बोनस
आज षष्ठी का दिन है। कीर्ति सुबह उठते ही खुशी से उछलने लगी है। कारण आज बाबा को बोनस मिलने वाला है। बाबा बोनस लेकर आएँगे और फिर दुर्गा पूजा के कपड़े आएँगे। उसके बाबा दार्जिलिंग के एक चाय बागान में नैकरी करते हैं। वह फुदकती हुई अपनी माँ कुमारी के पास पहुँची और पूछने लगी, “माँ आज बाबा को पूजा बोनस मिलेगा ना?”
“हाँ!” कुमारी भी अंदर से काफी खुश थी। बोली, “बोनस के साथ आज हफ्ता मजदूरी मिलेगी और पेशगी भी!”
“वाह!” वह चहक उठी।
कुमारी ने फिर कहा, “बाबा के आने के बाद हम दार्जिलिंग जाएँगे और दुर्गा पूजा के लिए नए कपड़े खरीदेंगे। मेरी प्यारी कीर्ति क्या खरीदेगी?”
“जामा!”
“और?”
“जूते! तुम क्या लोगी माँ? एक साड़ी जरूर खरीदना। देखो तो तुम्हारी साड़ी कितनी जगहों से फटी हुई है। तुम्हारी दो ही तो अच्छी साड़ियाँ हैं।”
कुमारी कुछ नहीं बोली। पर मन ही मन सोच रही थी, तेरे लिए दो जोड़े कपड़े खरीदने हैं और बाबा के लिए भी! मेरे लिए न हो तो भी चलेगा। मैं तो घर पर ही रहती हूँ।
कितनी छोटी-छोटी हैं इनकी जरूरतें और कितनी बड़ी हैं खुशियाँ! थोड़ी सी कमाई और उसी अनुरूप की जरूरतें।
माँ प्रकट में अपनी बेटी से बातें कर रही है, पर मन ही मन कभी मिलने वाले पैसों का हिसाब लगा रही है तो कभी अंदाजा कर रही है कि उसका पति बागान में पहुँच चुका होगा, अब काम में लग गया होगा और अब मालिक ने बोनस आदि के पैसे देना शुरु कर दिया होगा। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है कि आज पैसे मिलेंगे और…
अचानक उसे दो साल पहले का वाकया याद आया और वह सिहर उठी। उसके मुँह से अनायास निकला, “नही, नहीं! इस बार ऐसा बिलकुल नहीं होगा। कदापि नहीं…!”
अचानक उसे दरवाजे पर कुछ आहट सुनाई दी। इससे पहले कि वह अपनी जगह से उठ पाती, उसका पति वीरमान जमाने भर की पीड़ा चेहरे पर लिए अंदर दाखिल हुआ और मूढ़े पर धम्म से बैठ गया।
बाबा को देखकर नन्ही कीर्ति की खुशी दो गुना हो गई। वह भागकर बाबा की गोद में बैठते हुए बोली, “बाबा, आज आप जल्दी आ गए! बोनस मिल गया न? चलिए, अब बाजार चलें…।”
कुमारी का मन आशंका से भर गया। मुँह से शब्द नहीं निकले। वह भागकर अंदर गई और एक गिलास पानी लाकर पति के हाथ में धर दिया।
वीरमान ने आँखें ऊपर कीं और बोला, “मालिक भाग गया। गेट पर नोटिस टंगा है, जिसमें लिखा है कि बागान में नुकसान होने के कारण अब वह बागान नहीं चला पाएगा।
राजेंद्र उपाध्याय
सिलीगुड़ी,भारत