मेरे प्रथम गुरु

मेरे प्रथम गुरु

हर छोटी बड़ी बात वो
समझाते हैं प्यार से,
कभी किसी गलती पर
आंखे दिखाते ,
कभी हाथ फेरते सर पर मेरे
दुलार से, मनुहार से!!
जीवन की हर पेचीदगी
उनके मार्गदर्शन से ही हल हुए
उनकी सही दिशा -दर्शन से
निर्बल हौसले मेरे सबल हुए!!
तुम केवल कर्ता हो
अपने सुकर्म करते रहो
डटे रहो जीवन पथ पर
चलते रहो बढ़ते रहो,
ऐसी ही अमृत वाणी से
मेरे मन को मजबूत किया
जब -जब बुझी मैं हताश होकर
उम्मीद का दीया जला दिया!!
मेरे पिता मेरे प्रथम गुरु
उनको मेरा सादर प्रणाम,
उनका आशीष सर पर हो सदा
मांगू ईश्वर से यही वरदान!
मां की क्या बात करूं
सादगी की मूरत वो,
सच्चाई से जीवन जीना
अपनी सीमा का रखना भान,
उसने ही सिखलाया मुझको
सही -गलत की सही पहचान!!
दया धर्म का ज्ञान दिया
सादगी से जीना सिखलाया,
कर्म बड़े होते हैं पद नहीं
मानवता को ही बड़ा बतलाया!!
मां का आंगन गुलज़ार रहे
ऐसी हर दम दुआ मेरी,
रहे उनका साथ जीवन में
वो पथ प्रदर्शक मेरी!!

अर्चना रॉय
प्राचार्या सह साहित्यकार
रामगढ़ ,झारखंड

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