दीया

दीया

अंतस में दीया जलता है ।
बाहर में दीया जलता है ।
मन के दीप से ही अब तो ।
घर घर में दीया जलता है ।।

देश में दीपोत्सव मनता है ।
अंतस बाहर गम हटता है ।
आओ घर घर दीप जलाएँ ।
कलुषता का तम हटता है ।।

दीपक शुद्धता है विकास ।
जलते ही करता प्रकाश ।
देश का नक्शा बन‌ जाता ।
हृदय में बसने ‌का आभास ।।

आओ मिलकर दीप जलाएँ ।
खुशियों का प्रकाश फैलाएँ ।
दीप के मानिंद मार्ग ही चलें ।
यूँ ही मिलकर मौज मनाएँ ।।

प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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