गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र
गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र
जहाँ आज भी धर्म
पर होते बवाल कई
न आज़ादी मंदिर की
न आज़ादी मस्ज़िद की
न ही गुरुद्वारे गिरजाघर की
बंटे धर्म , मज़हब सारे
यूँ देश में अपने ही ।।
गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र
जहाँ नहीं महफूज़ लड़की
कभी कोख में
कभी घर में
कभी बाहर
होता शोषण उसका
बेरोक टोक
यूँ देश में अपने ही।।
गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र
जहाँ नहीं महफूज़ जनता
चुनकर अपना प्रतिनिधि भी
हुआ खेल राजनीति का
देश से बड़ा
यूँ देश में अपने ही।।
70 साल में बदल भले ही
देश चढ़ा जितनी
सीढ़ियां सफलता की
उतनी ही सीढ़ियां गिरा
नीचे भी इंसानियत की
कभी धर्म कभी जाति
कभी आरक्षण कभी शिक्षा
कभी राजनीति कभी सकैम
कभी आतंक कभी मारकाट
कभी शोषण कभी घात
क्यों होता ये सब देश मे अपने
फिर कैसी ये आज़ादी
कैसा ये गणतंत्र
टिका है जो बैसाखियों पर
मुठी भर सियासी, उद्योगपति
या फिर देश में दहशत फैलाने
वाले दहशतगर्दों पर
गणतंत्र कैसा ये गणतंत्र
खोजता पहचान अपनी
आज अपने ही देश में।।
मीनाक्षी सुकुमारन
वरिष्ठ साहित्यकार
नोएडा