अपने राम
इनके,उनके,किनके राम,
सबके होते अपने राम।
कबिरा के भी अपने राम,
तुलसी के भी अपने राम।
तन में राम,मन में राम,
सृष्टि के कण -कण में राम।
क्षण में राम, तृण में राम,
सब भक्तों के दिल में राम।
केवट के भी अपने राम,
सबरी के भी अपने राम।
सुग्रीव के भी वो राम
पवनपुत्र के भी वो राम।
कहां नहीं वो बसते राम,
वही तो हैं जगत के नाम।
हममें राम, तुममे राम,
सबमें हैं वो अपने राम।
डॉ विनीता कुमारी
पटना, भारत