शत शत नमन अमर सुभाष

महानायक

जिस समय महात्मा गांधी अहिंसा के ध्वजवाहक बन सारे विश्व में चर्चा के केंद्र बिंदु बने हुए थे, ठीक उसी वक्त गुलामी की जंग छुड़ाने के लिए साम्राज्यवादियों को झुलसा देने वाली आंच की आवश्यकता का अनुभव करनेवाली उग्र विचारधारा का समर्थन करने वाले सुभाषचंद्र का राष्ट्रीय आंदोलन के क्षितिज पर होना ही एक अभूतपूर्व घटना है।

नेताजी का साहस असीम था। आजादी के लिए उन्होंने आधे विश्व की ख़ाक छानी। उन्होंने लगभग पूरे यूरोप का भ्रमण किया था परन्तु नेताजी विश्व की परिक्रमा पर निकलने वाले कोई परिकथा के राजकुमार नहीं थे, बल्कि अपने समय के सबसे विकट स्पर्धा – आई. सी. एस. की मेधा सूची में चतुर्थ स्थान प्राप्त करने के बाद भी उस शानदार एवं प्रतिष्ठित नौकरी का त्याग कर उन्होंने देश सेवा का दुरूह मार्ग को चुनना पसंद किया। वह चाहते तो ऐसो- आराम की ठाठ वाली जिंदगी जी सकते थे।

सुभाषचंद्र बोस के समूचे व्यक्तित्व पर ‘स्वामी विवेकानंद जी’ के साहित्य का प्रभाव था, जिसके कारण उनके भीतर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। नेताजी के समूचे जीवन से हमें दो बातें अवश्य सिखनी चाहिए, एक तो यह कि सुभाषचंद्र बोस का बहुत ही अमीर परिवार की पृष्ठभूमि से आते थे, फिर भी वह कभी भी उस ऐश्वर्य का आनंद नहीं लेना चाहा। उन्होंने स्पष्ट रूप से देखा कि उनके चारों ओर क्या हो रहा था और उन्होंने इसके खिलाफ लड़ने का फैसला किया। दूसरे, जब उन्होंने आईसीएस परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च पद की सरकारी नौकरी को ठुकरा कर देश सेवा के मार्ग को चुनने का फैसला लिया तो यह सिद्ध होता है कि उन्होंने अपने लक्ष्य को क्रिस्टल की तरह स्पष्ट कर रखा था। एक बात जो मैंने नेताजी के विचारों से सिखा कि एक बार उद्देश्य तय हो जाए तो फिर कभी कोई समझौता मत करो। कुछ भी हो जाए वह लक्ष्य हासिल करना ही है। किसी के सामने अपने निजी स्वार्थ के लिए अनावश्यक झुको मत।

सुभाषचंद्र बोस के पिता ने एक बार उनसे कहा था कि ‘सुभाष, मुझे उम्मीद है कि तुम भारत के गैरीबाल्डी (जनरल, राजनेता और राष्ट्रवादी जिन्होंने इटली के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई) बनोगे।’ लेकिन आज के वर्तमान समय में हम अधिकांश भारतीय ऐसा दृष्टिकोण नहीं रखते है, हममें उस दृष्टिकोण की कमी है, हम देश के लिए सपना नहीं देखते हैं, बल्कि हम अपने लिए सपना देखते हैं, आज हम एक स्थिर जीवन की कल्पना करते हैं और समाज और देश की समस्याओं से अपने को एवं अपने घर के सदस्यों को अलग रखने की चेष्टा करते हैं तथा अपनी क्षमता से अधिक समाज में अपने को संपन्न एवं सक्षम दिखलाने में व्यर्थ परेशान रहते हैं। पश्चिमी सभ्यता के फैशनों को अपनाने के लिए अधिक से अधिक आतुर रहना और अपनी सभी सनातन संस्कृतियों को ठुकरा कर अपने को आधुनिक दिखाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। लेकिन सुभाष चंद्र बोस सर्व-सुविधा संपन्न होने के वावजूद सब कुछ ठुकरा कर ब्रिटिशों के खिलाफ न केवल उनको बाहर निकालने के लिए जंग लड़ा था बल्कि तत्कालीन सांस्कृतिक परिवेश में भी भारतीय संस्कृति को भी छान लिया, परन्तु भारत की वर्तमान पीढ़ी आज ‘फटी हुई जींस पेंट’ पहनने की प्रवृत्ति में ही व्यस्त हैं।

