महामारी के दिनों में प्यार !
कुछ दिनों पहले एक खबर पढ़ी थी कि बिहार के सिवान के एक प्रेमी को मुंगेर में रहने वाली अपनी प्रेमिका याद आई तो वह लॉकडाउन को धत्ता बताते हुए पैदल ही निकल पड़ा मुंगेर की ओर। करीब तीन सौ किमी की पदयात्रा कर वह अपने गंतव्य तक तो पहुंच गया, लेकिन महबूबा के हाथों पड़ने की जगह पुलिस के हाथों पड़ गया। पुलिस ने उसे ठोक-ठाक कर क्वारंटाइन सेन्टर पहुंचा दिया है। उसकी बदनसीबी ने दुखी तो किया, लेकिन इस घटना ने मुझे बहुत पहले पढ़ी एक आयरिश लोककथा की याद दिला दी।
एक आयरिश युवक ने एक रात सपना देखा कि दस साल पहले सैकड़ो मील दूर अपनी ससुराल जा बसी उसकी बीमार प्रेमिका उसे लगातार पुकारे जा रही है। सुबह उठा तो उसका मन बहुत व्यथित था। उसने अपना घोड़ा खोला और उसपर कुछ ज़रूरी सामान लादकर चल पड़ा अपनी प्रेमिका के गांव। रास्ते में घोड़े का पैर टूटा तो पैदल यात्रा शुरू हुई। कई बीमारियों और मुश्किलों का सामना करते एक महीने बाद जब वह प्रेमिका के गांव पहुंचा तो पता लगा कि गांव में फैली महामारी में वह अपने पूरे परिवार के साथ महीने भर पहले ही गुज़र गई थी। गांव में उस महामारी के बाद कुछ ही लोग बच रहे थे। बहुत याचना के बाद उसके एक पड़ोसी ने युवक को कब्रिस्तान में उसकी क़ब्र तक पहुंचा दिया। शाम हो चुकी थी। युवक ने मोमबत्ती जलाई और प्रेमिका की कब्र से लिपटकर देर तक रोता रहा। वह रात उसने कब्र के पास जाग कर ही गुज़ार दी।
सुबह जब वह लौटने लगा तो उसके मन में अचानक ही यह संकल्प जगा कि वह अपना बाकी जीवन महामारी के शिकार लोगों की सेवा में अर्पित कर देगा। जिस गांव से उसे महामारी की खबर मिलती, वह भागकर पहुंच जाता। कई सालों तक उसने उन हज़ारों रोगियों की सेवा की जिन्हें संक्रमण के डर से उसके घरवाले भी त्याग चुके थे। अपनी इसी संकल्प-यात्रा में एक दिन वह खुद एक गांव में महामारी का शिकार होकर चल बसा। मरने के बाद उसकी जेब से एक चिट्ठी मिली जिसमें उसने अनुरोध किया था उसकी लाश को उसकी प्रेमिका के गांव वाले कब्रिस्तान में ही दफनाई जाय।कुछ लोगों ने ऐसा ही किया। उस दिन के बाद जब भी उस इलाके में कोई महामारी फैलती, लोग उसकी और उसकी प्रेमिका की कब्र पर जाकर मोमबतत्तियां जलाते और प्रार्थनाएं करते थे !
ध्रुव गुप्त
वरिष्ठ साहित्यकार
पटना, बिहार