सैनिक का संदेश
घर से निकला था,
मादरे वतन की हिफाजत में।
मेरे इरादे और हौसलों में,
जीत का ही जुनून था।
ये तो मिट्टी का कर्ज़ था,
जो लहु देकर जा रहा हूँ ।
सौंप कर जा रहा हूँ ,
ये वतन तेरे हाथ में,
ए- मेरे नौजवान साथियों ।
मैं सरहद देखता हूँ ,
तुम सियासत देखो।
मैं बाहरी दुश्मनों को देखता हूँ ,
तुम भीतरी दुश्मनों को देखो।
ये शहादत तो मेरे जन्म लेने का मकसद थी
इसलिए
मैं वह आँसू नहीं जो,
छलक के आँखों से गिर जाऊँ ।
मैं वो जज्बा जो
तेरी सांसों में बस जाऊँ ॥
डाॅ उमा सिंह किसलय