आज़ाद भारत में नारियों की आज़ादी कितनी?

आज़ाद भारत में नारियों की आज़ादी कितनी?

डॉ भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में नया संविधान बन कर तैयार हुआ जिसमे सदस्य माननीय जवाहर लाल नेहरू सरदार बल्लभ भाई पटेल,मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद थे।
भारतीय संविधान को सभा द्वारा 26 जनवरी 1949 को अपनाया गया था लेकिन लागू हुआ 26 जनवरी 1950 को।
आज हम आज़ादी के 71 वें साल में प्रवेश कर रहें हैं लेकिन क्या आज भी हमारे देश की आधी आबादी सच में आज़ाद है?क्या वह स्वतंत्र है अकेले सड़कों पर चलने की? क्या वह स्वतंत्र है अपनी स्वेक्षा से पहनने खाने को ? जिस देश में नारी के हर स्वरुप की पूजा होती है। देवी का स्वरुप समझी जाती है नारी क्या उस मुल्क़ की महिलायें, बेटियाँ आज़ाद हुई? आज यह ज्वलंत सवाल सभी के होठों पर है।

बेशक़ हम विदेशी ग़ुलामी से आज़ाद हो गए लेकिन क्या हम अपनी संकीर्ण सोचो से उबर पाए ? हम प्रतिदिन अख़बारों में देखते हैं कि देश के हर कोने से किसी न किसी लड़की के बलात्कार जैसी जघन्य और इंसानियत को शर्मसार करने वाली ख़बर मिल जाती है। चाहें वो दिन पंद्रह अगस्त का हो य २६ जनवरी का। आज हमारे आज़ाद मुल्क़ में आये दिन कुछ हृदय विदारक़ घटनाएँ यूँ घटती है की मौत के सन्नाटे में रूह भी दहल जाता है।
जहाँ इंसानियत शर्मसार होती है जहाँ रात के अँधेरे में उजाला भी सहम जाता है जहाँ इंसानियत का अक्स धूमिल नज़र आता है।

हमने माना की हमारे देश में क़रीब आधी दर्जन महिलाएं राजनीती में अपना योगदान दे मुख्यमंत्री पद की अहम् भूमिका निभाई है ।वहीँ अतीत और वर्तमान में लोक सभा अध्यक्ष पद पर नारी है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल और हमारी इंदिरा गांधी ने राजनीती की उचतम पद पर आसीन हो समस्त विश्व में महिलाओं का मान बढ़ाया। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधा मिला कर चल रही है। तीनों सेनाओं में महिलाओं की भागीदारी रही है वहीँ तकनिकी क्षेत्र और शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं का वर्चस्व रहा। जहाँ एवरेस्ट पर बछेंद्री पाल ने परचम लहराया वहीँ अंतरिक्ष में जा कर कल्पना चावला ने अपना कीर्तिमान स्थापित किया। आज हर क्षेत्र में देश की बेटियाँ नाम रौशन कर रहीं हैं वहीँ किसानी खेती बारी यानी तात्पर्य ये है की कोई भी क्षेत्र नारियों से अछूता नहीं है।

पर एक सवाल आज भी अनुत्तरित है कि क्या महिलाओं को बराबरी का दर्ज़ा मिल पाया? क्या वो कानून बन पाया जब बेटियों के बलात्कारियों को त्वरित सजा दे कर उनकी भटकती आत्मा को सकून दे सके? क्या वो हथकड़ियाँ बन पाईं हैं जो दहेज़ लोभियों को हवालात की हवा खिला सके? आज भी कन्या भ्रूण हत्या हो रहा. आज भी दहेज़ की हवन कुंड में बेटियों की आहुति दी जा रही है। आज भी बलात्कारियों को क़ानून के दायरे में ला कर वरी कर दिया जाता है। निर्धन ग़रीब की बच्चियां महिलाएं आज भी धनवानों के शोषण की शिकार होती हैं। न्यूनतम मूल्य पर सारा दिन खटाया जाता है। भूख लाचारी और बेबसी में ये बच्चियाँ शोषण की शिकार होतीं हैं। आज भी महिलाओं के मंदिर मस्ज़िद में प्रवेश करने पर सियासत होता है। हम कैसे स्वीकार करें की हमारी नारी आज़ाद हुई ?जहाँ महिलाएँ मुद्दा बनाई जाती हैं ,उनके लिए न्यायलय का सहारा लेना पड़ता है। जिस देश में महिलाओं के आज़ादी पर सियासत होती है, उनके कपड़ों पर उनके चाल ढाल पर संसद में बहस होती है।
भला हम कैसे मान लें की नारी आज़ाद है। आज बुलंद शहर और हैदराबाद जैसी जघन्य घटनाएँ महिलाओं की स्वतंत्रता को धत्ता बता रहे हैं।

इस प्रकार आधी आबादी शहरी दुष्चक्र में फँसी हुई है।
महिलाएं समाज के संकीर्ण सोच के दायरे में है क्योंकि आज भी लैंगिग सोच में असमानता है। आज जो देश भारत से भी पिछड़े हैं वहाँ भी महिलाओं को भारत से ज्यादा आज़ादी है।

हमारे ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ अब भी तमाम तरह की वर्ज़नाओं और कुप्रथाओं की बेड़ियों से जकड़ी हैं।
वही नारियां पुरुषवादी मानसिकता का दंश झेलने को मजबूर हैं ।जहाँ नारियाँ ही नारियों की दुश्मन होती हैं ये भी एक दुर्भाग्य है।

हमने माना कि आज नारी उत्पीड़न और नारी सशक्तिकरण के लिए ढेरों क़ानून बने हैं,महिला अधिकार के लिए, हज़ारों स्लोगन लिखे गए हैं, लेकिन हक़ीक़त में कितनी दूरी है ये हम बख़ूबी जानते हैं ।हमारे देश में महिलाओं के हित में यदि कोई बिल पारित करना हो तो एड़ी चोटी की मशक्क़त करनी पड़ती है..हम जानते हैं कि ज़मीनी हक़ीक़त और कागज़ी कार्यवाही में कितना फ़र्क है । आएं दिन हमारे देश में महिलाओं के साथ छेड़- छाड़ हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध होते रहते हैं, दरिंदगी चरम सीमा पर है। बलात्कार के रिकॉर्ड हर पल बढ़ रहा है। आज ३२,559 मामले प्रकाश में आये हैं जिसमे प्रतिदिन उत्तरोत्तर बृद्धि हो रही है। जहाँ हर घंटे औसतन तीन महिलाओं के साथ रेप की घटना देखने सुनने को मिल जाता है।

आज आवश्यकता है उन नियमों को वास्तविक ढंग से लागू करने की। महिलाओं को जागरूक और आत्मनिर्भर बनाने की। महिलाओं के उत्थान के लिए हक़ीक़त में नियमों को लागू करना। जीर्ण शीर्ण मान्यताओं और वर्जनाओं की बेड़ियां को तोड़ कर
महिलाओं को उनके अधिकारों से अवगत कराना और महिलाओं की सुरक्षा निर्धारित करने की। आज नारी उत्थान में देश सरकार और परिवार का सहयोग अपेक्षित है। तब मेरा भारत स्वतंत्र भारत कहलायेगा।

 

मणि बेन द्विवेदी
साहित्यकार
वाराणसी , उत्तर प्रदेश

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