अबला से आत्मनिर्भरता की राह
ये कहानी है शशिकला जी की जो हर लड़की की तरह एक खुशहाल और जिम्मेदार लड़की थी। छोटे छोटे सपनों ने आँखों में जगह बनानी शुरू ही की थी कि १७ वर्ष के उम्र में विवाह के बंधन में बांध दिया गया।
अपनी सारी जिम्मेदारिओं को भली भांति निभाते हुए वह माँ बनी। पर उन्होंने अपने पढाई को बंद नहीं होने दिया।
8 महीने की गर्भवती होते हुए भी उन्होंने बीएससी की परीक्षा दी । हर परिस्थितियों का सामना मजबूती से किया ।
मन में चाह थी और मुश्किल भरी राह थी। वो कहते हैं न कि अगर ठान तो कुछ मुश्किल नहीं । पढाई पूरी कर बच्चों और घर में उलझी सी जी रही थी और खुश भी थी ।
परन्तु खुद को आत्मनिर्भर बनाने और अपनी पहचान बनाने के चाहत को अंदर जिन्दा रखा । परिवार से किसी भी प्रकार का सहयोग न मिलने के वावजूद उन्होंने 35 वर्ष की उम्र में एन आइ एफ टी से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया ।
उन्होंने फ़ैसला किया की कुछ ऐसा करूँ की जिससे अन्य महिलाओं को रोजगार भी मिले । शशिकला जी ने अपने मेहनत और लगन के बल पर वर्ष 2008 में गायत्री सिलाई सेन्टर की स्थापना की जो रांची में स्थित है।
इस सेन्टर में महिलाओँ को सिलाई- कढ़ाई ,फैशन डिजाइनिंग एवं ब्यूटी पार्लर के लिए प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाती हैं । अब तक इस सेन्टर से एक हज़ार से ज्यादा महिलाएं प्रशिक्षित होकर अपना जीवन यापन कर रहीं हैं और अपने परिवार को आर्थिक तौर पर सहयोग कर रही है।
उन्होंने कौशल विकास योजना से जुड़कर दिव्यांग बालिकाओं को भी प्रशिक्षित कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है। पिछले दो वर्षों से शशिकला जी को झारखण्ड स्किल डेवलपमेंट योजना के तहत एग्जामिनर नियुक्त किया गया है। ये लायंस क्लब की मेंबर भी हैं। यहाँ आयोजित होने वाले चैरिटी कर्यक्रम में चढ़ बढ़कर सहयोग प्रदान करती हैं।
60 वर्ष की उम्र में भी स्वम को तराशते रहने की भावना और हर नई तकनीक को एक युवा की तरह सीखने की जिज्ञासा इन्हे शुन्य से एक बिज़नेस लेडी बनाया ।
इनका मानना है कि महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने से ही आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा होगा। आज मुझे अपनी माँ की उपलब्धियों को वर्णित करते हुए बहुत गर्व महसूस हो रहा है। माँ आप एक प्रेरणा का स्रोत हो।
डॉ. शालिनी कुमारी
जमशेदपुर,झारखंड