मेरी मुट्ठी में आसमां

मेरी मुट्ठी में आसमां

आज जब मैं महिला सशक्तिकरण की बातें सुनती हूं तो सोचने लग जाती हूँ कि मैं कितनी सशक्त हूँ , यह समाज की महिलाएं कितनी सशक्त हैं l हम एक आधुनिक दौर में जी रहे हैं, जहां शिक्षा, सुख सुविधाएं, समाज का प्रोत्साहन सभी कुछ हम स्त्रियों को मिल रहा है l हर क्षेत्र में महिलाओं की पुरुष से समानता की बात की जाती है l आज हमारे बीच कई महान व महत्वपूर्ण महिलाएं उदाहरण के तौर पर है lलेकिन मैं एक ऐसी स्त्री के विषय में बात करना चाहती हूं, जो इस आधुनिक दौर का हिस्सा नहीं थी फिर भी उन्होंने महिला सशक्तिकरण का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जो बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा बनी वह थी- सरस्वती देवी।

पंद्रह साल की सरस्वती “उच्च वर्गीय परंपरावादी और रूढ़िवादी राजपूत जमींदार घराने से थी, देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उन दिनों सरस्वती की कच्ची उम्र में ही बनारस से कुछ दूर छोटा मिर्जापुर में विवाह कर दिया गया, साल लगते लगते उनके पति का देहांत हो गया, सोलह साल की अबोध विधवा सरस्वती अकेले अपने ससुर के साथ रहने लगी परंतु कब तक l जब महिलाएं लाज- शर्म और मर्यादा में अपने बड़ों के सामने मुँह नहीं खोलती थी तब सरस्वती ने उस मर्यादा से आगे बढ़कर अपने घर- खानदान का वंश चलाने के लिए अपने ससुर का विवाह कराने का निर्णय लिया l उस समय एक स्त्री की ऐसी सोच संभव नहीं थी परंतु सरस्वती ने वह साहस दिखाया समाज के विरुद्ध जाकर उसने अपने ससुर का विवाह कराया l

सरस्वती को लगा अब सब ठीक हो जाएगा पर विधाता को शायद कुछ और ही मंजूर था l एक शाम सरस्वती की आंखों के सामने उसके ससुर कि उसके गोत्र भाइयों ने हत्या कर दी और दोनों महिलाओं को प्रताड़ित किया l दो विधवा औरतें इतनी बड़ी जमीनदारी और इसके दस दावेदार, ससुर के जीते जी कोई ना था मरते ही सारे रिश्तेदारों ने हमला बोल दिया l कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते सरस्वती के दिन बीतने लगे, सरस्वती को मारने की धमकियां मिलने लगी, जिन लोगों ने उसके ससुर की हत्या की वह उसकी भी हत्या की साजिश रचने लगे l कितनी बार वह हताश और परेशान हुई परंतु हिम्मत बांधकर फिर से वह खड़ी होती और चल पड़ती लड़ने के लिए l सरस्वती इन साजिशों से डरी नहीं बल्कि और मजबूत बन गई l पंद्रह साल सरस्वती कोर्ट -कचहरी के चक्कर काटती रही, जिन दिनों में गाड़ी घोड़े आसानी से नहीं मिला करते थे l उन दिनों में सरस्वती बैलगाड़ी पर बैठकर रोजाना छोटा मिर्जापुर से बनारस और बनारस से छोटा मिर्जापुर कोर्ट -कचहरी के चक्कर काटती रही और फिर एक दिन उसके हौसलों की जीत हुई l उसको इतिहास रचना था वह जीती और ऐसी जीती की कामयाबी भी कदम चूमने लगी l उसने अपने सभी गोतिया रिश्तेदारों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया l उसकी इस हौसले और जज्बे को देखकर पूरा गांव नतमस्तक हो गया और वह वहां की ग्राम प्रमुख चुन ली गई l फिर भी वह अपनी जिम्मेदारियों से हटी नहीं उसने मरते दम तक अपनी हमउम्र सास की सेवा की l सरस्वती कमजोर होती तो वह दुख में डूब जाती और अपने दुर्भाग्य को जीवन बनाकर जीती रहती परंतु सरस्वती जैसी महिलाएं समाज के लिए एक उदाहरण बनती है वो टूटी नहीं, हारी नहीं,किसी के सामने रोई नहीं, गिड़गिड़ाई नहीं l ग्राम प्रधान बनते ही गांव के लड़कियों के लिए सबसे पहले उन्होंने शिक्षा व्यवस्था करवाई l आज वह हमारे बीच नहीं है परंतु वह मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है क्योंकि वह मेरी “बुआ दादी” थी l जब मैंने होश संभाला तो बड़े-बड़े नेताओं और बड़े लोगों को उनके सामने सिर झुकाते हुए देखा l वह हमेशा हम सभी से कहती थी अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लो और लड़ पडो, जीवन में कभी किसी के सामने झुकना नहीं, झुक गए तो टूट कर बिखर जाओगे l सच्ची “बुआ दादी” मेरे लिए आप ही सबसे बड़ी प्रेरणा हो महिला दिवस पर आपको शत शत नमन!


सारिका सिंह,

अध्यक्ष, लायंस क्लब ऑफ जमशेदपुर फेमिना
जमशेदपुर, झारखंड

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