दीदीःशक्ति पुँज शिक्षिका
एक शिक्षक के रूप में दीदी. (डॉ वीणा श्रीवास्तव) जब मेरे जीवन में आयीं…उस वक़्त किशोरावस्था की उम्र थी मेरी, जीवन की सबसे नाजुक और महत्वपूर्ण अवस्था। इस उम्र में यदि अच्छे शिक्षक मिल जाए…सही मार्ग दर्शन मिल जाए तो जीवन संवर जाता है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ।
एक शिक्षक के रूप में दीदी का व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली और अनुकरणीय था। परम विदुषी..महान शिक्षाविद् थी। अपने नाम के अनुरूप साक्षात् मां सरस्वती का रूप थीं।
दीदी जब हमलोगों का एम.आई. एल.(बी.ए.प्रथम वर्ष) की क्लास लेतीं तो सारी लड़कियां मंत्र मुग्ध …उन्हें सुना करती ..सहज सरल सुन्दर भाषा..खूबसूरत शैली..हृदय को छूती अत्यन्त मीठी आवाज़..इतना अच्छा पढ़ाती..समझाती कि दोबारा किताब खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।
दीदी का व्यवहार छात्राओं के प्रति आत्मीयता पूर्ण..मित्रवत था। दीदी विनोद प्रिय भी खूब थीं।उन दिनों कुछ लड़कियां ‘गुलशन नन्दा’ एवं ‘कुशवाहा कांत’ का उपन्यास पढ़ा करती थीं। दीदी उन्हें विनोद पूर्ण लहज़े में समझाया करतीं – ” मन बहलाने के लिए कभी पढ़ लीजिए तो चलेगा वरना याद रखिए साहित्यिक हाज़मा ख़राब हो जाएगा। जिस तरह समोसे , चाट आदि खाना अच्छा लगता है किंतु ज़्यादा खाइएगा तो सोंचिए कौन सा हाज़मा ख़राब होगा..इसलिए ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें..प्रेमचंद,रेणु,अज्ञेय,अमृत लाल नागर,महादेवी वर्मा आदि को पढ़िए..साहित्यिक आकाश मिलेगा..।”
जब मैंनें बी. एड. में प्रथम स्थान प्राप्त किया तो दीदी ने मुझे ‘बधाई-संदेश’डाक द्वारा भेजा (उन दिनों मैं बोकारो में थी )। यह मेरे लिए ईश्वरीय वरदान से कम नहीं था। दीदी की प्रेरणा से ही मैंने एम. एड. भी किया।
दीदी के चरणों में मैंनें दुनियादारी और व्यावहारिक ज्ञान की भी शिक्षा प्राप्त की।
जब मेरी शादी हुई तो मुझसे कहा -“देखो शशि, नई दुनिया में प्रवेश कर रही हो, सुखी रहना। बस इतना याद रखना कि इन्सान जब किसी को अपनाता है तब तमाम अच्छाईयों एवं बुराईयों के साथ अपनाता है..बाक़ी तुम ख़ुद समझदार हो।”
जीवन की राहों पर जब आगे बढ़ती गयी..पग-पग पर दीदी की बातों को चरितार्थ होते देखा..उन्हें हमेशा अपने साथ पाया।
जीवन में कई ऐसे मोड़ आए जब दीदी की व्यावहारिक ग़हरी बातों ने मुझे विस्मित और चमत्कृत भी किया..एक नई दृष्टि और उर्जा के साथ ।
मेरा अनुभव है कि यदि आप सच्ची श्रद्धा और प्रेम से गुरु को समर्पित होते हैं उनका अनुकरण करते हैं तब आप अवश्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगें..एक बेहतर इन्सान बनेंगें।
शिक्षक के रुप में दीदी का मेरे जीवन में आना..अभूतपूर्व..अद्भभुत अनुभव रहा।एक बेजान सी मूरत थी मैं दीदी ने प्राण फूँक दिए… सांसे मिल मिल गयी मुझे ।
दीदी द्रोणाचार्य नहीं थीं कि अपने वचन को पूरा करने के लिए एकलव्य का अँगूठा माँग लेती वो इनसे कहीं ऊपर थीं। गुरु सन्दीपनि मुनि सी छवि थी उनकी कृष्ण सुदामा सबके लिए एक सा भाव और प्रेम रखती थीं। दीदी जीवन मूल्यों की…मानवीय मूल्यों की संरक्षक और सम्पोषक थीं।आजीवन इसका संबर्द्धन करती रहीं।
शिक्षक बन आपने मुझे थामा है।भगवान का एहसास मैंनें पाया है।।
शशि सिन्हा,
व्याख्याता,
डॉ. एस. राधाकृष्णन कॉलेज ऑफ़ ऐजुकेशन,
बोकारो