जीवन का मंत्र है प्रेम
प्रेम, प्रतीक है
जीवन का
मंत्र है
आत्मवैभव का।
प्रेम का कोई भी
संबंध,
वासना से नहीं,
पृथक है,वासना!
प्रेम की शर्तें नहीं
उम्र,जाति, मज़हब
या ,सामाजिक बंधन
भी नहीं!
प्रतिदान,प्रेम का सिर्फ
प्रेम ही है,
वस्तु या……..
दैहिक, सांसारिक
……कुछ भी नहीं!
प्रेम देश से,प्रेम मातृभूमि से
और माँ से,
प्रतिदान का नहीं,
वैसे ही
वृथा है,प्रतिदान
किसी से भी!
प्रेम की,सिर्फ
आँखों से होती है
प्रतीति,शब्द भी
नहीं चाहिए
प्रेम की अभिव्यक्ति हेतु,
चुकी, जब-जब प्रेम को
हवा लगी दुनिया की
वह स्याही की तरह
पसरता चला गया है!
तो,फिर
वासना है वह
प्रेम ,कदाचित नहीं।
अरुण सज्जन
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड