नया सूरज
चारों तरफ है फैला
अनजानी आशंकाओं
का घना कोहरा
रुक गया जीवन
बंदिशों के घेरे में
आओ गढ़ें एक नया सूरज
जिसकी रश्मियों के तेज में
हो जाए भस्म सभी डर
न रहे कोई
बेटी अजन्मी
रात के अंधेरे में कुचलने से
बच जाए सुनहरी धूप
न मसल पाए कोई
उभरती कली को
बचपन के आंगन में
न हो पतित निश्छल पावनता
अपने ही घर में
न किसी दामिनी की दमक
बिखर जाए खुले आकाश में
न झेलना पड़े दंश
अपनी अस्मिता को बचाने में
न हो लज्जित किसी
माँ का आँचल
बदलने होंगे मानदंड
तोड़ना होगा चक्रव्यूह
बदलना होगा नजरिया
आओ रचें हम
आशंकाओं से परे
एक निर्भीक संसार।
आनन्द बाला शर्मा
झारखंड,भारत