अयोध्या की ऐतिहासिकता

अयोध्या की ऐतिहासिकता

 

अयोध्या की ऐतिहासिकता को समझने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि अयोध्या शब्द “अयुद्धा” का बिगड़ा हुआ रूप है ।अयोध्या के अस्तित्व का इतिहास आरंभ होता है सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु द्वारा इसे बसाए जाने से। विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण में उल्लेख है कि —

अयोध्या नाम नगरी तत्रासीत लोक विश्रुता।

मनुना मानवेंद्र या पुरी निर्मिता स्वयं ।।

पुण्य सलिला सरयू नदी के किनारे पर बसी अयोध्या नगरी की स्थापना वैवस्वत महाराज ने की थी। वैवस्वत का स्थिति काल लगभग 6673 ईसा पूर्व माना जाता है।

देश के विभिन्न पुस्तकालयों में रखे अनेक ग्रंथों के अनुसार अयोध्या पर प्रसिद्ध सम्राटों ने शासन किया ।रघुवंशी राजाओं की कौशल जनपद बहुत पुरानी राजधानी थी । वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों ने इस नगर पर लंबे समय तक राज्य किया। इस वंश में राजा दशरथ 63 वें शासक थे ।

उनके पश्चात उनके जगत‌‌ प्रसिद्ध पुत्र श्री राम ने यहां शासन किया जिनके प्रजाप्रिय शासन काल को आज भी समस्त विश्व में रामराज्य के रूप में आदर्श माना जाता है । फिर उनके पुत्र कुश ने इस नगर का पुनर्निर्माण करवाया।रामायण काल में यह नगरी कौशल राज्य की राजधानी थी ।जगत प्रसिद्ध राजा श्री राम के पुत्र लव ने श्रावस्ती नगरी बसाई थी ।बौद्ध काल में यह नगरी साकेत नाम से प्रसिद्ध हुई। संस्कृत के विश्व विख्यात महाकवि कालिदास ने उत्तर कौशल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों का ही नाम उल्लेख किया है।प्राचीन अयोध्या नगरी तो रामायण से भी पुरानी बताई जाती है ।अयोध्या नगरी बहुत से परिवर्तनों की साक्षी रही है। यह अयोध्या नगरी हिंदुओं के प्राचीन पवित्र स्थलों में से एक है । स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या नगरी भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।

श्री राम के पुत्र कुश के पश्चात इस नगरी पर सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक रघुवंश का ही शासन काल बताया जाता है ।फिर महाभारत काल में अभिमन्यु के द्वारा महाभारत के युद्ध में सूर्यवंश का वृहद् रथ मारा गया ।महाभारत युद्ध के पश्चात उजड़ी हुई अयोध्या नगरी में एक मान्यता के अनुसार सुंदर मंदिर बनवाया गया।

इस लेख की लेखिका को उज्जैन यात्रा के अवसर पर महाकाल मंदिर में दर्शनार्थियों से यह जानकारी मिली कि ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने आज की श्री राम जन्मभूमि स्थल पर काले रंग के 84 स्तंभों पर भव्य मंदिर के साथ कूप, महल , सरोवर आदि बनवाए। सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने इस मंदिर की पुनः साज -सज्जा करवाई।

अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्त वंशीय चंद्रगुप्त के समय अयोध्या लंबे समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी रही ।संस्कृत के महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंश में तो अनेक बार अयोध्या का उल्लेख किया है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या महापुरी 12 योजन 96 मील चौड़ी थी। आईने अकबरी में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस है ।सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग ने “पिकोसिया” कहकर अयोध्या की परिधि 16 ली (1/6) मील बताई है । संभवत उसने बौद्ध अनुयायियों के भाग को ही इस क्षेत्र में रखा हो ।उसके अनुसार इस नगरी में 20 बौद्ध मंदिर थे जिनमें लगभग 3200 भिक्षु रहा करते थे। यहां हिंदुओं का भव्य मंदिर भी था ।

अयोध्या में हिंदू ,जैन ,बौद्ध स्थलों की विद्यमानता के कारण इसको संयुक्त तीर्थ स्थल कहा जाता है ।अयोध्या नगरी जैन धर्म के तीर्थंकरों सर्वश्री आदिनाथ , ऋषभनाथ , अजीतनाथ अभिनंद नाथ ,सुमतिनाथ और अनंतनाथ की जन्म भूमि बताई जाती है ।कहा जाता है कि गौतम बुद्ध की प्रमुख उपासिका विशाखा ने बुद्ध के सानिध्य में अयोध्या में रहकर धम्म की शिक्षा- दीक्षा ग्रहण की। उसके द्वारा निर्मित बौद्ध विहार में ही भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके दांत दर्शनार्थ रखे गए थे।

