एंजेला मिस
बात बहुत पुरानी है किन्तु बाल्यावस्था का वह अनुभव आज भी मेरे स्मृतिपटल पर अंकित है। मैं कक्षा पाँच में पढ़ती थी और अपने पठन-पाठन से संबंधित वस्तुओं के बारे में काफी सचेत रहती थी। विशेषकर गणित की पुस्तक के बारे में क्योंकि यह विषय सदा मेरे लिये टेढ़ी खीर ही बना रहता था।
उस दिन भी गणित की कक्षा चल रही थी। हमारी शिक्षिका, जिनका नाम एंजेला टिर्की था, ने आते ही उपस्थिति दर्ज कराने के बाद हम सभी छात्राओं को गणित की किताब में अध्याय चार खोलने की आज्ञा दी थी। मैनें झट से अपनी पुस्तक निकाल कर डेस्क पर रख लिया था। किन्तु मेरे बगल में बैठी सहपाठिन पूनम लगातार अपने पुराने से बैग में उलझी हुई थी, पुस्तकें उलट-पलट कर कुछ ढूँढ़ रही थी। कुछ देर बाद वह फुसफुसाई, ” लगता है पुस्तक घर में भूल आई। ”
यहाँ यह बताती चलूँ कि कक्षा में संबंधित विषयों की पुस्तकें लाना नितांत अनिवार्य था और ऐसा ना करने पर सज़ा मिलती थी। हमारी उमर बहुत कम थी और सज़ा का प्रावधान काफी डरावना लगता था। पूनम भी अब घबराई सी दिख रही थी। मुझे थोड़ी चिढ़ हुई, ” आखिर ये अपनी किताबें भूल क्यों जाती है? ” यह चिढ़ शायद इसलिए भी थी क्योंकि पूनम गणित में मुझसे कहीं बेहतर थी। खैर, हमारी टीचर (जिन्हें हम एंजेला मिस बुलाते थे) ने भी इसका संज्ञान लिया और पूनम को उन्होनें सख़्ती से हिदायत दी कि आगे से वो ऐसा ना करे। साथ ही मुझे आदेश दिया कि मैं अपनी पुस्तक पूनम के साथ साझा कर उस दिन की पढ़ाई पूरी करुँ।
मुझे अच्छा तो नहीं लगा किन्तु टीचर की आज्ञा के आगे तो नतमस्तक होना ही था। अंदर ही अंदर कुड़मुड़ाते हुए मैने पूनम के साथ अपनी पुस्तक साझा की। पूनम ने भी मेरा रूखापन अच्छी तरह भाँप लिया था।
अगले दिन पुनः गणित की कक्षा में पुस्तक निकालकर अध्याय चार खोलने का आदेश मिला। मैने झटपट बैग खोला और पुस्तक निकालने की कोशिश की। किन्तु यह क्या…. पूरा बैग खंगाल लिया लेकिन मेरी गणित की पुस्तक का कहीं नामों-निशान नहीं था। कल इसी क्लास में तो मैने उसे अंदर रखा था! आखिर किताब गई कहाँ….. खुद के पँख लग गए या जमीन निगल गयी!
मैं घबराहट में किताबें उलट-पुलट कर रही थी कि तभी मैनें पास बैठी पूनम को अपने बैग से नई जिल्द चढ़ी हुई गणित की किताब निकालते देखा। मैने सोचा, आज सज़ा की बारी मेरी है। एंजेला मिस ने भी मेरी उहापोह को भाँप लिया था। बेहद गंभीरता से उन्होनें आज पूनम को अपनी किताब मेरे साथ साझा करने की आज्ञा दी। मैं खिझे मन से पुस्तक के पन्ने पलटने लगी।
किन्तु तभी कुछ देखकर मेरा माथा ठनका। पुस्तक के एक पृष्ठ पर हूबहू वही चित्रकारी थी जो मैने अपनी गणित की पुस्तक पर कर रखी थी। फिर क्या था, मैने जल्दी-जल्दी बाकी के पन्ने पलटने शुरू कर दिए और शीघ्र ही इस निश्चय पर पहुँच गयी कि यह किताब वास्तव में मेरी ही थी,पूनम की नहीं।पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर से मेरा नाम काटकर,बहुत बचकाने तरीके से, पूनम का नाम लिखा हुआ था। बस, फिर क्या था, मैनें तुरंत एंजेला मिस को शिकायत की, बताया कि पूनम के पास मेरी ही किताब है। पूनम का चेहरा सफेद पड़ गया था और वह बेहद घबराई सी लग रही थी।ऐसा लग रहा था मानो अभी रो पड़ेगी। एंजेला मिस ने चुपचाप कुछ देर पूनम को निहारा, मानो कुछ पढ़ने की कोशिश कर रही हों, और फिर पता नहीं क्या सोचकर हमदोनों को बैठकर उसी किताब से आगे पढ़ने की आज्ञा दे दी। कक्षा में जो खुसर-फुसर शुरू हो गयी थी उसको उन्होनें अपने सख्त लहजे से दबा दिया। बाद में मेरी किताब मुझे दे दी गयी।
अब मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था।आखिर मिस ने पूनम को लताड़ा क्यों नहीं? कितना ग़लत काम किया था उसने! मेरी किताब चोरी की थी! और मिस ने बस उसे ध्यान से देखा और कुछ नहीं कहा! सज़ा देने की बात तो दूर, उसे डांटा तक नहीं!
