स्वतः एक बदलाव

स्वतः एक बदलाव

आज पूरा विश्व कोरोना की महामारी से त्रस्त है। दुनियाभर को पीड़ित करने वाला कोरोना वायरस प्रकृति से ‘जूनेटिक’ है। इसका मतलब यह है कि यह जानवर से मनुष्यों में फैलता है लेकिन कोविड 19 जैसे कुछ कोरोना वायरस मनुष्यों से मनुष्यों में फैलते हैं। कोरोना एक खास प्रकार का वायरस है जिसके सतह पर काँटे होते हैं और यह सेल्स पर हमला करते हैं। इस महामारी से पहले तक केवल छह तरह के कोरोना वायरसों की जानकारी थी। कोविड19 सातवां कोरोना वायरस है जिसकी पहचान हुई है।

कोरोना से संघर्ष एक देश का नहीं है ना किसी एक सम्प्रदाय का है बल्कि यह संघर्ष मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिये है।क्योंकि इस वायरस से ग्रस्त एक व्यक्ति कम से कम एक लाख लोगों को संक्रमणयुक्त बनाने की क्षमता रखता है। इस युद्ध में प्रत्येक नागरिक ही योद्धा है।

पिछले डेढ़ महिने से अधिकांश दुनिया लॉकडाउन में है। कई बार जब मैं अपनी बाल्कनी में खड़ी होकर बाहर सड़क की तरफ देखती हूँ तो सर्वत्र सन्नाटा पसरा नज़र आता है। सूने-सूने सड़क जिसे मैने पहले कभी देखा नहीं था। कभी कोई इक्का दुक्का व्यक्ति साइकिल से आता-जाता दिखता है या फिर कोई कुत्ता यहाँ- वहाँ घूम रहा होता है। लॉकडाउन इस महामारी से जंग लड़ने के लिये है पर अब धीरे धीरे इसके सापेक्ष परिणाम नज़र आने लगे हैं।

