मानते थे सब मुझे क्योंकि मेरी बहनें मुझसे ज्यादा खूबसूरत थी । लेकिन आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा था । तो सुंदरता छलकने लगी चेहरे से और नौकरी लगते ही रिश्ते आने लगे ।
एक बेहद खूबसूरत लड़का मेरी बुआ के पास नौकरी के लिए आया । मेरी बुआ ने उसी से मेरे रिश्ते की बात चला दी । वो भी सरकारी नौकरी में था। मेरे लाख मना करने के बावजूद भी मेरे पापा का वास्ता देकर ,जिनको और भी तीन बेटियों की शादी करनी थी मेरी शादी एक बहुत बड़े परिवार में कर दी गई।वो परिवार सामाजिक,आर्थिक रूप से बहुत पीछे था ।
पर एक हौसला था कि हां मैं सब ठीक कर लूंगी___
हर कदम पर पूरे परिवार के साथ खडी़ रही__
पर मैने भी हिम्मत नहीं हारी ।एक साल बाद ही बेटी आ गई । उसके दो साल बाद बेटा । दूर गांव में नौकरी , तीन जेठ जेठानी , तीन ननद जीजा ,सास ससूर का बड़ा परिवार और उसके साथ नौकरी और दो छोटे बच्चे ।
ससूराल पक्ष से किसी भी तरह का कोई साथ नहीं मिला__
फिर भी मैंने शादी के बाद तीन विषयों में एम ए किया और मेरठ यूनिवर्सिटी में टॉप किया । फिर अपने डिपार्टमेंट में एक बेस्ट एंकर के रूप में जानी जाने लगी।
स्कूल में बच्चों की फेवरेट। हर मंचों पर जाने लगी।
फिर बेटी के जोर देने पर एक बार फिर से जंग लगी डायरियों को खोला झाड़ा और लिखना शुरू किया।
अखबारों में छपने लगी , मंचों पर जाने लगी, घर में रोका गया। पर मैंने किसी की परवाह नहीं । घर के लोगों को कुछ खास पसंद नहीं था यह सब। पर मैंने तो आगे बढ़ने की ठान ही ली थी ।अपने लिए एक आसमान चुना था ।
बस अब पंखों को जान देना बाकी था ।अपने बेटे और बेटी को भी स्टेट में एक बेस्ट स्पीकर बनाया …सर्वगुण संपन्न ।
बच्चें,भाई,और फिर पति भी मेरे जूनून के सामने झूक गये और मेरा साथ देने लगे । तो इस मुकाम तक पहुंच ही गई ।पर अभी तो सफ़र शुरू हुआ है ।अभी मंजिल बाकी हैं।
बेटी को इंजीनियरिंग करवाई और वो सिंगापुर में सेटल है। बेटा भी इंजीनियरिंग कर चुका है । अपनी शर्तों पर अपने हिसाब से जीवन में अपने रास्तों को चुना और उन पर बेधड़क चली, पूरे जूनून के साथ । पूरे सफ़़र में मेरे शिव अगर मेरे साथ ना होते तो शायद कुछ नहीं होता ।
क्योंकि
सलीके से बहुत हमने हमारे गम़ संभाले हैं
हमारे दिलनशीं अहसास के तेवर निराले हैं।
सोनिया अक्स
व्याख्याता एवं साहित्यकार
एमए (अंग्रेजी, हिंदी और आर्थिकशास्त्र)