संवत्सर के नये सृजन का
संवत्सर के नये सृजन का
प्राण प्राण वन्दन अभिनन्दन।।
पीत पर्ण पर नन्ही कोपल,
मन मन को आह्लादित करती।
घनी अमा से उतरी किरणें,
जन जन को संबोधित करती।
पांखुर पांखुर गीत लिखें
तितली फूलों का मधु रंजन।।१।।
सुनहली शाटिका धृता पर
कुंतल बीच पलाश सिंदूरी।
कर्णसुसज्जित पारिजात ज्यूं
ओढ़ लालिमा लता अंगूरी ।
बेला और चमेली पहने
शतदल शत सहस्रअनुवर्तन।।२।।
हृदय धरातल पर सपनों का
सुरभित सुषमित राग अंकुरण।
सुमन रची कलिका जिज्ञासा
लिखती सुन्दर जीवन दर्शन।।
खिलने मुरझाने के सच में
मुस्काते जीना शिव अर्चन।।३।।
द्वार कलश पर सजे हुए से
नव संकल्प आम्रपल्लव के।
बन्दनवारों की डोरी में
बांधे तप संयम उत्सव के।
तपोपूत साधन प्रयास से
सुरभित जग हो चंदन चंदन।।४।।
नवधा भक्ति की नव शक्ति
नव धारायें समृद्धि की
नवल सृष्टि की नवग्रहों की
मैत्री हो रिद्धि-सिद्धि की
हो जाये अभिराम जगत में
तरल भाव का मृदुल संचरण।।५।।
डॉ रागिनी भूषण
शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड