सलाम आधी आबादी
8 मार्च को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाएगी,बधाई आधी आबादी आपको।
कुछ तस्वीरें साझा करती हूं—-
22 वर्षीय महसा अमीनी , ईरान की नैतिक पुलिस ने 13 सितम्बर को हिरासत में लिया था। महसा अपने परिवार के साथ तेहरान आई थी। जब उसकी गिरफ्तारी हुई, कारण बताया गया था उसका ‘हिजाब को सही तरीके से नहीं पहनना’। हिरासत में लिए जाने के तीन दिनों के भीतर 16 सितंबर, 2022 को महसा की हिरासत में मौत हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस कस्टडी में उसे काफी टॉर्चर किया गया था।
हिरासत में मौत के बाद ईरान में औरतें सड़क पर उतर आई थीं।औरतें अपने हिजाब उतार फेंक रही हैं, उन्हें जला रही हैं, अपने बालों को काटते हुए उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल रही थीं। बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी महिलाएं जेलों में बंद है हालांकि सरकार ने झुकने के संकेत दिए हैं।
बता दें कि एक वक्त था जब पश्चिमी देशों की तरह ईरान में भी महिलाएं खुलेपन के माहौल में जीती थीं लेकिन 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद सबकुछ बदल गया जब अयातुल्लाह खोमैनी ने गद्दी संभाली और सबसे पहले शरिया कानून को लागू किया।
दूसरी तस्वीर—–
ईरान के एक मंत्री ने सनसनीखेज दावे में कहा कि “कुछ लोगों” ने लड़कियों की शिक्षा को बंद करने के मकसद से पवित्र शहर क़ोम में स्कूली छात्राओं को ज़हर दिया था। राज्य मीडिया ने देश के उप स्वास्थ्य मंत्री यूनुस पनाही के हवाले से बताया कि जहर जानबूझकर दिया गया। यही वजह है कि पिछले साल नवंबर के आखिरी सप्ताह के बाद तेहरान में सैंकड़ों स्कूली बच्चियों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था।कई ईरानी पत्रकारों ने ‘फिदायीन विलायत’ नाम के एक समूह के बयान का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि लड़कियों की शिक्षा को प्रतिबंधित माना जाता है और धमकी दी है कि अगर लड़कियों के स्कूल खुले रहेंगे तो पूरे ईरान में लड़कियों को जहर दिया जाएगा।
एक कानून ऐसा भी है, जिसमें एक पिता अपनी बेटी से शादी कर सकता है। ये कानून ईरान ने वर्ष 2013 में अपनी संसद में पास किया था। स्त्री जीवन है या या उपभोग की एक सामग्री?
कमिशन ऑन द स्टेटस ऑफ वीमेन’ के 2022-2026 के शेष कार्यकाल से ईरान को हटाने के मसौदे के जरिए आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ने सितंबर , 2022 से ईरान सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। मसौदे में कहा गया कि ईरान ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित महिलाओं के मानवाधिकारों का लगातार हनन किया है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समर्पित है -दुनिया की आधी आबादी के सम्मान में,शायद इसलिए भी कि अब तक इस दुनिया में उन्हें जो सम्मान,जो अधिकार प्राप्त हो जाना चाहिए था, अद्यतन अभेद्ध है। सभ्यता के क्रम में काफी आगे बढ़ चुकी यह दुनिया आज भी महिलाओं को कार की ड्राइविंग सीट पर बैठने देने के लिए आंदोलन करने को बाध्य करती है,आज भी पोशाक का निर्धारण समाज अपने अधिकार गत रखना चाहता है।
जून, 2018 में सऊदी में महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस मिलने की शुरुआत हुई। दुनियाभर में इसे एक बड़े फैसले के तौर पर देखा गया।इस अधिकार को पाने के लिए कई सालों तक यहां संघर्ष भी चलता रहा ।सऊदी दुनिया का अकेला ऐसा देश था जहां महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी।
तीसरी तस्वीर—–
कुछ अफ्रीकी धारणाओं में,’महिला जननांग विकृति ‘ को नारीत्व में पारंपरिक मार्ग और एक महिला के शरीर को शुद्ध करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।2-3 मिमी का एक छेद मूत्र और मासिक धर्म द्रव स्त्रावित होने के लिए छोड़ दिया जाता है,बाकी हिस्से की सिलाई कर दी जाती है।योनि पहली बार दाई द्वारा चाकू से या महिला के पति द्वारा अपने लिंग से खोली जाती है। सोमालिलैंड सहित कुछ क्षेत्रों में, वर और वधू की महिला कनेक्शन योनि के व्यवसाय को देख सकती है कि लड़की कुंवारी है या नहीं ।योनि संभोग के लिए खोली जाती है और आगे बच्चे का जन्म होता है,के लिए खोली जाती है।यह प्रथा लैंगिक असमानता , महिलाओं की कामुकता को नियंत्रण करने के प्रयास और शुद्धता, शालीनता और सौंदर्य के बारे में विचार में निहित है। यह आम तौर पर महिलाओं द्वारा शुरू और संचालित किया जाता है, जो इसे सम्मान के स्रोत के रूप में लेती हैं और वे डरती हैं कि अपनी बेटियों और बहनों को बांधकर न रखने से सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता पड़ेगा। यह पूरी प्रक्रिया इतनी दर्दनाक और अमानुषिक होती है और साथ ही कई जानलेवा परिणामों के साथ— संक्रमण, पेशाब करने में और मासिक धर्म प्रवाह में कठोर दर्द से गुजरना, इस क्रिया के दौरान घातक रक्तस्राव शामिल हो सकते हैं।कई देशों ने इसे प्रतिबंधित किया है,परंतु सांस्कृतिक प्रश्न अपनी जगह हैं।
अफ्रीकी देशों में वैसे तो महिलाओं की स्थिति खराब है,लेकिन उन्हें तेजी से सुधारने की पहल हो ही रही है।बीते दस सालों में अफ्रीकी देशों में 75 से ज्यादा ऐसे कानून बने हैं, जिनसे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए ,नौकरियों में अवसर और वर्कप्लेस पर शोषण से बचाने को लेकर कानून बनाए गए हैं।
चौथी तस्वीर—–
9 दिसंबर, 2022 को एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों की फिर से जांच करने के लिए कहा, जो एक आदिवासी महिला को उसके पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित करता है। एक महिला को “जीवित रहने के अधिकार” से वंचित करने का कोई औचित्य नहीं है। संविधान के अस्तित्व में आने के 70 साल बाद भी आदिवासी महिलाएं पिता की संपत्ति पर समान अधिकार से वंचित था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होती है।
विश्व और भारत के इन तस्वीरों की पृष्ठभूमि में 8 मार्च को हम पूरी दुनिया में इंटरनेशनल वूमंस डे के तौर पर मनाते हैं। पिछले दिनों एक रिसर्च की गई,वर्ल्ड बैंक ने कुछ समय पहले दुनिया के प्रमुख 187 देशों में कुल 35 पैमानों के आधार पर एक सूची तैयार की. इसमें संपत्ति के अधिकार, नौकरी की सुरक्षा व पेंशन पॉलिसी, विरासत में मिलने में वाली चीजों, शादी संबंधित नियम, यात्रा के दौरान सुरक्षा, निजी सुरक्षा, कमाई आदि आधार पर जब आंकड़े जुटाए तो पता लगा कि दुनिया में केवल 06 देश ही ऐसे हैं, जहां वाकई महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार हासिल हैं। बराबरी के 35 मानदंडों पर खरा उतरने वाले ये 06 देश हैं- बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, लातविया, लक्समबर्ग और स्वीडन ।खास बात यह है कि यह सभी 06 देश यूरोप महाद्वीप के हैं । कुछ और देशों में बराबरी का दर्जा को लेकर बेहतर काम हो रहे हैं । उनमें से कुछ देश लगता है कि वाकई महिलाओं और पुरुषों को असल बराबरी की स्थिति में ला पाएंगे । इसमें आइलैंड, नॉर्वे, फिनलैंड, रवांडा, स्लोवेनिया, न्यूजीलैंड, फीलिपींस, आयरलैंड, निकारगुआ आदि शामिल हैं।
भारत में पितृसत्तात्मक मानदंड भारतीय महिलाओं के शिक्षा एवं रोज़गार विकल्पों को—जिनमें शिक्षा प्राप्त करने के विकल्प से लेकर कार्यबल में प्रवेश और कार्य की प्रकृति तक सब शामिल हैं, को सीमित या प्रतिबंधित करते हैं।इस परिदृश्य में देश की लगभग आधी आबादी और नागरिकता की हिस्सेदार महिलाओं की स्थिति पर विचार करना प्रासंगिक होगा कि वर्तमान में स्वतंत्रता, गरिमा, समानता और प्रतिनिधित्व के संघर्ष में वे कहाँ खड़ी हैं।राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकायों में प्रतिनिधित्व, संपत्ति तक पहुँच आदि कुछ प्रासंगिक संकेतक हैं, जो समाज में व्यक्तिगत सदस्यों की स्थिति को प्रकट करते हैं। हालाँकि समाज के सभी सदस्यों की, विशेष रूप से महिलाओं की उन कारकों तक एकसमान पहुँच नहीं रही है, जो स्थिति के इन संकेतकों का गठन करते हैं।
भारतीय संविधान के तहत महिलाओं को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किये जाने (अनुच्छेद 15) और विधि के समक्ष समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) का मूल अधिकार प्राप्त है।
भारत में वे कौन-से क्षेत्र हैं जहाँ महिलाओं ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है?