बुद्धिजीवी वर्ग में चिन्तन मनन का विषय बन गया है- कोरोना। जहाँ इस महामारी से लोग जूझ रहे हैं वहीं इनमें यह बहस छिड़ गई है कि हालात सामान्य होने के बाद देश और समाज की परिस्थितियों में कैसा बदलाव आयेगा? यूँ तो यह सवाल सब के जेहन में है पर समाजशास्त्रियों एवं साहित्यकारों ने तो इसे चिंतन का विषय बना लिया है। उनका मानना है कि इससे हमारे जीवन और व्यवहार में काफी परिवर्तन आयेगा।
कोविड19 से निजात पाने के लिये अभी तक कोई दवा का ईज़ाद नहीं हो पाया है इसलिये इससे लड़ने के लिये जो हथियार अपनाये गये हैं वो सचमुच हमारे रोजमर्रा की जिन्दगी को प्रभावित ही नहीं करेगा बल्कि अमूल परिवर्तन भी लाएगा। इस युद्ध से लड़ने में सबसे बड़ा हथियार आत्मसयंम और आपसी सद्भाव है। कोरोना वायरस से बचाव का सबसे अच्छा तरीका सावधानियां,सतर्कता और जागरुकता है क्योंकि अपनी सुरक्षा के साथ-साथ हमें समाज की भी सुरक्षा करनी है। यह सुरक्षा हम स्वच्छता एवं स्वयं को एकांतवास में रख कर ही कर सकते हैं जिसे सामाजिक दूरी बनाना या “सोशल डिस्टेंसिँग” कहते हैं। सफाई का पूरा ध्यान रखना,हाथ-पैर धोना,मुँह पर मास्क लगाना आदि कुछ सावधानियां हैं तथा अपने खान पान पर ध्यान देना एवं अपनी “इम्युनीटि पावर” को बढ़ाना अति आवश्यक है।
जिन तरीकों को हम ढ़कोसला मानने लगे थे आज वही कोरोना से बचाव का सबसे बड़ा उपाय है बना रहा है। समय के प्रवाह में और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हमने कई बातों को नज़र अंदाज़ कर दिया था। शुरु से ही हमारी भारतीय संस्कृति रही है कि जब भी बाहर से आयें हाथ पैर धो के ही घर में प्रवेश करें, खाना खाने के पहले और बाद में हाथ धोना, चप्पल जूते घर के बाहर रखना, शौच के बाद हाथ धोना और स्नान करना, शौच एवं स्नान के लिये आंगन या घर के पीछे अलग व्यवस्था करना, बच्चे होने पर उनकी अलग व्यवस्था करना, पीरियड के दिनों में महिला को अलग रखना विशेष ध्यान देना अर्थात उन्हें एक तरह से क्वारेन्टाईन में रखना क्यूंकि उन्हें उस समय बाहरी संक्रमण से बचाना होता है,बिना जरुरत के बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाना और अन्तिम संस्कार में शामिल होने वाले श्मसान घाट से घर आकर पहले स्नान कर के ही बाद में दूसरा कार्य करना, पूरा परिवार भी कम से कम 12/13 दिन अलग रहता है आदि हमारे जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा थे पर समय के अनुसार हमने इसपर ध्यान देना बन्द कर दिया था और इसे दकियानूसी और ढकोसला का नाम दे दिया था। भारत में साफ- सफाई और तन-मन की शुद्धता पर हमेशा ध्यान दिया गया है। भारत की इन सभी पुरानी आदतों का वैज्ञानिक पहलू है जिसे हम नकार नहीं सकते। आज जो हमारे समक्ष परिस्थिति आई है ,,,इन पूराने पहलुओं से हमें रु-ब-रु करा रही है।
गाँव में लोग शुरु से ही आइसोलेशन में रहे हैं। सडक से दूर खेतों के बीच गाँव होते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रकृति के बीच वे शुद्ध आबोहवा के बीच रहें। आज जब आइसोलेशन की बात हो रही है तब हमारा गाँव ही आज बेहतर नज़र आने लगा है।हमारी संस्कृति पूरी तरह से प्रकृति से जुड़ी है। आज कहा जा रहा है है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता उन्हीं में ज्यादा है जो प्रकृति के नजदीक रहते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के संक्रमण का खतरा कम होता है। आज जो हम खुली हवा, धूप,पानी से खुद को बचाने लगे हैं जिसके कारण हमारा शरीर विभिन्न बिमारियों का घर बन गया है। हमारे शरीर के लिये धूप और हवा बहुत जरुरी तत्व है। एसी में रहने वालों को खतरा ज्यादा है।आज रेस्टोरेंट बन्द है,कार्यालय का एसी बन्द है,ट्रेन बन्द है,मॉल बाज़ार बन्द है। चिड़ियों की चहचहाट,शुद्ध वायु,शुद्ध पर्यावरण, नदियों का स्वच्छ जल प्रवाह,,,जिसके लिये सरकार जी तोड़ मेहनत कर रही थी आज स्वत: ही गंगा-यमुना स्वच्छ होती जा रही है। आज आसमान भी साफ है और तारे भी चमक रहे हैं।आज दिल्ली की आबोहवा साफ है। बल्कि नोएडा जैसे क्षेत्र में नीलगाय,हिरन विचरण करते दिख रहे हैं। चंडीगढ़ में तेंदुए घूमते दिख रहे हैं। इसका मतलब है कि इंसानी जीवनशैली ने प्रत्यक्ष रुप से पारिस्थिति की तन्त्र को प्रभावित किया है।सच पूछा जाये तो हमें पुन: प्रकृति की ओर लौटना है और अपने जीवन शैली में आमूल-चूल बदलाव लाने की आवश्यकता है।निश्चित ही अब हम अपनी आदतों में सुधार लायेंगे। कोविड 19 की महामारी के बाद रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी भविष्य की तस्वीर साफ झलक रही है।

सबसे पहले तो हमारे व्यक्तिगत आदतों में बदलाव आयेगा। पूर्ण सफाई की आदत अनिवार्य रुप से अपनानी होगी। हर बार हाथ-पैर चेहरा धोना,स्नान की प्रवृति आदि अपनानी होगी। इधर उधर थूकने की आदत छोड़ना होगा। बिना मतलब मॉल बाज़ार में घूमने,सिनेमा देखने, क्लब जाने, बार जाने,कहीं भी खड़े होकर चाट-गोलगप्पे मिठाई आदि खाने,बड़ी पार्टियों के आयोजन से,अनावश्यक यात्रा को आदि की प्रवृति में बहुत सुधार या बदलाव आने की सम्भावना है। कोरोना का तांडव खत्म भी अगर हो जाये तब भी हम हाथ मिलाने,गले लगने,भीड़ से बचने या यूँ कहे समाजिक दूरी को बनाये रखें।