आज देश के सामने इतिहास का सबसे बड़ा संकट है। आज़ादी के बाद से ही विभिन्न दलों ने सांप्रदायिक, क्षेत्रीय और जातिवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया है, जो आज भारत के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन गई हैं। कुछ ही लोगों के हाथों में आर्थिक सत्ता व संपदा सिमट गई है। बढ़ती विषमता के कारण देश में असंतोष खदबदा रहा है। आज ही यह खबर दिखाई गयी है कि देश के 1% व्यक्ति के पास देश की 73% संपत्ति संगृहीत है।

बेशक दुनिया की तरह भारत में भी हम सच्चे नेतृत्व के अभाव पर खेद जताते हैं। आज साझे हित की कीमत पर स्वहित सर्वोपरि हो गया है। उस समय भी ऐसे ही उपद्रवी समय में, सुभाषचंद्र बोस अपने योग्य नेतृत्व से स्त्री-पुरुष के क्षुद्र मतभेदों से ऊपर उठकर आज़ादी के लिए लड़ने हेतु प्रेरित कर पाए थे।

“……..ऐसा करते हुए हमें नेताजी के शब्द याद आएंगे : व्यक्ति के जीवन का भारतीय इतिहास की मुख्यधारा से मेल होना चाहिए। राष्ट्रीय जीवन और व्यक्तिगत जीवन पूरी तरह मिल जाना चाहिए। किसी की भी तकलीफ अपनी तकलीफ और किसी का भी गौरव खुद का गौरव लगना चाहिए। वे सारे लोग जिन्होंने भारत को मातृभूमि स्वीकार किया हैं या वे सारे जिन्होंने इसे अपना स्थायी घर बना लिया हैं वे मेरे भाई हैं….” (1926, मांडले जेल में लिखा वक्तव्य)।

धार्मिक प्रतीकों को राजनीतिक उद्देश्य से इस्तेमाल करने से उनका इनकार कर देने की उनकी प्रवृत्ति ही उनके करिश्माई व्यक्तित्व की पहचान थी और यही कारण है कि सारे समुदायों में उनके प्रति जबर्दस्त आकर्षण था और आज भी हैं। हमें फिर से वही समाज बनाने के लिए खुद को समर्पित करना चाहिए जो नेताजी बनाना चाहते थे- ऐसा समाज जो हर तरह के बंधनों से मुक्त हो।

यही उनके लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

डॉ नीरज कृष्ण
वरिष्ठ साहित्यकार
पटना, बिहार

 

नेताजी को नमन

प्यारे नेताजी सुभाष को
शत-शत नमन हमारा …. ।
दुबारा एक चाहिए नेता जन-जन का प्यारा ।।

जो सोना नहीं, चांदी नहीं, खून मांगते थे,
आवाम में आज़ादी का जुनून मांगते थे,
वैसी ही ललकार, और वह
जय ‘जय-हिन्द’ का नारा …. ।
दुबारा एक चाहिए नेता जन-जन का प्यारा ।।

फ़ौज वही आज़ाद-हिन्द सी,
फ़ौजी के वैसे अरमान,
जिसे याद करता है सब दिन
अपना सारा हिन्दुस्तान,
जन-नायक फिर वही,
पुनः वैसा ही एक इशारा …. ।
दुबारा एक चाहिए नेता जन-जन का प्यारा ।।

पैनी दृष्टि वही, वैसे ही
दृढ़ निश्चय वाले मन-प्राण,
जिससे फूले-फले सर्वदा
यह स्वतंत्रता का वरदान,
वही वीरता, वही बुद्धि,
वह एक समर्थ सहारा …. ।
दुबारा एक चाहिए नेता जन-जन का प्यारा ।।

कहाँ गई वह अमर चेतना,
कहाँ मिला इसका संधान ?
देश-भक्ति वह मूर्त्त,
कहाँ है अद्भुत बलिदानी इंसान ??
जिसके आगे नत-मस्तक है
भारतवर्ष हमारा ….. ।
दुबारा एक चाहिए नेता जन-जन का प्यारा ।।

