तीसरी दुनिया की इन्सान

तीसरी दुनिया की इन्सान

जी..
सुनो ..
मैं एक अलग दुनिया की इन्सान हूं.
जो बिन नींव के महल बनाती हूं..
और ताउम्र उनके टिक जाने
……..का इंतजार भी करती हूं.

समुन्दर से आकाश में
तारों की इस बाढ़ में..
देखो..

इक दिया .लिये….. खडी़ हूं मैं..

दुखों की इस बगिया का ..
अश्रु सिचंन करती हूं मैं…

अनथ अधेंरों की मैं रक्षक.
नश्वरता की उपासिका हूं..

आदि को ढूढंने चली..
अंत तक…
और साथ ..लिये…बस..
मन की निहारिका हूँ..

सोनिया अक्स
साहित्यकार
पानीपत,हरियाणा

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