जनसंख्या: कितना उपादान, कितना व्यवधान

जनसंख्या: कितना उपादान, कितना व्यवधान

जनसंख्या अर्थात जनशक्ति अर्थात सृष्टि का सबसे समर्थ ऊर्जा स्रोत, जो दूसरे ऊर्जा स्रोतों के बेहतर प्रयोग एवं बेहतर प्रयोग की दिशा में अन्वेषण में सक्षम होता है। जगत में जिसका भी अस्तित्व है- भौतिक/ अभौतिक, उन सबों का स्वामित्व है इसके पास। स्वामित्व है तो उत्तरदायित्व भी होना चाहिए। प्रतिवर्ष 11 जुलाई को मनाया जाने वाला ” विश्व जनसंख्या दिवस” उत्तरदायित्व बोध के इसी प्रश्न से जुड़ा हुआ है।

गुफाओं- कंदराओं में निवास करता मानव सभ्यता की प्रगति के साथ संतति को अपनी पहचान बनाता गया और यह जैविक प्रक्रिया दुनिया के माथे पर धीरे -धीरे बल डालने लगी। सर्वप्रथम जब 1989 में विश्व की जनसंख्या 5 अरब के आकड़े को छू ली, तब संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अधीन गवर्निंग बॉडी ने विश्व बैंक में कार्यरत डॉक्टर के सी जकारिया के सुझाव पर दुनिया का ध्यान बढ़ती जनसंख्या की ओर आकृष्ट करने के लिए हर साल 11 जुलाई को “विश्व जनसंख्या दिवस ” के रूप में मनाने का निर्णय लिया। अतः विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य बढ़ती जनसंख्या की ओर विश्व समुदाय का ध्यान आकृष्ट करना, उससे उत्पन्न हो रहीं चुनौतियों तथा उनके समाधान पर परिचर्चा एवं क्रियान्वयन है।

दुनिया की आबादी में हर साल 83 मिलीयन लोग जुड़ते जा रहे हैं और ऐसा अनुमान है कि 2050 में इस धरती पर 9.9 बिलियन लोग अपनी उपस्थिति दर्ज कराऐंगे। आज विश्व की आबादी 7.80 अरब है, जिसमें भारत की आबादी का प्रतिशत 17.7 है। लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या वाला हमारा देश विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर बने चीन में दुनिया की 18.4% आबादी निवास करतीहै। तीसरे स्थान पर अमेरिका है। भारत और चीन- इन दोनों देशों में ही विश्व की एक तिहाई आबादी निवास करती है। चीन का क्षेत्रफल भारत से 3 गुना अधिक है। स्पष्टत: भारत में केवल जनसंख्या ही अधिक नहीं है, अपितु जनसंख्या का घनत्व भी समस्याओं की ओर इशारा करता है।
वर्तमान विश्व में अगर जनसंख्या को आयु वर्ग के आधार पर वर्गीकृत किया जाए तो 26% जनसंख्या 0 से 14 आयु वर्ग के अधीन है , 65% 15 से 64 आयु वर्ग के अंतर्गत आते हैं । 65 वर्ष की आयु से ऊपर 9% लोग हैं। भारत में 27% जनसंख्या 0 से 14 आयु वर्ग की है। 15 से 64 उम्र वाले लोग 67% हैं तो 65 से ऊपर उम्र वाले लोगों का प्रतिशत 9है। भारत और विश्व – दोनों के ही दृष्टिकोण से युवा लोगों की अधिकता है। ऊर्जा के इस स्रोत से उत्कृष्ट सेवा प्राप्त करना अगर आज विश्व का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए तो इनकी उत्पादकता को चरम सीमा तक ले जाने के लिए विश्व समुदाय के पास सशक्त योजना भी होनी चाहिए।

समस्या यही खड़ी होती है- जनसंख्या, जो किसी देश की ताकत होती है, अगर विस्फोट का रूप धारण कर ले, तो उपलब्ध संसाधनों पर भयानक रूप से दबाव भी बनाने लगती है। गरीबी, अशिक्षा, भूखमरी, बेरोजगारी जैसी समस्याएंँ जहांँ कुपोषण और निम्न स्वास्थ्य स्तर को जन्म देती है तो वहीं दूसरी ओर जनता में असंतोष को बढ़ावा मिलता है जिससे राष्ट्रीय चेतना और कार्यक्षमता दोनों पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । अपराध का बढ़ता जाल इसका एक दुष्परिणाम है। अगर जनसंख्या नियंत्रण में हो तो नकारात्मक शक्तियों पर खर्च होने वाले संसाधनों का उपयोग विकास की गति को तेज करने के लिए किया जा सकता है। ये सारे तथ्य हमारे देश के संदर्भ में चिंतनीय हैं क्योंकि 17.39 कीराष्ट्रीय जन्म दर से बढ़ती भारत की जनसंख्या आने वाले कुछ वर्षों में चीन को भी पीछे छोड़ देगी और सत्य है यह जीत हमारे लिए भस्मासुर साबित होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि भारत की बढ़ती जनसंख्या के पीछे क्या कारण हैं? बाल मृत्यु दर में कमी,अशिक्षा, जागरूकता का अभाव, समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति,धार्मिक – सामाजिक मान्यताएंँ, यौन शिक्षा को पर्याप्त महत्व न मिल पाना, परिवार नियोजन कार्यक्रम का पूर्णरूपेण सफल ना हो पाना, समाज और राष्ट्र के प्रति व्यक्ति विशेष में दायित्व बोध का अभाव अनेक ऐसे कारण हैं, जो जनसंख्या विस्फोट के लिए उत्तरदाई ठहराये जा सकते हैं। भारत में वृद्धों की समुचित देखरेख के लिए उपयुक्त राजकीय व्यवस्था का अभाव भी एक उत्तरदाई कारण है जो पुत्र प्राप्ति के मोह में बड़े परिवार को जन्म देता चला जाता है।

