फागुन आया
मह-मह मंजर महुआ ले
फागुन आया
सखि, फिर
बागों में वसंत हुलसाया!
धानी चादर ओढ़ कहीं
मटर सेम गदराया
सखि,फिर
बागों में वसंत हरषाया!!
पीक कूक डाली-डाली
बेदर्द दर्द सुलगाया
हे सखि,
फिर से वसंत भरमाया!!
पीली सरसों,मदभरे नयन
करता नर्तन संग पवन
मन मदन राग यह गाया
सखि,फिर
हिय मध्य वसंत कुछ गाया!!!
सखि,फिर
बागों में वसंत मुसकाया
फिर
बागों में वसंत हरषाया!!!
डॉ अरुण सज्जन
सह-प्राध्यापक
डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन
लोयोला स्कूल
जमशेदपुर, झारखंड