भारत पर मुगलों के शासनकाल में सन 1527–28 में अयोध्या में विद्यमान भव्य मंदिर को क्रूरता पूर्वक तोड़कर इसके स्थान पर विवादास्पद बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। इतिहासकारों के अनुसार बिहार अभियान के समय बाबर के क्रूर सेनापति मीर बाकी ने श्री राम जन्मभूमि मंदिर को क्रूरता पूर्वक तुड़वाकर इसके ऊपरी भाग को एक मस्जिद का रूप‌‌ दे दिया ।

सन 1528 से 1852 के बीच इस विषय के घटनाक्रम की जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है, किंतु सन 1853 में निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि मंदिर को तुड़वाकर उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई गई , यह हानि हमें कदापि स्वीकार्य नहीं। इस बात पर हिंदू मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच दंगे हुए।

विभिन्न समाचार माध्यमों के अनुसार सन 1859 में अंग्रेजी सरकार ने मस्जिद के सामने दीवार खड़ी करवा दी ।1885 में महंत रघुवर दास फैजाबाद कोर्ट पहुंचे और बाबरी मस्जिद परिसर में श्री राम मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी।इसके बाद स्वाधीनता प्राप्त होने के पश्चात 1949 में हिंदुओं ने कथित तौर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की मूर्ति स्थापित की इसके विरोध में मुस्लिम लोगों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया ।

सन 1950 में गोपाल सिंह विशारद द्वारा फैजाबाद न्यायालय में अपील दायर कर श्री राम की पूजा के लिए अनुमति मांगी गई ।

सन् 1959 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे के हस्तांतरण के लिए मुकदमा दायर किया तो ,दूसरी ओर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने स्वामित्व जताते हुए मुकदमा किया ।

सन 1989 में मस्जिद से कुछ ही दूरी पर श्री राम मंदिर के निर्माण के लिये शिलान्यास हुआ।सन् 1992 में हजारों कार – सेवक अयोध्या पहुंचे ।सन 2001 में श्री राम मंदिर निर्माण की तिथि निश्चित हुई और सन 2002 में विश्व हिंदू परिषद के नेता के नेतृत्व में लगभग 800 कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारियों को मंदिर निर्माण हेतु बड़ी शिलाएं सौंप दी ।

अंततः पांच सदियों की लंबी लड़ाई के बाद 9 नवंबर , 2019 को श्री रामलला को उनका अधिकार मिला और अगस्त 20-20 को श्री राम मंदिर की भूमि पूजन का पावन आयोजन संपन्न हुआ । तब इस लेख की लेखिका के मन के भाव मुक्तक के रूप में कुछ इस प्रकार बह निकले —

“बीती निशा तम की , नया युग जो दिखाया राम ने।

श्री राम मंदिर के पुनर्निर्माण का साक्षी बने ।।

भूखंड जो भी राम की गाथा प्रमाणित कर रहा।

आओ नमन कर लें, झुका कर शीश उसके सामने।।”

अत्यंत गर्व एवं हर्ष का विषय है कि अब अयोध्या नगरी का नाम “अयोध्या धाम”, नगर के रेलवे स्टेशन का नाम “अयोध्या धाम जंक्शन” और विमान पत्तन का नाम “महर्षि वाल्मीकि हवाई अड्डा” है।

विशेष उल्लेखनीय है कि विश्व के असंख्य लोग अयोध्या धाम के श्री राम मण्डपम् स्थित श्री राम मंदिर में 22 जनवरी 2024 को श्री रामलला जी की‌ दिव्य मूर्ति की प्राण – प्रतिष्ठा के अलौकिक समारोह के ऑनलाइन और ऑफलाइन साक्षी बनेंगे।ऐसा ऐतिहासिक अवसर व्यक्ति के जीवन काल में एक बार ही आता है ।

नगरी मनभावन है।

सरयू के तट पर।

अयोध्या अति पावन है।।

उर्मिला देवी उर्मि 

साहित्यकार ,समाजसेवी ,पर्यावरण हितैषी

रायपुर,भारत

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