वर्षों से महिलाओं ने समाज के अन्याय और पूर्वाग्रह को झेला है। लेकिन आज बदलते समय के साथ उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली है, उन्होंने लैंगिक रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ दिया है और अपने सपनों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मज़बूती से खड़ी हैं। उदाहरण के लिए ,सामाजिक कार्यकर्त्ता:सिंधुताई सपकाळ(पद्म श्री 2021) – अनाथ बच्चों की परवरिश,पर्यावरणविद्:तुलसी गौड़ा(पद्म श्री 2021) ,रक्षा क्षेत्र:अवनी चतुर्वेदी – एकल रूप से लड़ाकू विमान (मिग-21 बाइसन) का उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला
खेल क्षेत्र:मैरी कॉम – ओलिंपिक में बॉक्सिंग में मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला।
पीवी सिंधु – दो ओलंपिक पदक (कांस्य- टोक्यो 2020) और (रजत- रियो 2016) जीतने वाली पहली भारतीय महिला ,गीता गोपीनाथ – अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में पहली महिला मुख्य अर्थशास्त्री ,अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी:
टेसी थॉमस – ‘मिसाइल वुमन ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रतिष्ठित (अग्नि-V मिसाइल परियोजना से संबद्ध) ,शिक्षा क्षेत्र:शकुंतला देवी – सबसे तेज़ मानव संगणना का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड,शानन ढाका – राष्ट्रीय रक्षा अकादमी प्रवेश परीक्षा (NDA का पहला महिला बैच) में AIR 1,भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है।
—लंबी फेहरिस्त है।
लेकिन भारत में महिलाओं की यह स्वर्णिम उपलब्धि और एक शक्तिहीन महिला की कटु स्थिति के बीच वैसा ही अंतर है जैसा कि गौतम अदानी, मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपति और सड़क किनारे गड्ढे खोदने वाला एक सामान्य ठेकेदार मजदूर के बीच। उपलब्धियां है परंतु चुनौतियां गहरी खाई बनकर खड़ी है।
पुरुष महिला साक्षरता दर में अंतर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी बदतर है।कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और बाल विवाह जैसी पारंपरिक प्रथाओं ने भी समस्या में योगदान दिया है।लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता ने आमतौर पर महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव को जन्म दिया है।समाजीकरण प्रक्रिया में अंतर: भारत के कई भागों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरुषों और महिलाओं के लिये अभी भी समाजीकरण के मानदंड अलग-अलग हैं।महिलाओं से मृदुभाषी, शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनसे निश्चित तरीके से चलने, बात करने, बैठने और व्यवहार करने की अपेक्षा होती है। इसकी तुलना में पुरुष अपनी इच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है।पूरे भारत में विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है।अंतर-संसदीय संघ और संयुक्त राष्ट्र- महिला की एक रिपोर्ट के अनुसार, संसद में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या के मामले भारत 193 देशों के बीच 148वें स्थान पर था।
भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के बावजूद महिलाओं को भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी , जबरन वेश्यावृत्ति, ऑनर किलिंग, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी विभिन्न स्थितियों का सामना करना पड़ता है।महिलाओं की सामाजिक सोच उनकी प्रगति में बाधक है,कई महिलाएं इस बात से सहमत हो जाती हैं कि उनके पति द्वारा उनकी पिटाई जायज है और वे हिंसा को विवाह होने के नियमित भाग के रूप में लेती हैं। 2022 में भारत की जेंडर गैप रेटिंग्स 146 देशों में 135 रैंक के साथ 0.629 थी। पीरियड पॉवर्टी विश्व के कई देशों, विशेष रूप से भारत में गंभीर चिंता का विषय है ।पीरियड पॉवर्टी मासिक धर्म को ठीक से प्रबंधित करने के लिये आवश्यक स्वच्छता उत्पादों, मासिक धर्म शिक्षा और स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई सुविधाओं तक पहुँच की कमी को इंगित करती है। भारत के साथ विश्व भर में महिलाओं को एक सामाजिक बाधा का सामना करना पड़ता है जो उन्हें प्रबंधन क्षेत्र में शीर्ष नौकरियों तक पदोन्नत होने से रोकता है।
भारत में एक प्रमुख समस्या महिला क्षेत्र में उनके घरेलू कार्यों को अनुत्पादक कार्यों के रूप में देखना भी है। जबकि भारत में बचत दर सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिशत है, जिसमें 70 प्रतिशत घरेलू बचत है। बचत, उपभोग-अभिवृत्ति और पुनर्चक्रण-प्रवृत्ति के मामले में कोई संदेह नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था महिला केन्द्रित है। कृषि उत्पादन में महिलाओं की औसत भागीदारी का अनुमान कुल श्रम का 55 पतिशत से 66 प्रतिशत तक है। डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी कुल रोजगार का 94 प्रतिशत है। वन-आधारित लघु-स्तरीय उद्यमों में महिलाओं की संख्या कुल कार्यरत श्रमिकों का 54 प्रतिशत है।
भारत में महिला सशक्तीकरण हेतु आवश्यक है सरकारी सशक्तिकरण की योजनाओं को पूरे पुरजोर तरीके से लागू किया जाए । बालिकाओं और महिलाओं के प्रति शिक्षा के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आए।कौशल निर्माण या स्किलिंग और सूक्ष्म वित्तपोषण या माइक्रो फाइनेंसिंग से महिलाएँ आर्थिक रूप से स्थिर बन सकती हैं और इस प्रकार वे समाज के दूसरे लोगों पर निर्भर नहीं बनी रहेंगी। देश भर में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्तमान सरकार की पहल और तंत्र के बारे में महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाने हेतु एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति तैयार की जानी चाहिये। खुद महिलाएं महिलाओं के प्रति संवेदनशील हो यह बहुत आवश्यक है। एसिड अटैक की कई घटनाओं में महिलाएं सहभागी रही है पुरुषों की दूसरी महिला पर एसिड डालने में।शासन में अधिक समावेशीता लाने और भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिये शासन के निम्नतम स्तर पर परियोजनाओं को तैयार करने, समर्थन करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जैसे कि , “नन्हे चिन्ह (पंचकुला, हरियाणा)”- आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रोत्साहित इस कार्यक्रम के तहत बच्चियों को उनके परिवारों द्वारा स्थानीय आंगनवाड़ी केंद्रों में लाया जाता है।उनके पैरों के निशान एक चार्ट पेपर पर अंकित किये जाते हैं और आंगनवाड़ी केंद्र की दीवार पर माँ और बच्चियों के नाम के साथ लगाए जाते हैं।शिक्षा, सूचना और संचार अभियानों के माध्यम से समान बाल लिंगानुपात प्राप्त करने में सक्षम होने वाले ग्रामों/ज़िलों को पुरस्कृत किया जाना चाहिये।ग्रामीण स्तर पर बुनियादी सुविधाओं में सुधार से बुनियादी ढाँचे में सुधार से घरेलू कार्य का बोझ कम हो सकता है।
राजनीतिक भागीदारी, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य की स्थिति, निर्णयकारी निकायों में प्रतिनिधित्व, संपत्ति तक पहुँच आदि कुछ प्रासंगिक संकेतक हैं, जो समाज में व्यक्तिगत सदस्यों की स्थिति को प्रकट करते हैं। हालाँकि समाज के सभी सदस्यों की, विशेष रूप से महिलाओं की उन कारकों तक एकसमान पहुँच नहीं रही है, जो स्थिति के इन संकेतकों का गठन करते हैं।
रीता रानी
झारखंड,भारत