शिक्षा – क्या और क्यों
इसी वर्ष जनवरी के महीने में एक अन्तरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस के दौरान नागालैंड के राज्यपाल पी बी आचार्य को सुनने का मौका मिला । अपने संभाषण के दौरान उन्होंने जो एक बहुत गूढ बात कही वो ये थी
कि ” शिक्षित वो नहीं जिसके हाथ में सर्टिफिकेट का भंडार हो बल्कि शिक्षित वो है जिसके हाथ में हुनर हो । “ देखा जाए तो बात सही भी है कि शिक्षित व्यक्ति यदि बेरोजगार है तो वह देश के लिए बोझस्वरूप है, जबकि कम
शिक्षित या अशिक्षित भी यदि हुनरमंद है और आत्मनिर्भर है तो वह कई शिक्षितों से बेहतर है । दरअसल शिक्षा का सीधा संबंध व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास और जीवन मूल्य से है । आज हर गली मोड़ पर स्कूल खुल चुके है । हर शहर में सरकारी और गैर सरकारी या प्राइवेट अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की फौज सी है फिर भी समाज की जड़ों से नैतिकता और मूल्य के बीज खत्म होते जा रहे है । फिर आखिर इन स्कूलों के होने का औचित्य क्या है ?
एक तरफ वे विद्यालय हैं जिन पर सरकार करोड़ों खर्च कर रही है और दूसरी ओर वैसे प्राइवेट विद्यालय जो समाज के धनाढ्य वर्ग से करोड़ों की फीस लेते है शिक्षा के नाम पर । फिर भी समाज में पढ़े-लिखे वैसे व्यक्ति की कमी महसूस हो रही है जिसमें मानवीयता हो । शिक्षा मशीन रूपी मानव का यानी रोबोट का निर्माण करे तो फिर समाज के लिए वो उपयोगी नही रह जाता है । एक सभ्य समाज की जरूरत मानवीय मूल्य और संवेदना से ओतप्रोत मनुष्य का मौजूद होना है ।
ग्रामीण परिवेश की औरतें जिन्होंने परिस्थिति वश विद्यालय का चेहरा तक नही देखा है वो भी यदि जागरूक है और अपनी जिंदगी की समस्याओं को सुलझाना जानती है, बच्चों का परवरिश करती है साथ ही उन्हें शिक्षित भी करती है तो सही अर्थों में वो महिलाएँ शिक्षित ही हैं ।
हम सभी भ्रूण हत्या के दुष्परिणामों से परिचित हैं । प्राय: यह कहा जाता है कि यह समस्या शहरी क्षेत्रों में और शिक्षित समुदाय में ज्यादा है । फिर भला शिक्षा के मायने क्या रह जाते हैं ?
दरअसल शिक्षा और जागरूकता दोनो ही एक सापेक्ष शब्द है जो एक दूसरे के साथ ही जुड़कर सार्थक होते है । जरूरी है हर व्यक्ति की आँखें खुली हों, स्वतंत्र रूप से सोच विचार कर सके, सही गलत की पहचान हो उसे और वो फैसले लेने में सक्षम हो । तभी कहा जा सकता है कि अमुक व्यक्ति शिक्षित है ।
ये विडंबना ही है और शर्म की बात भी कि इस देश में शौचालय की अनिवार्यता और स्वच्छता के लिए भी लोगों को दबाव देकर सिखाना बताना पड़ता है । फिर किस मुँह से हम विश्व के समक्ष विश्वगुरू होने का दंभ भरते हैं । देश का हर व्यक्ति शिक्षित तभी कहलाएगा जब वो जागरूक भी हो । अपने कर्तव्यों के प्रति ही नहीं अपने अधिकारों के प्रति भी ।
अक्सर हम दूसरे देशों की व्यवस्था की प्रशंसा करते नहीं अघाते । उनकी उन्नति हमारे लिए ईष्या का विषय होती है । पर हम ये भूल जाते है कि वे देश अपने शिक्षित जनसमुदाय की बदौलत सफलता के सोपान पर हैं । पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी जागरूकता, मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी आस्था और एक नागरिक के तौर पर अपने दायित्व निर्वहन के प्रति उनकी ईमानदारी ही उनके देश को प्रगतिशील देश की श्रेणी में ला खड़ा करता है । किताबों के बोझ से शिक्षा का मापदंड तय नहीं होता बल्कि सकारात्मक सोच की दिशा और कर्मठता ही व्यक्ति को साक्षर साबित करती है और समाज में सम्मान भी दिलाती है ।
आए दिनों उच्च पदों पर कार्यरत अधिकारी के तनाव के दवाब में आकर आत्महत्या करने की खबर समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती हैं । ऐसी घटनाएँ हमें सोचने को विवश करती हैं । वैसे शिक्षित होने का क्या फायदा जब व्यक्ति अपने जीवन के तनाव को संभाल न सके । शिक्षा तो संबल है, ताकत है । यह एक ऐसा आभूषण है जिसके कारण जानवरों और मनुष्य में फर्क देखा जाता है । इसलिए आज के भागते दौड़ते वक्त के परिप्रेक्ष्य में यह समझने की जरूरत है कि शिक्षा व्यक्तित्व को मजबूती प्रदान करने की चीज है न कि सर्टिफिकेट की दिखावटी कमाई करने की चीज ।
डॉ कल्याणी कबीर
वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद