बस इतना सा

बस इतना सा

नाम – सीमा भाटिया

जन्मतिथि – 5 फरवरी, 1969

शिक्षा – स्नातकोत्तर (हिन्दी)

लेखन की विधाएँ – गद्य और पद्य दोनों में

प्रकाशित पुस्तकें – सांझा संग्रह_ संदल सुगंध, लम्हों से लफ्ज़ों तक, सहोदरी सोपान, अल्फाज़ ए एहसास (काव्य संग्रह)

सफर संवेदनाओं का,आसपास से गुजरते हुए, लघुतम-महत्तम, सहोदरी लघुकथा २, लघुकथा कलश, समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएं और समय की दस्तक ( लघुकथा संग्रह)

शुभ तारिका, सत्य की मशाल, स्वर्णवाणी ,नूतन कहानियां, प्रखर गूंज, कलमकार जैसी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन

पुरस्कार/सम्मान – “शुभतारिका”पत्रिका में मेरी कहानी “सात वचन” को 2017 में तृतीय पुरस्कार

वर्तमान में महिला काव्य मंच लुधियाना इकाई में महासचिव और गृहस्वामिनी में पंजाब एम्बेसडर के रूप में कार्यरत हूँ।

जीवन की अधखुली किताब से अधखुले पन्ने जीवन के अर्धशतक तक पहुंचते पहुंचते जाने कब बेकरार हो उठे शब्दों का रूप लेकर एहसासों रूपी मोतियों की माला बनकर और फिर बिखरने लगे मेरी रचनाओं का रूप लेकर फेसबुक की वाल से होते हुए पत्र पत्रिकाओं में…यही मेरे सारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मैं सीमा भाटिया, लुधियाना से.. बचपन बहुत सीधे सरल सहज तरीके से बीता। पुस्तकों से असीम प्यार रखने के कारण स्कूल कॉलेज में पढ़ाई में निसंदेह बहुत अच्छी रही। पंजाब स्कूल शिक्षा विभाग से दसवीं और ग्यारहवीं की परीक्षा में उच्च प्रथम श्रेणी में पास होने के बाद कॉलेज में अंग्रेजी आवश्यक विषय के साथ हिंदी और संस्कृत भाषा को अध्ययन के लिए चुना। प्रथम वर्ष में ही ८२ प्रतिशत अंकों के साथ पंजाब विश्वविद्यालय में तीसरा स्थान प्राप्त किया। उसके बाद हिंदी आनर्स में दोनों साल विश्वविद्यालय में पहला स्थान मिला। चूंकि किताबी कीड़ा थी, इसलिए अन्य गतिविधियों में शिरकत न के बराबर थी। हां, एन एस एस के कैंपों में अवश्य शिरकत की।

जीवन में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब बी ए अंतिम वर्ष खत्म होते होते ही मेरी शादी हो गई और घर गृहस्थी की जिम्मेदारियां सिर पर पड़ते ही सब कुछ बदल गया। हां ससुराल वालों की सहमति से मैंने पत्राचार के माध्यम से हिंदी में स्नातकोत्तर स्तर तक अपनी शिक्षा जरूर पूरी कर ली थी। दोनों ही साल विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल करने के बावजूद आगे और बढ़ने के रास्ते रुक गए थे क्योंकि इस बीच मैं एक बेटे की माँ बन चुकी थी और दूसरी बार फिर उम्मीद से थी। पच्चीस साल की उम्र में, जहां आजकल लड़कियां पढ़ लिख कर अपने करियर बनाने की ओर प्रयासरत होती हैं, मैं तीन बच्चों के साथ अपनी घर गृहस्थी और अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझने में व्यस्त थी। तीनों बच्चों को अच्छे संस्कार और उच्च शिक्षा दिलाना ही अब मेरी प्राथमिकता थी।

अपने कर्तव्यों और कुछ पारिवारिक उलझनों में जीवन के बहुत सारे साल होम कर दिए। ये तो दोनों बड़े बच्चों के उच्च शिक्षा के लिए दूसरे शहर में चले जाने के बाद अपने जीवन में थोड़ा ठहराव आने पर मैंने आज से लगभग छह साल पहले फेसबुक पर अपनी बेटी द्वारा बनाई आई डी को इस्तेमाल किया और कुछ साहित्यिक मंचों से जुड़ी। यहां पर भी आना और अपना एक मुकाम बनाना कोई सरल काम नहीं था, पर बरसों पहले का अध्ययन का शौक मेरे बहुत काम आया। साहित्यिक समूहों की गुटबाजी और कुछ स्वार्थी लोगों की मित्रता ने जीवन के कुछ नए सबक भी सिखाए। कुछ विधाओं को भी सीखा, और अपने साधारण से शब्दों को कविताओं में ढालने का प्रयास किया। धीरे धीरे कविता, लघुकथा, कहानी और आलेख..इन सब में अपनी कलम चलाई। बहुत सी साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं छपने लगी और कुछ सांझा संग्रहों में भी स्थान मिला। प्रसिद्ध पत्रिका शुभ तारिका में मेरी कहानी “सात वचन” को २०१७ का तृतीय पुरस्कार भी हासिल हु्आ। देश में विविध स्थानों पर हुए साहित्यिक समारोहों में भी शिरकत करने और बहुत कुछ सीखने का सुअवसर मिला है।बहुत से साहित्यिक समूहों से जुड़ी और कुछ प्रतियोगिताओं में प्रशस्ति-पत्र भी प्राप्त हुए। महिला काव्य मंच (रजि.) लुधियाना इकाई में मैं महासचिव के पद पर चयनित हूँ और अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रिका गृहस्वामिनी में भी पंजाब की एम्बेसडर होने का गौरव मुझे प्राप्त हुआ है। बहुत ज्यादा उपलब्धियां तो मेरे हिस्से में नहीं हैं, पर एक गृहिणी से आगे बढ़कर एक अच्छी माँ और अब एक रचनाकार के रूप में अपनी एक पहचान बना लेना ही मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।



सीमा भाटिया

साहित्यकार
लुधियाना, पंजाब

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