“लॉकडाउन के पश्चात रोजगार और व्यवसाय के नये अवसर”
“खेती न किसान को भिखारी को न भीख भली,
वनिक को वनिज न चाकर को चाकरी।
जीविकविहीन लोग सिद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सो ‘कहाँ जाइ का करी’।।”
तुलसीदास ने भले ही ये पंक्तियां सोलहवीं शताब्दी के परिस्थितियों को देखते हुए रचा हो किन्तु ये स्थिति आज भी हमारे सामने उतनी ही प्रासंगिक है। हमारे भारत देश का एक बड़ा सामाजिक वर्ग आज भी गाँवों और शहरों में जीवनयापन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित होकर जी रहा है। ऐसे समय में तत्कालीन वैश्विक महामारी जैसी समस्या किसी भीषण आपदा से किन्ही मामलों में कम नहीं। इन परिस्थितियों में सरकार द्वारा लिए गए ‘लॉकडाउन’ का निर्णय जनमानस में विषाणु के फैलने से रोकने में तो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है किंतु यह उन श्रमिकों के लिए किसी भी प्रकार से विभीषिका से कम नही जिनके जीवनयापन का मूल आधार दैनिक पारिश्रमिक हैं।
जिस प्रकार प्रत्येक घटना के दो आयाम होते हैं और दोनों परस्पर एक दूसरे के विपरीत होते हैं उसी प्रकार इस लॉकडाउन के भी दो पहलू हैं जो एक ओर तो आर्थिक स्तर पर अर्थव्यवस्था को पीछे धकेल कर आने वाले समय में महंगाई को आमंत्रित कर रहा है तो दूसरी ओर व्यापार क्षेत्र में नवीनीकरण का मार्ग खोलकर व्यापारिक वर्ग और आम श्रमिक वर्ग के लिए नए अवसर भी उत्पन्न करने वाला है। अतः वस्तुस्थिति को देखते हुए हमारे सामने जो अवसर प्रतीत हो रहे हैं वो निम्नलिखित हैं –
स्वच्छता से सम्बंधित व्यवसाय –
विषाणु संक्रमण के इस भयावह स्थिति ने आम जनमानस का ध्यान स्वच्छता की ओर तेजी से आकृष्ट किया है। ऐसी स्थिति में स्वच्छता से सम्बंधित उत्पादों का उत्पादन करने वाली कम्पनियों के उत्पादन में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। ज्ञातव्य है कि उद्योग कम्पनियों को अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होगी जिससे रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे।
तीव्र नवीनीकरण के लिए प्रतिस्पर्धा –
राष्ट्रीय तालाबंदी के कारण बन्द हो चुके उद्योगों को शुरू करने के पश्चात सभी कम्पनियों में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगने वाली है। साथ ही साथ उन उत्पादों की कम्पनियाँ जिनके पुराने संग्रह खत्म होने की कगार पर हैं वे भी अपनी स्थिति को पूर्व की भाँति बनाने के लिए जी तोड़ परिश्रम करेंगे। ऐसी स्थिति में सभी कम्पनियां स्वयं को विशिष्ट (ब्रांड) बनाने का पूरा प्रयास करेंगी जिससे न केवल श्रमिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की संभावनाएं हैं अपितु उनके पारिश्रमिक में भी वृद्धि की अपार संभावनाएं दिखती हैं।
व्यक्तिगत आवागमन के साधनों के उत्पादन व विपणन में वृद्धि –
यद्यपि सामाजिक दूरी के पालन का निर्देश विषाणु संक्रमण से सुरक्षा को ध्यान में रखकर दिया गया है तथापि उसके बाद भी मध्यम वर्ग सार्वजनिक आवागमन के साधनों में होने वाली भीड़भाड़ को लेकर आशंकित रहेगा एवं वह व्यक्तिगत साधनों पर ही ज्यादा विश्वास करेगा। ऐसी स्थिति में दोपहिये और चारपहिये साधनों के उद्योगों में रोजगार की संभावना बढ़ेगी।
डिजिटल क्रांति में रोजगार के अवसर –
हमारे औद्योगिक और शैक्षिक क्षेत्रों में आंकिकीकरण ( डिजिटलाइजेशन) की प्रतिष्ठा तो पहले से ही रही है लेकिन लॉक डाउन में इसने एक क्रांति के रूप में कार्य किया है। इंटरनेट के माध्यमों से होने वाली शैक्षणिक गतिविधियाँ निःसंदेह इसको भविष्य में भी बढ़ावा देने वाली हैं जिसके कारण इसके बाह्य एवं आंतरिक ज्ञान रखने वालों के लिए रोजगार के अपार अवसर दिखाई देते हैं।
सामानों की घर तक पहुँचाने सम्बन्धी व्यवसाय-
राष्ट्रीय तालाबंदी के दौरान सामान्य दिनचर्या के जैसे फल सब्जी और किराने के सामानों की घर तक पहुँच में बहुत वृद्धि हुई है एवं यह एक सफल व्यवसाय के रूप में उभरा है। ऐसे में इंटरनेट से जुड़ी हुई कई सारी बेबसाइट्स भी इस संदर्भ में काफी सक्रिय पाई गई हैं। इनके अलावा अतिसामान्य श्रमिक जो फुटकल खाद्यान सामग्री के आपूर्ति द्वारा अपनी जीविका चला रहे उनके लिए भी यह एक नया रोजगार सिद्ध हो सकता है।
लघु एवं कुटीर उद्योगों में रोजगार के अवसर –
तत्कालीन परिस्थितियों ने बड़े बड़े महानगरों के बढ़ती लोगों का आबादी एवं विशाल जनसमूह की ओर से लगभग मोहभंग सा हो रहा है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने घर से कम से कम दूरी पर रहना पसंद करेगा जिससे विपत्तिकाल में वह अपने परिजनों के साथ रह सके। तब वह जीविकोपार्जन के लिए कुटीर एवं लघु उद्योग आरम्भ करेगा जिसमें आम श्रमिक वर्ग को भी जीविका उपलब्ध होगी।
नए बाजारों को अवसर –
महानगरों से मोहभंग की स्थिति में लघु और कुटीर उद्योगों के बनाए गए नए सामानों के विक्रय के लिए छोटे छोटे स्थानों पर पनपे नए नए बाजारों को विस्तार मिलेगा। इसलिए यह भी रोजगार का एक अवसर हो सकता है।
उपरोक्त सभी बिंदुओं पर अध्ययन के पश्चात हम देखते हैं कि यदि एक ओर हम लॉक डाउन के कारण आर्थिक स्तर पर जूझ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर भविष्य को लेकर आशाएँ भी हैं। आने वाला समय हमें शैक्षिक, व्यवसायिक क्षेत्रों में रोजगार के कई सारे नवीन अवसर उपलब्ध कराने वाला है जिससे जीविकोपार्जन हो सकता है। ऐसे में मेरी स्मृति में अपनी ही दो पंक्तियाँ आती हैं –
“मनु धीर धरो अवसर देखो तुमको प्रकृति ने पाला है..!
जब रात भयावह हो, समझो अब सूरज उगने वाला है..!!”
आशुतोष तिवारी ‘आशू’
अध्ययनरत- परास्नातक हिंदी विभाग
गोरखपुर उत्तर-प्रदेश