क्लास खत्म होने के बाद एंजेला मिस ने पूनम को इशारे से बुलाया और उसे स्कूल के बाद स्टाफरूम में मिलने के लिये कहा। मुझे थोड़ी आशा जगी… अब सज़ा मिलेगी उसे!
अगले दिन जब मैं स्कूल पहुंची तो यह अपराध बोध भी कचोट रहा था कि मेरी शिकायत की वजह से पूनम को कहीं बहुत कड़ी सज़ा न मिल जाए। उसने गलती तो की थी लेकिन जो़र की डाँट काफी थी। आज तो पूनम बेहद सकपकाई होगी, किसीसे नजरें भी नहीं मिला पाएगी। अभी तो नहीं, हां थोड़े दिनों बाद मैं उससे वापस दोस्ती कर लूंगी।
किन्तु जब कक्षा शुरू हुई और मैने पूनम की तरफ देखा तो वहाँ कोई सकपकाहट या सकुचाहट नहीं थी। वह तो आत्मविश्वास से भरी हुई एक अलग ही चित्र प्रदर्शित कर रही थी। गणित की कक्षा में उसने अपनी चकाचक नई किताब निकाली और अध्याय में दिए सवालों पर अपना ध्यान केँद्रित कर दिया। उसने जब मुझे घूरते हुए पाया तो हल्की सी मुस्कान फेंककर वापस पुस्तक पर नजरें गड़ा लीं।
मैं हतप्रभ रह गयी। एंजेला मिस ने कल इसे स्टाफरूम में बुलाया था, अवश्य ही कुछ फटकार तो लगाई होगी। किन्तु इसपर तो कोई असर होता नहीं दिख रहा! उल्टा और निश्चिंत और आत्मविश्वास से भरी दिखाई दे रही है!
थोड़े दिनों बाद ये बात पुरानी हो गयी किन्तु मेरे मन के एक कोने में कहीं पैठ कर गयी। समय बीता और हम बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश कर गए। पूनम कक्षा पाँच के बाद से ही स्कूल छोड़ कर चली गयी थी। सुना था शहर के ही एक अपेक्षाकृत साधारण स्कूल में उसने दाखिला ले लिया है। एंजेला मिस अभी भी कभी-कभार दिख जाती थीं। अब वह हमारी गणित टीचर नहीं थीं। जब भी मेरी नजरें उनसे मिलतीं, शायद वो मेरी आँखों में उमड़े सवालों को पढ़ने की कोशिश करतीं। एक दिन उन्होनें मुझे स्टाफरूम में बुला भेजा और स्कूल के बाद मिलने को कहा। मैने सिर हिला दिया। मुझसे क्या बात करना चाहती होंगीं एंजेला मिस?
छुट्टी की घंटी बजते ही मैं धड़कते दिल सें स्टाफरूम की ओर चल दी। थोड़ी घबराहट भी थी। क्या एंजेला मिस ने वह कटुता मेरी नजरों में पढ़ ली थी जो बरसों पुराने उनके पूनम के प्रति किये गए पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण मेरे हृदय में पैदा हुई थी?
