गुरु बिना ज्ञान नहीं

गुरु बिना ज्ञान नहीं

शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने बचपन की याद आना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे गुरुओं से हम मिलते हैं जो जीवन में एक याद छोड़ जाते हैं।ऐसे ही मेरे हिंदी के एक टीचर जी थे उन्हीं से संबंधित एक घटना अपने स्कूल के दिनों की याद ताजा कर जाती है।अनुशासन का पाठ और बड़ों का सम्मान शिक्षा के साथ-साथ यह भी जीवन के महत्वपूर्ण पहलू है यह मुझे एक घटना से समझ में आया।

कक्षा आठवीं की बात है। मैं अपने स्कूल में एक मेधावी छात्रा के रूप में जानी जाती थी एवं इसके साथ ही स्कूल के विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में भी मैं भाग लेती थी यहां तक की प्रोग्राम की जिम्मेदारी भी मैं अपने कंधों पर ले लेती थी इसलिए सभी शिक्षकों की प्रिय थी। हमारी कक्षा में हिंदी पद्य एक सर पढ़ाते थे जो बहुत ही सुंदर ढंग से कविताओं की व्याख्या करते थे ।मुझे उनका पढ़ाने का ढंग बहुत पसंद था और इतनी अच्छी तरह समझाते थे कि एक ही बार में कविता समझ में आ जाती थी। उसके बाद सर कक्षा में सबसे कहते थे कि आप अपनी भाषा में मुझे इसका अर्थ समझाओं। मैं झट से हाथ उठाती और जब सर इशारा करते तो मैं उन्हें भावार्थ अपनी भाषा में बताती सर बहुत खुश होते थे और कभी कभी अन्य छात्रों से कहते थे कि सिर्फ सीमा ही क्यों बताती है तुम सब क्या कथा सुनने आए हो। मैं उनकी बहुत इज्जत करती थी । लेकिन इंसान गलतियों का पुतला है भूल तो सभी से हो जाती है।एक दिन कक्षा में सर पढ़ा रहे थे इसी बीच प्रिंसिपल ऑफिस से चपरासी आया और उसने सर से कहा सीमा त्रिवेदी को प्रिंसिपल मैम बुला रही है। किसी प्रोग्राम की तैयारी चल रही थी मैं झटपट कक्षा से निकली लेकिन मैं सर से आज्ञा लेना भूल गई । प्रिंसिपल मैम के कक्ष में 10 मिनट का कार्य था मैं वह करके फटाफट सर की क्लास अटेंड करने के लिए कक्षा की तरफ बढ़ी और कक्षा में जाने के पहले सर से आज्ञा मांगी सर ने मुझसे कहा नहीं तुम बाहर ही खड़ी रहो। मेरे स्थिति कांटो तो खून नहीं जैसी हो गई। मैंने सोचने लगी क्या गलती कर दी तब मुझे याद आया कि मैं तो सर से बिना पूछे ही कक्षा से बाहर निकल गई थी। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया था लेकिन फिर भी बालमन मुझे सर पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था मेरे साथ।कक्षा के सारे छात्र भी सन्न रह गए क्योंकि मैं उन सर की प्रिय छात्रा थी।
अन्य कक्षाओं में आते जाते सभी शिक्षक गण मुझे आश्चर्य से देख रहे थे क्या सीमा यहां कैसे। खैर सर का पीरियड खत्म हुआ सर बाहर आए और मुझसे बोले तुमने गलती की थी इसलिए मैंने सजा दी कि आगे से तुम ऐसी गलती नहीं करना। मैं कक्षा में आई तो हम सब दोस्त मिलकर सर के ऊपर नाराज होने लगे और मैंने सोचा अब मैं कल से सर की क्लास में कुछ नहीं बोलूंगी।

दूसरे दिन फिर कक्षा शुरू की सर ने कविता समझाई और फिर रोजाना की तरह सर ने कहा कौन-कौन इसका अर्थ समझाएगा हाथ उठाओ और मेरी तरफ देखने लगे, मैं एक सेकेंड के लिए गुस्सा में तो थी लेकिन फिर मुझे लगा कि सर ने मेरी भलाई के लिए ही मुझे वह सजा दी जिससे कि भविष्य में ऐसी गलती ना करूं और मैंने तुरंत अपने गुरु का सम्मान करते हुए अपना हाथ ऊपर उठाया सर एकदम खुश हो गए और उन्होंने मुझसे कहा हां बताओ। क्लास खत्म होने के बाद मैंने सर से क्षमा मांगी और उनसे वादा किया कि ऐसी गलती मैं फिर दोबारा नहीं करूंगी।
अनुशासन का यह पाठ जो मैंने अपने जीवन में उनसे सीखा वह आगे मेरे जीवन में बहुत काम आया और मैं आभारी हूं अपने गुरु जी जिन्होंने हमारी नींव मजबूत की तो आज एक मजबूत पेड़ के रूप में हम समाज में खड़े हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं अपने सभी गुरुओं का सादर नमन करती हूं। चरित्र निर्माण के लिए जीवन में शिक्षा के साथ-साथ अनुशासन का भी बहुत महत्व है।

सीमा बाजपेई
जमशेदपुर, झारखंड

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