जिस महामारी से आज हम सभी त्रस्त हैं यह हमें निश्चित ही ध्यान, योग, व्यायाम, प्रार्थना,,, आदि की ओर ले जायेगा। जिसे हमने ढकोसला कह कर हम बहुत वर्षों तक भूला दिये थे,,आज उसे अपनाना होगा । वैदिक दर्शन तो हजारों सालों से मानता रहा है कि ऊर्जा ही अपने शुद्धतम स्वरुप में वह चेतना है जो जीवन का निर्माण करती है।इसी में पांच तत्व धरती,वायु,आकाश,पानी,अग्नि अंतर्निहित है।अब विज्ञान भी मानने लगा है कि सृष्टि पदार्थ और ऊर्जा से मिल कर बनी है। इसीलिये भारतीय जीवन शैली में मन्दिरों और घरों में सुबह शाम पूजा के समय विभिन्न वाद्ययंत्र बजा कर नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के उपाय थे।ध्वनियों के निकलने से जीवाणु,विषाणु,कीटाणु मर जाते हैं या बेअसर हो जाते हैं। इसलिये हमने ताली थाली घंटी और शंख बजाये उसकी सार्थकता सिद्ध होती है। ये संकट हमें पारंपरिक ज्ञान और वातावरण की शुद्धता,पवित्रता दिव्यता की ओर ले जायेगा।

इस संकट ने परिवार नाम की संस्था को एक नई संजीवनी दी है। लोग अपने परिवार के साथ अधिक से अधिक क्वालिटी समय व्यतीत कर रहे हैं। जो विदेश में भारतीय रह रहे थे अब उनमें भावात्मक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के लिये अपने स्वदेश और परिवार के पास लौटना बेहतर लग रहा है।पड़ोसियों से जो वर्षों से बोलचाल बन्द थी, वह कड़वाहट दूर हुई है।सम्वेन्दनशीलता बढ़ी है।

नगरीय समाज की व्यक्तिवादिता,सामुदायिक संवेदनशीलता,और मानवीय बोधहीनता से युक्त दिख रही है।अनौपचारिक संबंधों में जिस औपचारिकता,संवेदनशीलता,सम्वादहीनता एवं तटस्थता आ गई थी,,,कोरोना संकट के कारण सकारात्मक परिवर्तन आयेगा।

खानपान में भी परिवर्तन आयेगा।चाईनिज और पश्चिमी भोजन के प्रति जो लगाव था,अब थोड़ा कम होगा और लोग खाना पकाने के मामले में स्वावलम्बन को बढावा देंगें। बाहर से खाना मंगाने में गिरावट आ सकती है। मांसाहार में भी कमी आ सकती है।

अब लोग अपने स्वास्थय के प्रति ज्यादा जागरुक और सचेत होंगे। जिनकी इम्युनिटी जितनी अधिक होगी वह उतना ही मजबूत माना जायेगा। अगर कोरोना की दवा आ भी जाती है तो कोरोना के प्रति जो डर लोगों में बैठा है वह जल्द नहीं जाने वाला।अब छींक खांसी को भी गम्भीरता से लिया जायेगा तथा हाथ मिलाने,गले लगने के चलन में भी कमी आयेगी। सम्भवत: अटेच्ड बाथरुम का भी चलन समाप्त हो जाये।यह संकट क्वारेन्टाईन को तबज्जो देगा तथा अनावश्यक यात्रा को प्रतिबंधित करेगा।

इस संकट ने हमें यह बताया है कि हमें ऐसी शिक्षा चाहिये जो बच्चों और युवाओं को समाज तथा अपने स्थानीय परिवेश से जोड़े। समाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक विसंगतियों में सुधार के लिये नेतृत्व लेने की क्षमता विकसित करे। इस शिक्षा व्यवस्था में कुछ आधारभूत मूल्यों को अपनाया जाना जरुरी है।सहानुभूति,न्याय,समानता और बंधुता वर्तमान शिक्षा पद्धति में इन मूल्यों का कोई वजूद नहीं है।

सम्भवत: एक और क्षेत्र में बदलाव आ सकता है और वह है,,,वर्क फ्रॉम होम।आज लॉक डाउन में बहुत सारे लोग जो बिजनेस या जॉब में हैं वे घर से काम कर रहे हैं। इससे ये फायदा हो रहा है कि समय का सदुपयोग भी हो रहा है और एक नये फंडे का तजुर्बा भी हो रहा है। यह भी सम्भव है कि हालात सुधार जाने के बाद भी कम्पनियां वर्क फ्रॉम होम को अपने लिये बेहतर माँ कर प्रमोट करने लगे। इसलिये लोगो को अपने घर में काम करने के लिये कामकाज को एक तरतीब देना पड़ेगा और अपने लिये एक पर्सनल स्पेस भी। इससे बहुत लाभ भी होगा। ऑफिस आने जाने में वक्त की बचत पैसों की बचत होगी और पेट्रोल आदि खर्च में कमी आयेगी।

