आया मौसम प्रेम का…

आया मौसम प्रेम का…

रोज़ डे

1
शीत ऋतु की उजली धूप सा
चमके है तेरा रूप…..
हर लो मेरा उर-तिमिर प्रिय
स्वीकारो यह वृतपुष्प

2
हृदय तल में ले उद्वेग कई
सतह पर मैं रहा संभ्रांत
जीवन रण के कोलाहल से
तन जर्जर मन हुआ क्लान्त
बिसरी सुधि की पुस्तिका से
झांक उठा तब पुष्प अम्लान
कौन इत्र डूबे हो पाटल?
महक उठा मन का दालान

प्रपोज़ डे

चातक सा विचलित मन करता
अब दूर करो अलगाव
जीवन मेरा सफल करो प्रिय
स्वीकारो प्रणय प्रस्ताव

चॉकलेट डे

1
हो चुका हूँ क्षार प्रियवर
पुनः मृदुल व्यवहार कर दो
रीते हृदय-कोष्टकों में
मृदु क्षण उपहार भर दो
निर्मम जगत की व्यंजना से
हो चुका हूँ नीम कड़वा
तुम मधुमय औषधि बन
हर वेदना संहार कर दो

2

चॉकलेट एक देकर
जीवन हो गया सेट
अब नाश्ते में रोज रोज
न खाना पड़े ऑमलेट
न खाना पड़े ऑमलेट
कपड़े- बर्तन भी धुलते
प्रेम करे से लड़के के
कष्ट सारे ही उड़ गए

टेडी डे

कह कौन न चाहेगा जग में
प्रतिपल प्रिय के पास होना
प्रत्यक्ष जो न भी हो सम्भव
प्रतिरूप में अहसास होना
दे दो निशानी आज ऐसी
निज अंक भर सुध बिसराऊं
जलजात मन-सर में खिला दे
महके मन का कोना-कोना!

प्रॉमिस डे

हो अभिजात तुम, तुमको जगत में
नेह के अनुकल्प बहुत हैं
नीर क्षीर जो भाँप पाओ
सत्य कम और गल्प बहुत हैं
अनहद तक जो दो तुम साथ प्रियतम
अद्य थामो हाथ मेरा
चल सदा चंचल चित्ति के
आह, मिथ्या संकल्प बहुत हैं!

हग डे

भर लो यूँ आलिंगन मुझे तुम
एक हो जाए ये धड़कन
चाहता कब पृथक अस्तित्व
है पूरा ही बावरा यह मन
लो बसा निज उर मुझे यूँ
ज्यों तेल में बाती निमंजित
नेह शुचि की आभ से प्रिय
कर दो तन ओ मन अभिरंजित!

किस डे

1
त्याग शब्दों पर निर्भरता
द्विय अधर मम भाल धर दो
कर स्पर्श लघु चेतना को
प्रिय अद्य उत्ताल कर दो
नेह घन रूठे क्या मुझसे
आस का कोंपल न उगता
बरसा निरन्तर स्नेह सूचक
आत्मिक शुचि ताल भर दो!

2

प्रेम का शुचि रूप यह प्रिय
न वासना इसमे मिली
अधर मिल गए जो अधर से
अर्धोन्मीलित कलियाँ खिली
प्रमुदित है मन भवंर सा
साथ पाकर के तुम्हारा
पतझड़ का सूखा ठूठ था जो
महके है बन अब बकुली

वैलेंटाइन डे

बस गए जब से हो साजन
सहज ही मेरे हिय
नैना मेरे यह जगत के
बन गए है खबरिय
मैं छुपाऊँ लाख लेकिन
शोर चारो ओर है
लो आज मैं भी कह ही डालूँ
बस तुम ही तुम मुझको प्रिय

निधि अग्रवाल
साहित्यकार
झांसी, उत्तर प्रदेश

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