आवश्यकता है कि हम शिक्षा के प्रचार प्रसार के द्वारा लोगों में “छोटा और सुखी परिवार” के आदर्श को स्थापित करने की कोशिश करें। किशोरों एवं नवयुवकों को अनिवार्य रूप से यौन शिक्षा दी जाए। परिवार नियोजन कार्यक्रम जन- जन तक अपनी पहुंँच बनाए, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और स्त्रियों के बीच। जिस तरह बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उसी तरह छोटा परिवार रखने वालों को भी प्रोत्साहित किया जाए ताकि वे समाज में रोल मॉडल की भूमिका अदा कर सकें। जनसंख्या के कौशल को अधिकाधिक निखारने और उपयोग में लाने की कोशिश की जाये ताकि लोग कर्म क्षेत्र में निमग्न हो उच्च जीवन स्तर के लिए झुकाव रखें। आंकड़े बताते हैं कि जीवन में भौतिक प्रगति जनसंख्या की वृद्धि दर को थामने में मददगार सिद्ध हुई है। 2010 ईस्वी के बाद दुनिया की 27 देशों ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर में 1% की कमी लाई है।

अब प्रश्न यह उठता है कि सरकार की ओर से क्या जनसंख्या नियंत्रण हेतु कानून निर्माण की आवश्यकता है? संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट बताती है कि 2027 तक भारत की जनसंख्या चीन की जनसंख्या को पछाड़ते हुए 150 करोड़ की सीमा को पार कर विश्व में सर्वाधिक हो जाएगी। भविष्य की यह तस्वीर अत्यंत डरावनी है क्योंकि इस के गर्भ में अनेक चुनौतीपूर्ण संकट भी पल रहे हैं। यथा- क्षेत्रीय संतुलन, संसाधन प्राप्ति असंतुलन, शहरीकरण से बढ़ती समस्याएंँ, जीवन की मूलभूत समस्याओं से जुड़ी समस्याएंँ, कृषि संसाधनों का बंँटवारा, कौशल निर्माण में कठिनाई और ऐसी अनेक समस्याएंँ, जो नागरिकों के जीवन को नारकीय बना देगी। तेजी से बढ़ती जनसंख्या तेजी से बढ़ते बुजुर्गों का सामाज भी निर्मित करेगी, जिनका पोषण भी एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।

अतः आवश्यक है कि अगर जन सामान्य के स्तर पर गंभीरता से इस दिशा में सोच का अभाव दिखे तो सरकार को एक आदर्श जनसंख्या की रणनीति तैयार करनी ही होगी।इसके लिए बुद्धिजीवियों,समाजशास्त्रियों, अर्थविज्ञानियों जैसे रणनीतिकारों के सुझाव और अनुभवों के आधार पर ऐसा जन आंदोलन चलाना होगा जिसे जनता स्वेच्छा से स्वीकार कर राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे। बढ़ती जनसंख्या की विभीषिका से लोगों को अवगत कराना होगा। “लोग कितने हैं” की जगह ” लोग कैसे हैं” के संदेश को जनमानस का संदेश बनाना पड़ेगा। अगर आवश्यकता पड़ी तो इस संदर्भ में कानून सम्मत कदमों का भी सहारा लिया जा सकता है।

विश्व जनसंख्या दिवस, 2020 का केंद्रीय विचार है -” कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं एवं किशोरियों की यौन एवं प्रजनन, स्वास्थ्य एवं कमजोरियों के बारे में जागरूकता फैलाना।” भारत के संदर्भ में यह और भी विचारणीय है क्योंकि लैंगिक असमानता भारतीय समाज का एक कड़वा सच है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस पर और भी कार्य करने की जरूरत है क्योंकि बाल विवाह अभी भी बाबू शिव का नाम अपना अस्तित्व बनाए हुए है। सरकार और समाज – दोनों के सहयोग से ही जनसंख्या नियंत्रण और उपलब्ध मानव संसाधन का सर्वोत्कृष्ट उपयोग संभव है। आइए, हम सभी अपनी पृथ्वी को बेहतर बनाने के लिए इस दिशा में कदम बढ़ाएँ और पर्यावरण को नियंत्रित करने की बजाय जनसंख्या को नियंत्रित करें।

रीता रानी,
जमशेदपुर, झारखंड।

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