 

कमल कान्त पाठक
वरिष्ठ साहित्यकार
खडगपुर, पश्चिम बंगाल

अनमोल उपहार-डायरी

श्रीमती भारती चौधरी रानी झांसी रेजीमेंट की पहली महिला लेफ्टिनेंट थी । इन्होंने 17 साल की उम्र में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा बनाई गई रानी झांसी रेजिमेंट की कमान संभाल ली थी । उन्होंने आशा शान की सुभाष डायरी में नेताजी के साथ बिताए गए अपने अनमोल स्मृतियों को लिखा है । यह पुस्तक आशा शान की सुभाष डायरी नाम से आजादी की लड़ाई का जीवंत दस्तावेज है । आज सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती पर मैं यह डायरी पुनः पढ़ रही थी जिसे श्रीमती भारती चौधरी ने 2011 में 25 अगस्त को अपने हाथों से मुझे दिया था। यह मेरा सौभाग्य है कि उनसे बहुत घनिष्ठ पारिवारिक संबंध बन गए थे और नेताजी के विषय में बहुत सारी बातें उनके मुंह से सुनने को मिली थी।श्रीमती भारती चौधरी के नेताजी के साथ बिताए गए वर्ष धर्मयुग ने भी धारावाहिक के रूप में छापा था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है कि सन 1945 में इरावदी तथा छिंद विन नदी में जब बाढ़ आई हुई थी और बर्मा के जंगलों में आई एन ए के 500 सैनिक मारे गए थे उन दिनों भारती चौधरी जी के पिता आनंद मोहन सहाय नेताजी तथा अन्य आजाद हिंद के साथियों के साथ मनीपुर में थे । उन दिनों खाने-पीने की भी कमी थी और यातायात की भी सुविधा नहीं थी लेकिन अपने देश के प्रति प्यार और भारतीय सैनिकों के जोश को बनाए रखने के लिए आनंद मोहन सहाय ने एक देश भक्ति कविता लिखी थी जिसे आजाद हिंद फौज के जवान गाकर सुनाते थे।

हिंद सिपाही वीर बन ,अब भूल करना छोड़ दो ।
निज देश के लिए लड़ो ,आपस का लड़ना छोड़ दो। हम तुम्हारे भाई हैं और तुम हमारे भाई हो ,
आ वैसे भी गले मिले , दुश्मन का दामन छोड़ दो । मिलकर हम तुम एक हो ,दुश्मन पर धावा बोल दो। निज देश को आजाद कर , दुश्मन की ताकत तोड़ दो । आओ हम सब साथ हैं, फिर साथ-साथ हम घर चलें,
ले देश का तिरंगा झंडा हिंद के जय बोल दो।

श्री आनंद मोहन सहाय की स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका थी । वे डॉ राजेंद्र प्रसाद के निजी सचिव भी थें और साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी के साथ भी कुछ दिन रहें । गांधी जी के नेतृत्व में चल रहे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संबंध में प्रचार कार्य उन्होंने जापान में किया और जापान के प्रसिद्ध शहर कोबे को उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया । नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कलकत्ते से काबुल होकर जर्मनी जाने की और वहां से जापान बुलाने की योजना इनकी ही थी।

आज नेताजी की जयंती है मैंने उन्हें तो नहीं देखा है पर उनके द्वारा बनाए गए रानी झांसी रेजीमेंट की एक वीरांगना का आशीर्वाद जरूर पाया है।शत शत नमन।

डॉ जूही समर्पिता
प्रधानाध्यापिका डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
अध्यक्ष सहयोग(बहुभाषीय साहित्यिक संस्था)
जमशेदपुर, झारखंड