आज हमारी जिन्दगी के नये हीरो स्वास्थ्यकर्मी,पुलिस,सफाईकर्मी,डॉक्टर,,, जो दुनिया को चालू रखे हुए हैं, कोरोना से लड़ रहे हैं और समाज को स्वास्थ्य की ओर ले जाने के लिये अग्रसर और कृतसंकल्प हैं उनके प्रति लोगों की सोच और व्यवहार में परिवर्तन आयेगा। हम इन्हें सम्मान देने की ओर अग्रसर होंगे।

शादियों एवं अन्य आयोजनों पर स्वत: रोक लगेगी। उसे कम से कम स्तर पर पूरा करने की कोशिश की जायेगी।भीड़ एवं कोरोना वायरस की उपस्थिति सदैव चिंता का विषय रहेगी। हो सकता है कि महामारी की अपेक्षा अवसाद और भुखमरी से मृत्युदर बढ़ जाये।
आइसोलेशन और लॉक डाउन बहुतों में अवसाद को बढ़ा सकता है। ऐसी स्थिति में उन्हें अपना मानसिक संतुलन और निरोग बनाये रखने में घर परिवार और परिवेश की सहभागिता की अत्यंत आवश्यकता होगी।

रोज़गार-व्यवसाय में बदलाव–

परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि बहुत सारे व्यवसाय का अंत हो सकता है और कई नये व्यवसाय पनप सकते हैं। होटल एवं टूरिज़्म व्यवसाय बन्द होने के कगार पर हो सकता है। कई लोग बेरोजगार हो जायेंगे। उद्यम कि अपेक्षा कृषि,पशुपालन आजीविका का मुख्य साधन हो सकता है।

अब हमेशा यह विचार मन में आता रहता है कि अब पहले सी स्थिति कभी नहीं होगी। इसलिये बहुत विचार आ रहे हैं। हमारी मानसिकता में जो एक प्रतिस्पर्धा की भावना भर गई थी,वह बाहर होगी। जीवन में जो आंधी दौड़ चल रही थी उसपर विराम लग सकता है। भौतिक जीवन जीने की आदत कुछ हद तक कम होगी। जीवन को धीमा करने और आप जिन्हें प्रेम करते हैं उनके साथ समय बिताने का मूल्य,बहुत बड़ी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं की निरर्थकता, हमारी जिन्दगी में संवेदना का महत्व, उपभोग घटाने की शोभा और यह ज्ञान होना कि अंत में सिर्फ अनिवार्य चीजों की ही आवश्यकता है। आज सचमुच अहसास हो गया है कि जितने में अब हम गुजारा कर रहे हैं असल में जिन्दगी में इतने की ही जरुरत थी जो हम नहीं समझ पा रहे थे। पर आज कुदरत हमें समझा रही है। हम प्रकृति की ओर जितने लौटेंगे हमारा पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होगा। नदियाँ,सागर,झरने निर्मल होंगे तो जीव जन्तु स्वच्छंद विचरण करेंगे। प्राकृतिक रुप से जनसंख्या नियंत्रण होगा जो मानव जाती के लिये सबसे बड़ा सबक होगा कि ईश्वर ने हमें तो धरती पर किरायेदार बना कर भेजा था, हम तो मालिक ही बन बैठे थे।

एक संदेह यह भी है कि आज जो हम ऐसा सोच रहे हैं कि बदलाव आ गया है,,,पर जब सब कुछ नॉर्मल हो जायेगा तब शायद हम सब भूल जायें। जिन्दगी फिर उसी तरह पटरी पर चलने लगेगी। लेकिन फिर भी इस समय हमने जो सबक सीखा है,उन्हें यह सब जरुर याद रखना चाहिये। विश्वास है हममें वृद्धिपरक परिवर्तन होंगे।जो धीरे धीरे पूरी दुनिया में नज़र आयेंगे। आखिर यह जीवन बदलने वाली घटना है, इसे हम नकार नहीं सकते हैं। ऐसी उम्मीद है कि ये सभी विचार और मूल्य, यह सब खत्म होने के, बाद भी रहेंगे। यह वायरस चीन ने बनाया या प्राकृतिक रुप से आया, जो भी हुआ हो, प्रभु ने तो अपना माया का जलवा दिखा ही दिया है।

अनिता निधि
साहित्यकार
जमशेदपुर,झारखंड

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