शिक्षा
विधिवत शिक्षा दे रहे , भाव हीन, नित ज्ञान ।
न संस्कार पोषित रहे, नहीं लेत संज्ञान ।
क्या होगा इस ज्ञान का, कहते प्रमाण पत्र ।
कोई नौकरी न मिलें, घूमो तुम सर्वत्र ।।
अब शिक्षा के नाम पर, होता है व्यवसाय ।
शिक्षा रही न दान अब , कैसे जग समझाय ।
तमस अर्थ का नाश हो , बुद्धि विवेक विचार।
शिक्षा से विद्या मिले , कहते हैं करतार ।
बेटा बेटी एक हैं , शिक्षा से सब नेक ।
शिक्षा जीवन दान है , सौ बातों की एक।
शिक्षा से माया मिटे , शिक्षा देती ज्ञान ।
सकल तमस का नाश कर, शिक्षा दे वरदान ।
प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड
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