जय माँ सरस्वती
क्या लिखूँ , कैसे लिख दूँ
वो भाव कहाँ से लाऊँ
रच दूँ माँ तुझ पे कविता
वो शब्दार्थ कहाँ से लाऊँ …
भटक रही जग की तृष्णा में
मोह माया का भंवर सा फैला
अंतर्मन को निश्छल कर लूँ
वो परमार्थ.. कहाँ से लाऊँ …
निज स्वार्थ भरा औ द्वेष भरा
है अंतर्मन मेरा ….काला सा
हो अर्पित तेरे ……चरणों में
वो मन निःस्वार्थ कहाँ से लाऊँ…
सत्या शर्मा ” कीर्ति “
साहित्यकार