कोरोना : क्राइसिस या कच्चा माल??
आज जब सम्पूर्ण संसार कोरोना वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, वो भी बिना किसी अस्त्र/शस्त्र के, क्योंकि ना तो इसका निदान है और ना हीं उपचार। भारत जैसे लोकतंत्र के लिए यह क्राइसिस और भी भयावह हो जाती है! यह सर्वविदित है कि भारत की अपार जनसंख्या और स्वास्थ्य सुविधाओं का अनुपात ऊँट के मुख मे जीरे के समान ही है।इतने निराशा भरे माहौल में यदि कोई चीज आशा के दीपक का काम कर रही है तो वह है, भारतीयों की जीवटता और विषम से विषम परिस्थितियों मे भी हार ना मानने की सांस्कृतिक विशेषता।
अदृश्य विषाणु के विरूद्ध युद्ध के शुरुआत के कुछ दिनों में सब सही दिशा में ही चल रहा था ऐसा लग रहा था कि इस क्राइसिस से निपट लिया जाएगा और भारत अपने विश्व गुरू की उच्चता के पद का क्षय या हनन नहीं होने देगा लेकिन हुआ इसके विपरीत, पिछले कुछ दिनों मे घट रही घटनाओं पर अगर ध्यान दिया जाए तो इस क्राइसिस ने कच्चे माल का रूप ले लिया है।सुनने मे थोड़ा अटपटा भले लगे कि कोरोना क्राइसिस कच्चा माल कैसे हो गया किन्तु यही यथार्थ है।यह कच्चा माल साहित्यिक जगत का भी है जिस साहित्यकार की जो विचार धारा है उन्होंने उसका प्रसार करने का भरपूर प्रयास किया है जिससे कोरोना क्राइसिस में राहत मिलें ना मिलें, हाँ ! घृणा की राजनीति को कच्चा माल अवश्य मिल गया हैं।तमाम सोशल साइटस और मीडिया हाउस कुछ को छोड़कर इस जुगत मे लगे हैं कि हवा का रूख कैसे मोड़ा जाएं जिसके लिए तमाम तरह के टीवी डिबेट और चयनित रिपोर्टिंग का सहारा लिया जा रहा है जिसमें कोरोना क्राइसिस के निवारण से ज्यादा कारण को केन्द्र बिन्दु बनाया जा रहा हैं।
राजनीति की बात करें तो ऐसा लगता है कि बिल्ली के भाग से छीका टूटा और सभी पार्टियों ने इसे हाथोंहाथ लिया है चाहे वह चैनल पर आकर अपना विज्ञापन हो या राहत सामग्रियों के पैकेट पर पार्टियों के चिह्न व्यक्तियों के फोटो इत्यादि।जो राज्यवार आंकड़े हैं वो भी बडे़ चौकानें वाले हैं जहाँ का आँकड़ा सबसे ज्यादा है वो कह रहे हैं हमने ज्यादा टेस्ट किया इसलिए हमारे आँकड़े ज्यादा हैं।तात्पर्य यह कि जहाँ जाँच नहीं हुआ वहाँ जनता भगवान भरोसे है? जो बीजेपी शाषित राज्यों और गैर बीजेपी शाषित राज्यों के राजनीतिकरण को कच्चा माल प्रदान करता है, जबकि यह एक साथ खड़े होने का समय था। देश क्राइसिस काल में है चुनाव का दौर नहीं चल रहा है
और जिनको सरकार की आलोचना करनी है या यूँ कहे बिना आलोचना के उदर विकार की संभावना है, उनको भी पर्याप्त कच्चा माल मिला चाहे वह ताली, थाली, दिया, किसी भी रूप मे हो आलोचना करनी है तो है ।जबकि यहाँ उनलोगों के उत्साह वर्धन का समय था जो अपनी जान जोखिम मे डालकर दिनरात इस क्राइसिस से लड़ रहे हैं।
यहाँ घ्रुवीकरण को भी पर्याप्त कच्चा माल मिला है चाहें आपूर्ति का स्रोत विश्वसनीय हो या फेक न्यूज।वह तो देश का सौभाग्य है कि बहुमत की सरकार है,और यह अपेक्षित है कि वो सभी इंतजाम किए जाएं जो देशहित में हो क्योंकि किसी भी प्रकार की विफलता का ठीकरा फोड़ने के लिए कोई भी सर सलामत नहीं है।कमजोर विपक्ष वाले लोकतंत्र मे यह अपेक्षित है कि सत्ता पक्ष इसे क्राइसिस ही समझे औरों की तरह कच्चा माल नहीं, सरकार का मतलब हमेशा व्यापार नहीं होता है।जैसा की माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि जान है तो जहान हैं।
कुमुद “अनुन्जया”
साहित्यकार
भागलपुर,(बिहार)