मुझे देखते ही उन्होनें बड़ी सौम्यता से मुझे सामने पड़े बेंच पर बैठने को कहा और सीधे मुद्दे पर आ गयीं,
” मुझे पता है, तुम बरसों पुरानी उस बात से आहत हो। किन्तु अब जब मैं सारी बात तुम्हें बताऊँगी तो तुम भी मेरे व्यवहार को समझ जाओगी। ये बातें तुम्हें पहले नहीं बताईं क्योंकि उस वक्त तुम बहुत छोटी थी और इन बातों की संवेदनशीलता को नहीं समझ सकती थीं। किन्तु अब मुझे पूरा विश्वास है कि तुम भली-भांति समझ पाओगी।
पूनम जब कक्षा पाँच में तुम्हारे साथ बैठती थी, उस वक्त वह व्यक्तिगत और भावनात्मक स्तर पर बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रही थी। उसके पिता की हाल ही में मृत्यु हो गयी थी और वह अपनी माँ के साथ मामा के घर रहने आ गयी थी। उसका ममेरा भाई उदंड किस्म का लड़का था और सिगरेट की लत ने उसे चोर बना दिया था। वह अक्सर पूनम के बैग से उसकी किताबें चुराकर बेच देता था ताकि उसके सिगरेट का जुगाड़ हो जाए। बेचारी पूनम नई किताब भी नहीं खरीद सकती थी और मामा से शिकायत भी नहीं कर सकती थी।
पुस्तक चोरी की उस घटना के दिन जब मैने उससे स्टाफरूम में बुलाकर बातें कीं तब उस मासूम बच्ची ने अपना सारा दर्द उड़ेल दिया। वह खुद बेहद शर्मिंदा महसूस कर रही थी। यह अपराधबोध कहीं उसके अंदर हीन भावना को ना जन्म दे दे इसलिए मैने उसके साथ सहानुभूति और नरमता से काम लिया। वरना वह छोटी सी बच्ची बिल्कुल टूट जाती। उस उमर में सही-ग़लत का उतना अंदाजा नहीं होता..,.यह हम बड़ों का कर्तव्य है कि सही रास्ता दिखाएं ।
तुम्हें तो यह भी पता नहीं होगा कि उस दिन की घटना के बाद पूनम की माँ ने अपने भाई का घर छोड़ दिया था और कपड़ों के एक शोरूम में नौकरी करने लगी थीं। अपनी सीमित आय से ही बेटी को पढ़ाने का निश्चय कर उन्होनें पूनम को अत्यंत साधारण स्कूल में डाल दिया था। तुम अंदाजा लगा सकती हो कि यह परिवर्तन पूनम के लिए कितना दुखदाई रहा होगा। फिर भी उसने अपने आपको परिस्थितियों के हिसाब से ढाला और अपनी योग्यता के बल पर आज बहुत अच्छा कर रही है। स्कूल प्रशासन ने उसकी फीस भी माफ कर दी है और कल जो दसवीं के परिणाम आए थे,उसने स्कूल में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया है! अगर मैं उस दिन स्थिति को समझे बगैर प्रतिक्रिया दे देती और पूनम के प्रति कठोरता बरतती तो उसका आत्मविश्वास आहत हो जाता और शायद वह इतना अच्छा न कर पाती। आशा है अब तुम मेरी बात समझ रही होगी। ”
इतना कहकर एंजेला मिस चुप हो गयी थीं। पर मेरी आँखों से आँसू, जो थोड़ी देर पहले ही बहना शुरू हुए थे, रुक ही नहीं रहे थे। इसका मतलब, उस दिन पूनम को अपमानित करने या अपराधी जताने की बजाय एंजेला मिस ने सहानुभूतिपूर्वक उसकी परेशानी जानने की कोशिश की थी और परिस्थितियों से कैसे लड़कर आगे बढ़ना है यह सलाह भी दी थी।उस दिन यह भी पता चला कि पूनम को नई गणित की किताब एंजेला मिस ने ही दिलाई थी। यह भी कि वह खुद अपने पति को एक नक्सली आक्रमण में खो चुकी थीं और मुश्किलों से गुजरते हुए अपना एवं किशोरवय पुत्र का निर्वाह कर रही थीं।
मैं ग्लानि के भँवर में डूब-उतरा रही थी। एंजेला मिस के पढ़ाने के तरीके के क़ायल तो हम पहले ही थे लेकिन अब उस सरल, सादगी में लिपटी हुई मूरत का दमकता हुआ व्यक्तित्व मुझे चकाचौंघ कर रहा था!कितनी समझदारी, कितनी सहानुभूति से उन्होनें पूनम के मामले को संभाला था! उनकी शिष्टता, माधुर्य, और सौम्यता के आगे मैं अपने आपको कितना बौना महसूस कर रही थी!
इस मुलाकात को भी कई वर्ष बीत चुके हैं।आज फिर मैं एंजेला मिस के सामने खड़ी हूँ। मेरी आँखों से अश्रु की धारा आज भी अविरल वह रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि मुझे सांत्वना देने के लिए, मेरे कंधे थपथपाने के लिए एंजेला मिस के हाथ नहीं उठ रहे…. क्योंकि वह चिरनिद्रा में सो गयी हैं। उनके ताबूत को नीचे मिट्टी में झुकाया जा रहा है और मैं बेबस उस सहृदय आत्मा के सामने मस्तक झुकाए खड़ी हूँ। गुड बाए एंजेला मिस !
रेखा सिंह
मुंबई, महाराष्ट्र