भाग्यरेखा ने उकेरा
भाग्य रेखा ने उकेरा
स्वप्न रेशम रूप तेरा
ले रहा आकार अंतर
में सलोना रूप तेरा।।
मांगती रहती विधाता से
सुमन रस राग भीगे।
दे रहा प्रारब्ध ही यूं
हो सदय उपहार मेरा।।
पलक के आह्लाद पर है
वाणियों का मूक पहरा।
खिलखिलाती आ गयीं
खुशियां, ह्रदय का मार फेरा।।
अधर कोपल पर छलकता
है तेरे, पीयूष मेरा।
नयन से ही झांकता तेरी
मेरा मधुमय सबेरा।।
भित्तियों पर कामना की
थी सजाई चित्रशाला।
किलकती छमछमकती
हर सांस में उसका बसेरा।।
देख लेती आंख मूंदे
देह का गुलज़ार अपना।
अंक में लिपटा लिया मैंने
स्वयं का ही उजेरा।।
एक ही परिधि रचायी
लेख में हैं पुष्प सौरभ
तुझमें लय मैं हो गई हूं
प्राण का है प्राण घेरा।।
डॉ रागिनी भूषण
वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद
जमशेदपुर, झारखंड