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भारतीय समाज आज शिक्षित ,स्वतंत्र और आधुनिक होने के बाद भी मध्यकालीन युगीन भारतीय समाज की तरह ही महिलाओं के प्रति संकीर्ण एवं विकृत मानसिकता का शिकार है जिसके कारण महिलाओं पर अपराध दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है।
आज महिलाओं के प्रति अपराध में तेजी से बढ़ोतरी हुई है ।पोर्न फिल्में, फिल्मों में, सीरियल में, विज्ञापन में आदि में भी महिलाओं को भोग्या का दर्जा दिया जाता है जिसके कारण विकृत मानसिकता को प्रबलता मिलती है। हमारी संस्कार में कहीं न कहीं तो कमी है कि हम अपने बच्चों में इस तरह की मानसिकता विकसित नहीं कर पा रहें हैं कि जिस तरह वह अपने घर की महिलाओं के लिए सम्मान और सुरक्षा चाहते हैं वैसी ही दूसरी महिलाओं के साथ व्यवहार करें। हर दिन हमारे पास अनेक मामले ऐसे आते हैं जिस पर विश्वास करना मुमकिन नहीं है। तेजी से हमारी समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि महिलाओं पर बढ़ते अपराध का । महिलाएँ केवल घर के बाहर ही असुरक्षित नहीं है बल्कि घर में भी उसका शोषण और उत्पीड़न होता है । उसके सगे संबंधियों के द्वारा ही उनका बलात्कार, शोषण होता है कुछ के साथ तो यह कृत्य कई दिनों और वर्षों तक चलता रहता है। समाज के डर से वह अपने ऊपर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध आवाज नहीं उठा पाती लेकिन आज गांव, छोटे कस्बों ,शहरों की महिलाएँ समझ गई है कि हमें अपनी अस्मिता की लड़ाई स्वयं ही लड़नी होगी । जिसके लिए वह घूंघट से बाहर निकली है और लगातार संघर्ष करने के लिए प्रयत्नशील है । बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के माध्यम से भी गरीब और असहाय बेटियों का कल्याण हो रहा है ।
कल्याणी सरन
अध्यक्षा महिला आयोग
झारखंड
आज महिलाएं एवं बच्चियां सुरक्षित नहीं है कारण यह है कि पुरूष प्रधान समाज की आज भी मानसिकता बदल नहीं पाई है।एक ओर तो नारी के विभिन्न स्वरूप की पूजा अर्चना करते है किंतु दूसरी ओर बच्चियों को भी वासनात्मक दृष्टि से देखते हैं।यह दोहरी मानसिकता हमारे समाज में विकृतियां उत्पन्न कर रहा है। जब पुरुष महिलाओं को देवी तुल्य समझने लगेगा ,समाज में फैली विकृति स्वतः समाप्त हो जाएगा। दहेज प्रथा, दहेज उत्पीड़न समाज के लिए एक अभिश्राप है ।किंतु यह समाप्त होने के वजह दिनों दिन बढता जा रहा है क्योंकि आज का समाज पुरुष हो या महिला अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो गए है। वृद्ध महिलाओं की स्थिति दयनीय होती जा रही हैं क्योंकि आजकल एकल परिवार का प्रचलन अधिक हो गया है। जिससे बच्चे दादा दादी चाचा चाचा से दूर रहते है और पारिवारिक संस्कार नहीं सीख पाते है।वो अपने ही परिवार से अजनबी जैसा व्यवहार करते हैं जो पारिवारिक भावनात्मक लगाव होना चाहिए वह हो नहीं पाता।हमारा परिवार और समाज स्वार्थी होते जा रहा है।वह केवल अपना समय और पैसा सिर्फ़ खुद पर ही खर्च करना चाहते हैं।
नीरु सिंह
जिला अध्यक्ष, महिला मोर्चा
जमशेदपुर, महानगर
हमारी समाज और देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध बेहद ही चिन्तनीय एवं निन्दनीय है, आए दिन खबरों में बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और सबसे शर्मनाक होती है छोटी-छोटी बच्चियों के साथ होने वाले ऐसे अपराध ।आखिर हमारा परिवार समाज और देश किस ओर जा रहा है । न तो छोटी बच्चियाँ सुरक्षित है न ही बुजुर्ग महिलाएँ ।अब तो लगता है जैसे महिला होना ही अपने आप में अपराध है। उसके बाद तरह-तरह के लांछन ,उत्पीड़न समाज के लोगों और मीडिया द्वारा भी किया जाता है । अपराधी बेखौफ हो गए हैं ।आज भी हमारी समाज में दहेज का प्रचलन बंद नहीं हुआ है ।इसके उल्टे झूठी दिखावा और आडंबर से शादी करने का प्रचलन भी जोर शोर से है ।चाहे माता-पिता जितने भी पढ़े-लिखे क्यों न हो, उनके लिए भी पुत्र को ही जन्म देने की कामना रहती है । ऐसी सोच और मानसिकता के साथ समाज में बदलाव संभव नहीं है ।
नीतू सिंह
प्रेसीडेंट ऑफ लायंस क्लब कालीमाटी
भ्रूण हत्या को मैं जघन्य अपराध कहूं या इसको सही समझूँ ? क्यों आता है ये प्रशन मेरे मन में बार बार आखिर क्यों ? हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं!! बचपन से लेकर बडे होने तक कुछ गलत होने का डर , हर पल लगा रहता है !घर तक में भी शोषण हो जाता है !!! घर के ही तथाकथित ये मर्द अपने गन्दे हाथ हमारे शरीर तक पहुंचा देते है ।ये चचेरे ,ममेरे भाई!!!! शर्म आती है मुझे !!! इस मर्द जात से !! नही चाहिए ऐसा बेटा ,ऐसा भाई ! न जाने क्यों व्यथित मन से निकला ही जाता हैं ऐसा ज्वंलत विचार ।बेटे को ज्यादा प्राथमिकता देना क्योकि हमारी वंश वृद्धि करेगा ,ये सडी गली सोच आज भी हमारे समाज से गई नहीं है!!! तो अब बस मरने दो हमें कोख में ही ,नहीं जन्म लेना चाहती हम !!!!!चलने दो ये भ्रूण हत्या । हे ईश्वर मत भेज हमें कोख में ही !! हमारी वजह ये भ्रूण हत्या का शाप भी मत लगा लोगो पर!! रहने दे इस समाज को बिना बेटी के ,या फिर सोच बदल दें इस घटिया समाज की ।मैं तो इस बात से भी हैरान हूं कि आजकल के लड़के भी यदि एक लड़की पैदा हो जाये तो दोबारा लड़के के चक्कर में कितनी बार भ्रूण हत्या कर देते हैं ।उनसे भी ज्यादा मुझे गुस्सा उन बहनों पर आता है जो चुपचाप उस पति के आदेश को मानते हुए अपने शरीर के अंश को खत्म करने मे पति का साथ देतीं रहती हैं ।
अर्चना मित्तल
समाजसेविका और गृहिणी,
दिल्ली