अच्छा लगता है
लॉकडाउन में घर पर रहना।
अच्छा लगता है।
शांत अवनी, स्वच्छ आकाश।
शुद्ध पवन करे प्रदूषण नाश।
स्वच्छ समीर तन में भरना।
अच्छा लगता है।
शांत हुआ शोर वाहन का ।
चहचहाना चिड़ियों का।
चिन्ता नही किसी काम का
सुबह सबेरे योगा करना।
अच्छा लगता है।
शाकाहारी घर का खाना।
ना होटल,ना सैर-सपाटा।
परिवार के साथ में रहना।
अच्छा लगता है।
साफ,सफाई, खाना, पीना,
हर कामो में हाथ बंटाया।
बच्चों के संग खेलना कूदना,
समय बितना उनके साथ।
अच्छा लगता है।
सुबहो शाम ईश्वर की पूजा
जनहित का काम और ना दूजा।
शंख,ताली,थाली बजना।
दीप जला एकता का पाठ ।
अच्छा लगता है।
साफ सफाई के साथ
सेवा समाज का करना ,
करना अधूरे सारे काम।
कहानी,कविता पढ़ना लिखना ।
अच्छा लगता है।
ना चोरी, ना गुण्डागर्दी।
ना अत्याचार, ना बलत्कार।
दुर्बुद्धियों को मिली,सुबुद्धि।
ऐसे सुकून का आलम होतो,
अच्छा लगता है।
करोना काल ,विपत्ति बन आई है।
पर बदलाव के निमित्त आई है।
जीवन शैली में कई परिवर्तन दिखता है
ये परिवर्तन अच्छा लगता है।
लॉकडाउन में घर पर रहना।
अच्छा लगता है।
छाया प्रसाद
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड