मिटेगा कोरोना
कैसी हाहाकार मची है कैसा कहर ये ढाया है।
पूरी दुनियाँ त्रस्त हुई कोरोना ने दहलाया है।
अपने अपने घर में रहना बाहर नहीं निकलना है।
जंग शुरू महामारी से है देश से बाहर करना है।
दुश्मन ये कमज़ोर नहीं है मानवता का घातक है।
जात पांत से दूर ये वायरस इंसानों का पातक है।
छुआ छूत के संक्रमण से एक दूजे में आता है।
हाथ मिलाना गले लगाना इसको बड़ा सुहाता है।
नहीं बनी है कोई दवाई इसका कोई इलाज़ नहीं
कर देता तूफ़ान खड़ा प्राणो को हर ले जाता है।
इंसा नहीं वो काफ़िर है जिसने इसको ईजाद किया।
मानवता का घाती है वो विश्व मेरा बर्बाद किया।
कैसा किया सितम तूने कैसा मंजर बरपाया है।
देश शहर हो गली गली लाशों का ढेर बिछाया है।
मचा हुआ हड़कंप चहुँ दिशा इंसा भी लाचार हुआ।
इंसानी फ़ितरत ये कैसी मानवता व्यापार हुआ।
प्राणों का सौदागर तूने कैसा आविष्कार किया।
मानवता का दुश्मन बन कर इंसा का संहार क्या।
भारत में न टिक पायेगा खुद जड़ से मिट जायेगा।
धवस्त करेंगे मूल से इसको यहाँ ठहर नही पायेगा।
मणि बेन द्विवेदी
साहित्यकार
वाराणसी ,उत्तर प्रदेश