अभी बहुत दूर जाना

अभी बहुत दूर जाना

यह हम सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया में 8 मार्च को अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है ।
जिसका मुख्य उद्देश्य होता है महिलाओं को खुद से परिचय करवाना , उनके दिल में खुद के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करना एवं अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहने हेतु जागृत करना।क्योंकि आज भी हमारे यहाँ कई महिलाएं स्त्री अधिकार और सुरक्षा के कानूनों से अपरिचित है । अगर सच कहा जाए तो आज भी अधिकतर महिलाएं खुद से अपरिचित हैं।

इन्हीं सब मुद्दों को लेकर सर्वप्रथम 28 फरवरी 1909 को अमेरिका में सोसलिस्ट पार्टी ने महिला दिवस मनाया था।आज 100 से अधिक वर्ष गुजर जाने के बाद भी हम अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं।दरअसल महिला दिवस मनाने का औचित्य इसलिए भी है कि हम चाहें कितना भी कह लें आज महिलाओं को समान अधिकार मिल गया है किंतु अकाट्य सत्य है कि आज भी महिलाओं की स्थिति में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है बल्कि उनके ऊपर दोहरी जिम्मेदारी ही बढ़ी है।
आज की महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं चाहे कॉर्पोरेट क्षेत्र हो , इंजीनियरिंग का क्षेत्र हो , पुलिस सेवा , साहित्य , इलेक्ट्रॉनिक , साइंस या स्पेस विज्ञान । हर वो क्षेत्र भी जो पहले महिलाओं के लिए वर्जित था या पुरुष वर्चस्व का था। सभी जगह महिलाएं नई ऊर्जा, नये उत्साह से पुरुषों से कंधे से कंधे मिला कर काम कर रही है, किंतु यह दुःखद है कि कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ आज भी महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता है।

अक्सर पढ़ती हूँ कि पुरुष अभिनेता को ज्यादा और महिला अभिनेत्री को कम पैसे मिलते हैं जबकि दोनों से बराबर ही काम लिया जाता है।फिल्म इंडस्ट्री जिसे लोग आईडियल मानते हैं वहाँ सबसे ज्यादा भेद भाव किया जाता है।यह सिर्फ अभिनय के क्षेत्र में नहीं बल्कि कमोवेश हर क्षेत्र में है।अभी भी हमारी मानसिकता का विकास ठीक से नहीं हुआ है , समाज आज भी औरतों को कम आंकती है और उनके साथ जेंडर भेद – भाव करती है।एक अनुमान के अनुसार महिला – पुरुष के वेतन के बीच 34 % का अंतर है।

अफ़सोस की बात तो यह होती है कि जॉब वर्क एक होने के बाद भी महिलाओं को घर की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है ।इस तरह उनके ऊपर ऑफिस और घर दोनों के देख -भाल का दायित्व होता है।एक और दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि कामकाजी महिलाओं को यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है ।उन्हें उनके कार्यक्षेत्र में कई बार ऐसी स्थितियों से दो -चार होना पड़ता है जिससे या तो वो जॉब छोड़ देती हैं या मजबूरी बस उसी माहौल में काम करती हैं जिस कारण उन्हें काफी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है जबकि वहीं पुरुष बेफिक्र हो कर काम करते रहते हैं।

अभी हमने देखा कि कोरोना काल में घरेलू हिंसा की वारदात ज्यादा हुई ।इससे यह पता चलता है कि महिलाओं के प्रति लोगों के नजरिये में कोई खास फर्क नहीं आया है। इसीलिए जब एक साथ रहने का मौका मिला तो कई घरों में स्थिति बद से बत्तर हो गई।
इन सारी परेशानियों के बीच कुछ सुखद यह भी है कि अब साक्षरता दर बढ़ने एवं संचार माध्यम के कारण महिलाएं खुद के प्रति सचेत भी हो रही हैं।

ग्लोबलाइजेशन के कारण अब पूरी दुनिया को समझ पा रही हैं। विश्व स्तर पर महिलाओं के लिए किये जा रहे कदम को समझ पा रही हैं अंततः धीरे – धीरे महिलाएं सजग हो रही है।किन्तु सिर्फ एक दिन महिला दिवस मनाने से महिलाओं को इंसाफ और बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा इसके लिए हमें पूरे वर्ष प्रयास करना होगा ,फिर भी इस दिन कहीं न कहीं यह उम्मीद जागती है कि महिलाएं इसी बहाने खुद के लिए आवाज़ उठाना , खुद के लिए निर्णय लेना सीखे क्योंकि जब तक हम खुद की इज्ज़त नहीं करेंगे समाज क्यों करेगा ।

सत्या शर्मा ‘ कीर्ति ‘
रांची , झारखण्ड

0