एक खत

एक खत
एक पाती माँ के नाम

माँ,कहते है इस बेहद खूबसूरत शब्द की सरचना ईश्वर ने तब की जब उन्हें लगा की वह सब जगह नही पहुँच सकते,और फिर उन्होंने हम सब के लिए माँ बनाई!!

सम्पूर्ण सृष्टि आकाश गंगा तारा मण्डल और ब्रह्माण्ड की सृजनकर्ता #माँ,वह ध्वनि है #ॐ सी, ओंकार सा वक्त और महकती हवा जो हमे जीने का कारण देती है#माँ…तुम्हे शत शत और कोटिशः नमन

आज मै तुमसे दूर हूँ 28 साल से साथ छूटा है तुम्हारा और मेरा,ध्वल चांदनी सी तुम और मै हल्की सी चाँदी अपने बालों मे लिए तुम्हारी तरफ अग्रसर,सच कहु तो तुम बहुत याद आती हो,हर पल हर क्षण और हर दौर और कई स्थितियों मे… दूर हूँ इसलिए एक खत लिख रही हूँ तुम्हे ,पास होती तो नही कह पाती किन्तु अब तुम्हारा वाला दर्जा जब मुझे मिला तो बच्चों की हरकते और मेरी हरकते याद आती है, मै बिफर जाती हूँ थक जाती हूँ तो तुम्हे सोचती हूँ की तुम कैसे एक मुस्कुराहट के साथ 5बजे सुबह से मेरे सोने तक यन्त्र वत सी सारे काम करती थी सुनो “आई”(माँ) हमारे यहाँ माँ को#आई कहते है
एक पाती तुम्हे समर्पित

……आई…तुला शत शत नमन ..
याद है मुझे वह पहला दिन जब तुम मुझसे मिली थी,एक अँधेरे से पर गर्माहट लिए तुम्हारी कोख मे मै बन्द आँखों से चुपचाप साँस ले रही थी और अचानक चोंकी थी,तुम्हारे स्पर्श से,अजीब अद्भुत अनुभूति थी वह,एक चुम्बिकय शक्ति और मेरी हलचल शुरू हुई थी तुम्हारे स्पर्श मात्र से मै जहाँ जहाँ तुम्हारी हथेलियाँ जाती मै उसी तरफ भागती ,धीरे धीरे तुम्हारे स्पर्श से मै बढ़ रही थी ,और तुम बड़े प्यार से मुझे सींच सृजित कर रही थी,और एक दिन वह भी आया जब मै तुम्हारी गोद मे थी,तुम्हारा स्पर्श और जन्म पाकर तुम्हारी गोद मे धन्य हुई #माँ….. धीरे धीरे तुम मेरा सृजन बड़े लाड़ प्यार से करती रही बाल्यवस्था से लेकर एक किशोरावस्था तक,मेरी प्रथम पाठशाला मेरा पहला कदम मेरा पहला निवाला पहली सहपाठी या सखी हो या शब्द तुम ही थी,
बाबुल के घर से विदा हुई और नया संसार रचा और वह अनुभव भी जब मै माँ बनी पर तुमसी नही … ,लापरवाही बच्चों की मुझे मेरी याद दिलाती वह result का दिन हो या parents टीचर meeting तुम ही याद आती हो जानती हो माँ मै थक जाती हूँ सोना चाहती हूँ खीजती हूँ पर फिर दो मिनट का मौन और तुम्हारी याद। आते ही चुस्ती से खड़ी हो जाती हूँ ,तुम्हारा फ़िक्र करना और मेरी बेफ़िक्री ,जब बेटा करता है तो तुम्हारी चिंता मेरे माथे पर सिलवटे बन उभर आती है, वह सारी मेरी हरकते मेरी बच्चों मे देखती हूँ तो तुम नजरो के सामने घूमती हो,वह झूठमूठ का गुस्सा और मेरा सचमुच का डरना बहुत याद आता है, बच्चे बढ़ रहे जाहिर है मै भी अनुभव और उम्र के उसी दौर मे हूँ,अब तुम ध्वल और पूर्ण चांदनी बन बहुत शीतल सी हो चली हो और मेरे भी बालोँ मे उम्र की चांदी दिखाई देने लगी है, बहुत अच्छा लगता है जब बच्चे कहते है#माँ तुम भी अब#नानी की तरह दिखने लगी हो,तब सचमुच मेरा #माँ”बनना पूर्ण सा लगता है ।। जब बेटा मासूमियत से गोद मे आकर मेरा माथा चूमता है तो सहज ही मेरा बालमन अपने आप ही तुम्हारी गोदी मे समाहित हो जाता है और मै ममत्व की मूर्ति बन उसे अपने बाँहो मे ले तुममे समाकर अपने आप को तुममें समाहित कर देती हूँ इसी अहसास मे की एक माँ को ईश्वर ने बनाकर हम सब जीवों पर बहुत बड़ा उपकार किया है धन्य हूँ मै तुम्हारी की मै तुम्हारा सृजन हूँ और धन्य हूँ उस ईश् की जिनकी तुम सृजन हूँ, शत शत नमन तुम्हारे सृजन करता को और कोटिशः नमन मेरी सृष्टि को
#आई” धन्य हूँ मै धन्य है सृष्टि

तुम्हारी प्रतिछवि”स्वरा”

0