तुम अमर सदा सुभाष

तुमने त्याग तपस्या समर्पण से रचा इतिहास
स्वाँस के हर पल में था जय हिंद का नाद
था दृढ़ संकल्प केवल देश आजादी के लिए
सार्थक रहा जीवन तुम्हारा भारत माता के लिए
हूँकार तुम्हारी बिजली पूकार तुम्हारी युद्ध
युवा बुढे़ बच्चे नारी सेना सब जन थे तैयार
छेडीँ जंग आपने जाकर दूर देश जापान
लक्ष्य केवल एक आजाद भारत की थी माँग
विपरित परिस्थिति भी नही हिला पाई संकल्प
ना समझ पाये दुश्मन ना कर सके आंकलन
बूँद बूँद खून से उभरा था जन सैलाब
शत शत नमन तुम्हे है, हे वीर अमर पुरूष सुभाष
आज युवाओं को है सत्य अर्थ समझाना
त्यागतप संघर्ष सुविचार कीमत आजादी की बताना।

 

डॉ आशा गुप्ता
वरिष्ठ साहित्यकार और गायनेकोलॉजिस्ट
जमशेदपुर, झारखंड

 

हे महामानव

आज के परिवेश में, सर पर कफन बांधे, आजादी के इस दीवाने को भी, शायद करोड़ों बार ये सोचना पड़े, मैंने जान क्यों और किनके लिए दी, आह ये तो खुद ही खुद को गुलाम किये है बैठे और यूं ही रहना चाहते हैं, वतन की सोंधी मिट्टी की खूशबू जब इनकी शहीदी, रक्तशोणित, रूधीर की मजजाओं, से घुलमिल कर, मातृभूमि के लिए, दीवानेपन की सारी हदें पार कर, जब फना हो जातीं हैं न,….

तो, जंजीरों से बंधी भारतमाँ की हाथों में करोड़ों अरबों खरबों लालों की ताकत समा जाती है…और जननी जन्मभूमि के लिए मर मिटने के वास्ते, चहुदिशाओं से हम देंगे हम देंगे खून, सिर्फ और सिर्फ यहीं शब्द गूंजते हैं, जमीन आसमान एवं क्षितिज की सीमाओं के पार, अणु अणु, कण कण, को क्षण क्षण झंकृत करतें हैं, हैवानी नकारात्मक ताकतों को झकझोरते हुए उनका काम तमाम करने का हिम्मत और माद्दा रखते हैं….

ऐ फरिशते, तूने अपने जान की परवाह न करते हुए ताकतवर शक्तियों को बेजान कर दिया, ये तुम्हारी आत्म शक्ति की प्यासी आज ये धरित्रि… तुम्हारी एक झलक पाने को बेकरार सी, नत मस्तक, तुम्हारे चरण रज के तिलक को मस्तक पर सजाने को आतुर….वो सिंह गर्जना, जमीनों आसमान को हिलाने की, गुलामी की जंजीरों को तोडकर फेंकने की, अपनी छाती में करोड़ों के दर्द को अनुभव करने की, आंखों में दृष्टि में सच्ची रूहानियत की झलक दिखलाने की, मुस्कान की मधुरता, मानों सदियों के दर्द पर मलहम, हाथ उठे ऐसे कर्म के लिए कि हजारों को अपने कर्म सत्कर्मकरने की याद दिला जावे. और मस्तक और ललाट उदित होते सूर्य के अरूणाभ के संकल्प का तिलक दिग्दरशित हो दिग्विजय की पताका फहरावे और जन गन मन धुन हमारी धडकनों से प्रवाहित हो, शिराओं के कतरे कतरे में समाकर, ओज तेज से ओतप्रोत हो, भारत का मस्तक विश्व पटल पर हमेशा, सदैव ऊंचा करने के हम निमित्त हों…

हे भारत भूमि, हे मातृभूमि के अमर पुत्र.. हमारा कोटि कोटि नमन स्वीकार कीजिए, आपने तन मन धन जीवन, सर्वस्व की परवाह न करते हुए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया, ये राष्ट्र हमेशा आपका ऋणी रहेगा, आप सच्चे अर्थों में परम त्यागी, जीते जी वैरागी एवं महान आत्मा हैं ऐसे पुरुष (आत्मा) कालजयी होते हैं और सदा सर्वदा, जहां भी होते अपने परोपकारी ऊर्जा, सानिध्य एवं सकारात्मक प्रकंपन से मनुष्यता की सेवा कर ब्रह्मांड में अपनी ज्वलंत उपस्थिति दर्ज करा विश्व के लिए वरदान स्वरूप होतें हैं,

