आदमी आदमखोर हो गया।
आदमी आदमी न रहा,
आदमखोर हो गया।
लग गई उसे खून की लत
ये जहां में शोर हो गया।
सब भूला ताई दादी,
सब भूला बहना अम्मा।
मर गई इंसानियत,
हो गया आज निकम्मा।
गली मुहल्ला चलना मुश्किल हुआ,
शहर देहात का एक ही हाल हुआ।
बोल उठा जिया ये क्या हुआ?
आवाज़ आई कि
आदमी आदमखोर हो गया।
मासूम बच्चों का स्वाद लगा इन्हें,
गुनाहगार भी बनाया इन्हें।
बहाना ड्रेस को लेकर,
शर्मशार भी किया इन्हें।
आधुनिकता की होड़ में,
मन पर रखा नहीं जोर।
अबला पर दोष लगाकर,
बना दिया उन्हें ही मजबूर।
फांसी का डर भी नहीं इन्हें,
समाज का भय भी नहीं।
हर बांध को तोड़ दिया,
ये सच है कि
आदमी आदमखोर हो गया।
कोई रिश्ता नहीं बचा इनसे,
चहुं ओर वासना का
भूखा शेर हो गया।
ख़त्म हुई नीति हर जगह,
आदमी आदमखोर हो गया।
डॉ विनीता कुमारी
पटना ,भारत