श्रम शक्ति

श्रम शक्ति

मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं
मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं
पेट मेरी भी भरे और सबकी..
फिर कहाँ शिकायत, किसी से हुज़ूर है…

मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं…..
मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं….

भूख से लड़ता, प्यास से लड़ता
सर्दी गर्मी और बरसात से लड़ता
हालात से लड़ता, ज़ज़्बात से लड़ता
लड़ता धूल, मिट्टी और पहाड़ से लड़ता
भत्ता, सत्ता और उन्मादी जत्था से लड़ता
जीने के लिए जीवन के ही व्यहार से लड़ता
पर……., पर, खुद के किरदार के लिए लड़ता
उचित सम्मान और व्यहार के लिए लड़ता हूँ

मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं…..
मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं….

किस्मत से मजबूर नहीं
विश्वास खुद पर रखता हूँ
सपनों के आसमान में जीता हूँ,
उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ।
“दो वक्त की रोटी”……..के खतिर
अपने स्वभिमान को नहीँ बेचता हूँ

मज़दूर हूँ, मजबूर नहीं…..
मेहनत करता हूँ, क़सूर नहीं….

नदियों पर बांध बनाता
रेल की पटरियाँ बिछाता
‘श्रम शक्ति’ के हम मज़बूत
कल कारखाने, भवन बनाता
पर्वतों में रास्ता, खाने को पास्ता
फिर क्यों अपना जीवन सबसे सस्ता..?
देश की उन्नति हम, राज्य की प्रगति हम
मेहनत के बदले दो वक्त की रोटी ही तो हम चाहते
फिर कहो एक दिन ही क्यों हम “मज़दूर दिवस” मनाते…?
फिर कहो एक दिन ही क्यों हम “मज़दूर दिवस” मनाते…?

अजय मुस्कान
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

0
0 0 votes
Article Rating
1 Comment
Inline Feedbacks
View all comments