नारी !

नारी !

प्रेम और ममता की मूर्ति
त्याग और बलिदान का एहसास
निज आंचल में समेटे सारी धरती
सारा आकाश!
जिसकी आंखों में है करुणा
सहनशक्ति है जिसकी परिभाषा,
निराशा के तम की जो दूर करे
नारी ही है वो आशा!!
नारी!
पहचान है कोमल भावनाओं की
तो कभी कठोरता की
गर ये जननी है संसार की
तो वक़्त पड़े करती है संहार भी,
नहीं ये अबला
ना है लाचार,
ज़िद पर जब -जब आई है वो
क्या हुआ फिर
ये जाने सारा संसार!!
करो पूजा ऐ जग इसकी
इसकी महत्ता जानो तुम,
नारी से ही ये जग सुंदर है
ये जगजननी है,
मानो तुम!!

अर्चना रॉय
प्राचार्या एवं साहित्यकार
रामगढ़ झारखंड

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