हिन्दी मेरी हिन्दी………हिन्दी से हिंदी तक।।।।।।

हिन्दी मेरी हिन्दी………हिन्दी से हिंदी तक।।।।।।

देश स्वतंत्र नहीं था तो लोगों के हृदय में राष्ट्र जागरण की भावनाएं हिलोर मारती थी लोग हिन्दी के प्रति समर्पित थे केवल वे परिवार ही जो या तो अंग्रेजों के पिट्ठू थे या अंग्रेजों के द्वारा कराई गई कमाई से मोटे हुए जा रहे थे अंग्रेज़ी पढ़ते थे अन्यथा हिन्दी माध्यम सर्वग्राह्य था। तब हम अ के अनपढ़ से ज्ञ के ज्ञानी तक वर्णमाला स्वीकार करते थे । अब हम मॉडर्न हो गए हैं हमारी संस्कृति और हमारी भाषा अब जाकर गुलाम हुई है हमे मैकाले ने नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा पद्धति ने बर्बाद किया है अब हम ज्ञानी नहीं बल्कि अ के अनपढ़ से लेकर श्र के श्रोता बन कर रह गए हैं । आज इतने मॉडर्न हो गए हैं कि हजारों साल की अपनी संस्कृति को धता बता कर हम बिंदी और नुक्ते का प्रयोग करने लगे हैं सरकारी आदेशानुसार। हमारी हिन्दी अब हिंदी हो गयी है और शान से कहते हैं हिंदी की बिंदी। कितने लोग जानते हैं किन वर्णों पर बिंदी कैसे लगनी चाहिए।

विश्व में 212 देश हैं जिनमे मात्र 57 देश हैं जहां अंग्रेज़ी बोली जाती है उनमें भी 55 देश राष्ट्रमंडल के हैं जो कभी ब्रिटेन की रानी के अधीन थे। हम में एकता नहीं है हम स्थानीय भाषा के झगड़े में मूल भाषा को क्षति पहुंचा रहे हैं। हमसे पूछता है कि आपकी भाषा क्या है तो कहते है भोजपुरी है, अवधि है, मारवाड़ी है, ढूंढाड़ी है इत्यादि इत्यादि इस लिए गिनती में हम 80-90 करोड़ होकर भी 30 करोड़ हैं और यही कारण है कि देश में हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बन पा रही और न ही संयुक्त राज्य की आधिकारिक भाषा जबकि 11 करोड़ के रूसियों की भाषा आधिकारिक भाषा है।
कल की ही घटना है उच्च न्यायालय के न्यायधीश महोदय ने कहा हिंदी में दिए वक्त्तव्य मान्य नहीं , क्योंकि कोर्ट की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। हम कितने दिन और गुलाम रहेंगे , क्या यह सब सुन कर आप सब के रक्त में उबाल नहीं आता, क्या हम शर्मिंदा नहीं होते जब हमारे बच्चे पूछते हैं उनहत्तर क्या होता है।
हिन्दी दिवस पर एक दिवसीय प्रशंसा मात्र से हिंदी का कुछ भविष्य नहीं सुधरने वाला अधिकांश लोग तो सोशल मीडिया में अपना नाम तक अंग्रेज़ी में लिखते हैं।

हिंदी की बात करने वाले जब तक पहल अपने से नहीं करते तब तक कुछ नहीं होने वाला।

संधान है, भारत की शान है, ज्ञान है, विज्ञान है हिन्दी
छंद है निबंध है, गीत है, हिन्द का अभिमान है हिन्दी
कलकल झरनों की झंकार’ वेद सुरों का गान है हिन्दी
दिनकर, गुप्त, निराला, प्रसाद में विद्यमान है हिन्दी

नमन है, वंदन है, अवगुंठन है अभिव्यंजन है हिन्दी
गुरु मनीषियों की साहित्यिक विधा का मंथन है हिन्दी
एक सौ चालीस करोड़ जन का मैत्री बंधन है हिन्दी
संस्कृत परिधा और मानसिकता का अनुकम्पन है हिन्दी

सुरेश चौधरी ‘इंदु’
कोलकाता, भारत

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