मज़दूर की बेटी 

मज़दूर की बेटी

विनायक अंकल आप मेरे पापा बनोगे?
शैली के अप्रत्याशित सवाल से बुरी तरह से हड़बड़ा गए थे विनायक जी
अरे बेटा मै तुम्हारे पिता जैसा ही हूँ ख़ुद को संयत करते हुए विनायक जी ने ज़वाब दिया।
पिता जैसा होने में और पिता होने में काफ़ी फर्क़ होता है अंकल शैली की आग्रह अब जिद्द का रूप ले रही थी। क्या मेरी माँ मे कुछ कमी है, क्या मेरी माँ आपके जीवन संगिनी बनने के काबिल नहीं?
वो बात नहीं है बेटा, तुम्हारी माँ बहुत अच्छी है, हम दोनों इन दो सालों में एक दूसरे को बहुत क़रीब से और अच्छे से जानने भी लगे हैं, मेरे मन में एक बार ऐ बात आई भी थी, जब तुम्हारी माँ ने बताया कि उम्र भर माँ को साथ रखने के ख़ातिर तुमने अविवाहित रहने का फ़ैसला किया है तब मैं तुम्हारी माँ के सामने ऐ प्रस्ताव रखने की बात सोचा लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया। ….. मुझे कोई एतराज नही है, मेरे जीवन में उनका आना हम दोनों के जीवन को पूर्णता देगी लेकिन…… क्या तुम्हारी माँ, और दोनों भाई इस उम्र में इस रिश्ते के लिए इतनी ही सहजता से राज़ी होंगे ?
आप हाँ कहिए अंकल माँ को मनाना मेरी जिम्मेदारी है, शैली ख़ुशी से झूमते हुए बोली।

शैली बेटे! अचानक तुम्हें हमारी शादी करने की बात क्यूँ सूझी?कहीं तुम अपनी माँ की शादी सिर्फ़ इसलिए तो नहीं करवा रही कि तुम इस जिम्मेदारी से मुक्त हो कर स्वयं की गृहस्थी बसा सको?
अचानक नहीं अंकल! जब से माँ आपसे मिली है तब से इतनी ख़ुश रहने लगी जितनी पिछले 22 सालों में कभी नहीं देखी, हर वक्त उत्साह और ऊर्जा से भरी रहती है, जैसे आपसे मिलकर उनके जीवन का अधूरापन ख़त्म हो गया हो…… मै सिर्फ और सिर्फ़ अपनी माँ को ख़ुश देखना चाहती हूँ, शादी के सात साल बाद ही पापा के चले जाने से, माँ वैधव्य और एकाकी जीवन को ढो रही है कह कर शैली चुप हो जाती है,और गहरी सोच मे डूब जाती है……
घर आकर अपने दोनों भाइयों और भाभियों को फ़ोन करती है कि माँ के बारे में कुछ बहुत जरूरी बात करनी है आप सब यहाँ आ जाइए।अगले रविवार को ही एकत्रित होने की बात तय हुई।
रविवार के दिन सब लोग एकत्रित हुए ऐसी क्या बात हो गई जो तुम फ़ोन पर नही बता सकती थी? बड़े भाई ने चाय की चुस्की लेते हुए शैली से पूछा, भैया मै माँ की शादी करवाना चाहती हूँ, शैली बड़ी सहजता से बोली, क्या!!!! सभी लोग एक साथ चौके,…. पागल हो गई है तू, इस उम्र में माँ की शादी, माँ ने उन मुश्किल हालातों में अकेली सब झेल कर हमारी परवरिश की तब उन्हें किसी की साथ की जरूरत नहीं थी तो अब इस बुढ़ापे में? लोग क्या कहेंगे, समाज में क्या इज्जत रह जाएगीहमारी? कहाँ मुहँ छूपाएंगे हम लोग..?
आप भी किनकी बातों मे आ रहे हैं भैया छोटे और गिरे हुए लोंगो की सोच भी वैसे ही होती है….. है तो आख़िर मज़दूर और छोटी जाती वाले की ही बेटी….. हिकारत भरी नजरों से देखते हुए छोटे भाई ने कहा, अब विनायक अंकल बुरी तरह चौके शैली मज़दूर की बेटी…… पर उन लोंगो को बीच में टोकना उचित नहीं समझा, शांत बैठे रहे।
इस लड़की की तो छोड़ो, लेकिन माँ जी आप कैसे इसके पागलपन में शामिल हो सकती है? मुझे बहुत हैरानी हो रही है क्या आप समझ भी पा रही है?इस मजदूर की बेटी की साजिश बड़ी बहू ने सवाल दागा?
शैली की माँ जो अब तक सर झुकाए शांत बैठी सबकी बात सुन रही थी ने बोलना शुरू किया,
समझ रही हूँ बहू बहुत अच्छी तरह से समझ रही हूँ, मेरे कोख की पैदाइश मेरे दोनों अफसर बेटे,ऊँचे खानदान से आई तुम दोनों बहुएं की सोंच से इस मज़दूर की बेटी की सोच भला कैसे मेल खा सकती है….?

हाँ अभी कुछ दिनो पहले ही इनकी साज़िश का भी पता चल गया है ऐ लड़की बहुत स्वार्थी है, जब तुम्हारी शादी के बाद तुम लोग इतने व्यस्त हो गए कि तुम लोंगो को फ़ोन पर भी मेरी खैरियत जानने की फुर्सत नहीं थी, कितने बार बीमार हुई, घुटन भरने लगी जिंदगी में तुम लोंगो की बेपरवाही, तोड़ने लगी मुझे अंदर ही अंदर, तो इस लड़की से देखा नहीं गया, और गाँव से अपने पास यहाँ ले आई, क्यूँकि तुम्हारी हरकतों से इनको विश्वास हो गया था कि मेरे लिए तुम्हारे घर, तुम्हारे जीवन, और तुम्हारें मन में कोई जगह नहीं है। और इसीलिये शायद मेरी शादी भी करवा रही कि बुढ़ापा सुरक्षित हांथों में देकर, चैन से मर सके ऐ स्वार्थी लड़की, क्या……. विनायक जी की चीख़ निकल गई और शैली की रुलाई फुट पड़ी, माँ का भी गला भर आया था लेकिन वो बोलती रही, हाँ विनायक जी मेरी शैली को छोटी आंत में केंसर हो गया और ………. रुंध गया गला कुछ देर बाद खुद को सामान्य करते हुए बोली हाँ विनायक जी एक बात और नही बताई थी आपको शैली को मैंने जन्म नहीं दिया है ऐ हमारे खेतों में काम करने वाले गंगाराम की बेटी है,एक शाम शैली की शौचालय के लिए गई थी तो कुछ लोंगो ने सामुहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी तब शैली तीन साल की थी, कुछ महीने बाद ही इसके पिता ने दूसरी शादी कर ली, उसके बाद जो इनकी दुर्गति हुई बता नहीं सकती….. इनकी हालत देख मेरे पति अपने घर ले आए और तब से इस लड़की ने आज तक एहसास नहीं होने दिया कि मैंने इनको जन्म नहीं दिया हो……. दूर खड़ी शैली दौड़ कर माँ से लिपट गई और फुट फुट कर रोने लगी……..

 

अनिता वर्मा

वरिष्ठ साहित्यकार

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