हे वीर हे धीर हे महामानव, हे महापुरुष आप जहां कहीं भी हो, आप हमसे किसी भी मायने में अलग नहीं है,आप हमारे प्राणों में रच बस गये हैं,हे देश भक्त शिरोमणि, आप हमारे ही हृदय में सदैव, सर्वोच्च आसन पर अनंत काल तक निवास करते रहेंगे, आपकी सच्चाई, हौसले, हिम्मत, ताकत, वतनपरस्ती, ईमानदारी, भेदभाव से परे अथाह सात्विक भाईचारे की प्रवृत्ति, मिलनसारिता को आज सारा भारतवर्ष तन मन से सहस्त्रों सलामी देता है, और जय हिंद की हर दिली जय-जयकार और एक ही पुकार हर दिशाओं से गुंज रही है.. और ये रत्न गर्भा धरित्रि आप रूपी अनमोल रत्न को ही धारण करने को अपना अहो भाग्य समझती है।

हे भारत के गौरव, हे दैदिपयमान सूर्य अपने ज्योतिपूंज की आभा से सदा अपने भारतवर्ष को आलोकित करें, आप सदा हमारे थें, हैं और रहेंगे.. और ये भारत वर्ष कल भी आपका था आज भी आपकी जय बोलता है आपके नाम से ही जोशो जूनून, यहां की लहु में दौडता है और आगे भी ये देश, आपकी एक ललकार और पुकार पर सर्वस्व न्योछावर करने को आतुर रहेगा, आपकी कुर्बानी भारत की हवाओं में खुशबु स्वरूप, समा, समाकर, सांस सांस में समाहित होकर, प्राण प्राण हो गया है और अब ये भारत और भारतीयों की जीवन शक्ति है और ये शक्ति रूपी खजाना, हम भारतवासी कभी… भी कदापि, खोना नहीं चाहेंगे……

मौजे जुनून था रग रग में
क्रांति की धार बह निकली
शोणित सिंधु माटी की कण कण में समाया
जंजीरों में जकड़ी भारत मां के
स्वांस में स्वांस आया
ये कौन खास आया ….
ये कौन खास आया…
देखो सु भाष आया
वो देखो शुभ आश आया
देखो सुभाष आया

जय हिंद जय भारत

 

बालिका सेनगुप्ता
साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

 


देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए

जागरण का गीत बन जले हमारी साधना में ,
सोच को पुनीत क्रांति की मशाल चाहिए,
जो झुका सके महान -शक्तियों को राह में ,
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

घिर रही थीं आंधियां,स्वदेश के विहान में ,
शृंखला में कैद थी,माँ भारती की चाहतें ,
स्वतंत्रता की ज्योति को नूतन प्रकाश चाहिए
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

जिसको न ग्राह्यथी कभी,दासता की सोच भी,
जिसकी दृढ़ पुकार में,था स्वाभिमान ,रोष भी,
फिर उसी पुकार में, उग्र ज्वाल चाहिए,
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

तुमने दी आवाज,सब चले ,मिला कदम -कदम,
गूंजे फिर’ जय हिन्द’ की पुकार ,बाजुओं में दम,
आज फिर आह्वान में,गर्जन कराल चाहिए,
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

नारीयों को मात -सम,गौरव दिया ,सम्मान भी,
नूतन, सृजन निर्माण का,सपना दिया, ललकार भी,
हौसलों में दम लिए ,वारिधि विशाल चाहिए
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

चाहिए भगत की सिंह -नाद जैसी गर्जना,
बस एक ‘साथ’ चाहिए, ह्रदय विशाल चाहिए
देश को सुभाष सा ही नौनिहाल चाहिए।

पद्मा मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

 

हुंकार भरी आज़ादी की

हुंकार भरी आज़ादी की
गोरों की बर्बादी की,
धूल चटाई उस योद्धा ने
“नेताजी”नाम दिया लोगों ने!!
“तुम मुझे खून दो
मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा”,
जन जन से आह्वान किया
आजाद हिन्द फौज बनाकर
दुश्मनों को फरमान दिया!!
वीरता जिनके रग- रग थी
देशभक्ति के गाते थे गीत
सपना बस तिरंगे की शान
आजादी ही उनकी मीत!!

