गणतंत्रता दिवस

गणतंत्रता दिवस

सोनू रोज़ ही सिग्नल पर कभी गुब्बारे, कभी पैन ,कभी मूँगफली बेचता दिख जाया करता था और मैं उससे बिना ज़रूरत के भी चीज़ें खरीद लिया करती । सोनू की उम्र लगभग दस साल होगी। एक अनकहा सा खिंचाव महसूस होने लगा था मुझे उसके प्रति। पर आज वह कहीं नहीं दिखा। हरी बत्ती भी हो गई पर मुझसे एक्सीलेटर न दबाया गया।
पीछे से गाड़ियों के तेज़ भौंपू और औरत के लिए ऐसी स्थिति में कहे जाने वाले अतिसम्मानजनक शब्द जब मेरे कानों की सहन शक्ति से परे होने लगे तब अनचाहे मैंने गाड़ी आगे बढ़ा दी। आज मन बहुत बैचैन है ,सुबह ही दूधवाला रात को इस सिगनल पर हुए भयानक हादसे के बारे मे बता रहा था जिसमें कई जानें चली गई थी। घर आकर बहुत कोशिश की ध्यान बंटाने की पर मन तो फिर मन है। गाड़ी उठाई और फिर चल दी उसी सिग्नल पर । इस बार दूर से ही दिख गया सोनू ।

भाग-भाग के झंडे बेचता हुआ। गाड़ी साईड लगा , तेज़ कदमों से सोनू के पास पहुँची और जाने किस हक से डाँट कर बोली ,
”क्यों रे सुबह कहाँ था तू ?आवारागर्दी तो नहीं शुरू कर दी?”
”अरे नहीं-नहीं दीदी जी , वो आज गणतंत दिवस है न”
“गणतंत्रता दिवस , पर उससे तुझे क्या ?”
”अरे ! मैं बड़े वाले मैदान गया था।जहाँ बड़ी-बड़ी सफेद गाड़ियों मे वो नेता लोग आते है झंडा फहराने । सुंदर सुंदर झांकियां निकलती है और बहुत भीड़ भी होती है वहाँ।”
”तो तू परेड़ देखने गया था?”
”हीहीही…क्या दीदी जी, मैं तो वहाँ काम से गया था।”
मेरी प्रश्नवाचक दृष्टि देख कर सोनू हँसते हुए बोला।
”दीदी जी, वहाँ पहले तो खूब ज़ोर ज़ोर से लोग हाथ मे झंडे ले के चिल्लाते है भारत माता की जय…जय हिंद.. और न जाने क्या-क्या, पर जैसे ही जलसा खत्म होता है सब उन झंडो को फेंक के चल देते है ।मैं फटाफट खूब सारे झंडे बटोर लेता हूँ। बहुत से तो खराब हो जाते है लोगों के पैरों के नीचे दब के, पर जो बच जाते है वो मैं सिग्नल पर आ के बेच देता हूँ । ये एक दिन के लिए कार मोटरसाइकिल पे झंडा लगाने वाले बहुत आते है गणतंत दिवस पे।”
” गणतंत्रता दिवस”
”हाँ वई तो मैं कह रहा हूँ । आप भी लोगी दीदी जी।”
मैंने न मे सर हिलाया और सोनू को एक चाॅकलेट पकड़ा गाड़ी की तरफ चल दी । अचानक बहुत थकान महसूस हो रही थी । कानों में गूंज रहा था ‘गणतंत दिवस’ और सब तरफ़ दिखाई दे रहे थे पैरों के नीचे दबे हुए झंडे।

डाॅ सुषमा गुप्ता
साहित्यकार
फरीदाबाद, हरियाणा

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