गुरु महिमा
गुरु जन के उपकार बहुत है ।
गिनती हम नहीं कर पाते ।।
पूरा जीवन कम लगता है ।
उनकी महिमा गाते गाते ।।
कोरे कागज जैसे मन पर ।
गुरु ज्ञान की बात सजाते ।।
सच्चा मानव कैसे बनते ।
पाठ हमें यह रोज पढ़ाते ।।
शिखर सफलता के पाने की।
राह सही गुरुजन बतलाते ।।
बाधाओं से लड़ना सिखलाते ।
विश्वास जीत का रोज बढ़ाते ।।
शिष्यों का उत्कर्ष देखकर ।
सच्चा सुख गुरुजन हैं पाते ।।
इसीलिए गुरु चरणों में “उर्मि” ।
भगवन भी निज शीश झुकाते ।।
उर्मिला देवी उर्मि
साहित्यकार, समाज सेवी, शिक्षिका
रायपुर, छत्तीसगढ़