अंतस् का संवाद …
तेरा तेरे अंतस् से होता हुआ संवाद हूँ !
या कह लो मैं शिक्षक हूँ , या कहो उस्ताद हूँ !
अंभ अगोचर पथ कंटकमय , हिय तनू आक्रांत तो
सत्य सनित मैं संबल सा नित काटता अवसाद हूँ !
मैं ही गीता की थाती हूँ , धौम्य का भी रूप मैं
नानक औ बुद्ध महावीर की वाणि का मैं नाद हूँ !
कितनी सदियाँ मुझमें बसतीं , आज कल औ कल यहाँ
भूत भविष्यत का योजक , एक यंत्र हूँ , प्रासाद हूँ !
तू मुझ में , मैं भी तुझमें , हम यूँ ‘किशन’ संबद्ध हैं
तू निष्पाप निर्वार्य सुधा मैं ज्ञान का उदमाद हूँ !
दामोदर कृष्ण भगत ‘किशन’
रांची, झारखंड