अर्चना रॉय
साहित्यकार और प्राचार्या

रामगढ़

शत शत नमन

आज हम क्रांतिवीर, युग पुरुष, सच्चे देश भक्त, पथ प्रदर्शक सुभाषचंद्र बोस को शत शत नमन करते हैं ।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा बुलंद कर जन जन में चेतना की मशाल जलाने वाले, वक्त की पुकार सुन आजाद हिन्द फौज द्वारा स्वतंत्रता का बिगुल बजाने वाले हे सुभाष, तुम काल के किस कोण में खो गये ।
आज एक बार फिर तुम्हारे जैसे साहस, त्याग, बलिदान और निस्वार्थ सेवा की भारत माँ को ज़रूरत है।
हे क्रान्ति के देवता,व्यभिचार, बलात्कार, अहंकार, भ्रष्टाचार की बेडियों से मुक्त कराने आ जाओ।

 

सुधा गोयल ‘नवीन’
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर,झारखंड

 

न दें झूठी श्रद्वांजलि

न सेना था न ही था हथियार
न कोई संगठन न ही था कोई तलवार
दृढसंकल्प साहस था तलवार
स्वाभिमान उनका ढ़ाल
आजादी की आस में
देशप्रेम के खातिर स्व ही
बस यूँ ही अकेले निकल पड़े

भारतियों के भविष्य के लिए
अपना वर्त्तमान भविष्य सब भूल गये
वह सम्राज्य
जहां न होता था सूर्य कभी अस्त
जिसके अधीन था
स्वतंत्रता का दिवाकर हमारा
उस प्रकाश की तलाश में
बस यूँ ही अकेले निकल पड़े

उनके धमनियों में था दौड़ता
देशप्रेम बनकर लहू
अोजस्वी ललकार से
लाखों नर नारी के साथ से
किया हिंद फौज का निर्माण
‘जय हिन्द’ के नारों के साथ
लाखो उनके साथ चले पड़े
बस यूँ ही अकेले निकल पड़े

न झूठी पुष्पांजलि अर्पित कर
न रस्म अदायगी की श्रद्धांजलि
देना है तो दें सच्ची श्रद्धांजलि
चले उस राह पर जिस राह पर वह चले
उस क्रांति के अग्रदूत का क्रांति अभी भी है बाकी
ज़िस माँ भारती के आजादी के लिए
बस यूँ ही अकेले निकल पड़े

हम सब के अन्दर भी है एक सुभाष
बस देना है हमें एक आवाज
भूलना है अपना स्वार्थ
जगाना है अपना स्वाभिमान
आज भी माँ भारती जकडी है
जाति, सम्प्रदाय,धर्म , भ्रस्टाचार की बेड़ियों में
बस अपने हौसलो के साथ
बस यूँ ही अकेले निकल पड़े

अर्पणा संंत सिंह
संपादक एवं प्रकाशक
गृहस्वामिनी

जय हिंद!
जय हिंदी !!

सच में इतिहास जनता लिखती है न कि इतिहासकार। नेताजी का भारत की जनता में स्वीकृति और स्मरण इसका स्पष्ट उदाहरण हैं । नेताजी भारत के जीवंत यौद्धा है। भले ही षडयंत्रकारी परिस्थितियों में उनका अवसान करार दिया गया, पर उनकी पूरी जीवनी त्याग, बलिदान, बुद्धिमता, शौर्य से भरपूर रहा। उनके लिए राष्ट्र प्रेम और हित सर्वोच्च प्राथमिकता में सदैव शामिल रहा। उनके लिए पद, पैसा, सत्ता से पहले देश रहा। पर देश उनके साथ पर्याप्त न्याय करने में असफल रहा।

नेताजी भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपना नारा भी जय हिंद अपनाया। आजाद हिंद फौज के सेनानियों को भी वे हिंदी में संबोधित करते थे।

देश के इस महान सेनानी की जन्म जयंती पर शत शत नमन!
ईश्वर इस पुण्यात्मा को भारत भूमि में बार-बार अवतरित करें ।

जय हिंद!
जय हिंदी !!

डॉ जूही समर्पिता
प्रधानाध्यापिका डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
अध्यक्ष सहयोग(बहुभाषीय साहित्यिक संस्था)
जमशेदपुर, झारखंड

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