शिक्षा का लॉकडाउन
विश्व व्यापी महामारी कोरोना का समाज के विभिन्न वर्गों पर असर हो रहा है।व्यापारी, उद्योगपति,डॉक्टर,इंजीनियर,अमीर ,गरीब ,हिंदू मुसलमान, सिख पठान , तथा उनके परिवार के लोग सभी इस छूत की बीमारी से परेशान हैं। त्राहिमाम मचा कर रखा है इस एक छोटे से कोरोना जीटाणु ने । विश्व के कई देशों में हाहाकर मचा हुआ हैं। घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।अति आवश्यक कार्य सेवा ही उपलब्ध हैं । दवा ,डॉक्टर ,फल ,सब्ज़ी के अलावा दूसरे देशों की तरह सभी मॉल, सिनेमा -घर , होटल , कार्यालय, संस्थाएँ बंद कर दिए गए हमारे देश भारत में ।ऐसे में कई देशों के शिक्षण संस्थानों को भी बंद कर दिया गया है जैसे जैसे स्थिति सुधरती जा रही है वैसे वैसे सुविधा बढ़ा दी जा रही है । धीरे धीरे जीवन सामान्य हो रहा है, लेकिन शिक्षण संस्थाओं की तरफ़ अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा ।
उच्च शिक्षा हो या प्राथमिक , या माध्यमिक लगभग सभी विद्यालयों और विश्व विद्यालयों में ताले लगे हैं । जब सरकार की नींद खुली तब ऑनलाइन कक्षाओं का फ़रमान जारी कर दिया गया । ठीक वैसे ही जैसे जब दिहाड़ी मज़दूर अपने अपने गाँव के लिए निकल पड़े तब सरकार ने सुध ली और लाखों मज़दूरों को रोका गया। जिस तरह देश की अर्थ व्यवस्था में मज़दूर, किसान से लेकर उद्योगपतियों तक का योगदान है उसी प्रकार शिक्षकों का भी अमूल्य योगदान है यह याद दिलाए जाने पर कुछ सुगबगाहट शिक्षा के गलियारे में भी सुनी गयी और तब जैसे आदेशों की झड़ी लग गयी।
सरकारी और ग़ैर सरकारी विद्यालयों में जहाँ किताबों का वितरण नहीं हुआ था, जहाँ नामांकन की प्रक्रिया पूरी नहीं की गयी थी , जहाँ परीक्षाएँ अचानक स्थगित कर दी गयीं थीं , जहाँ किसी को तनख़्वाह नहीं दी गयी थी वहाँ यह फ़रमान जारी कर दिया गया कि कल से अद्धययन अध्यापन बन्द यानी कि शिक्षा का लॉकडाउन! जहाँ बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए मिड डे मील योजना चलायी जाती है , जहाँ स्कूल यूनिफ़ोर्म और साईकल का प्रलोभन देकर विद्यार्थियों को विद्यालय तक लाया जाता है वहाँ क्या ऑनलाइन क्लास सम्भव हैं ? क्या जिन सरकारी शिक्षकों को बिना पढ़ाए लिखाए पैसे लेने में कोई ग्लानि नहीं होती उनसे हम यह उम्मीद करें कि घर बैठ कर पूरी निष्ठा से वे बच्चों की ऑनलाइन क्लास लेंगे ? विद्यार्थियों को ठीक से नाम से नहीं पुकारा और खिचड़ी बनाते और बाँटते रहे उनसे ऑनलाइन कक्षा की तैयारी करके पढ़ाने की उम्मीद की जा सकती है? जिन गरीब परिवारों के बच्चे सिर्फ़ पेट भरने के लिए विद्यालय में दाख़िला लेते हैं वे क्या स्मार्ट क्लास में विद्या ग्रहण करने आएँगे? जिन गाँवो में बिजली पानी की भी आधारभूत सुविधा उपलब्ध नहीं उन गाँव में नेटवर्क मिल जाना और सब के पास स्मार्ट फ़ोन होने की बात कल्पना से परे है । सरकार कह रही है कि जिन स्कूलों में किताबें उपलब्ध नहीं हो पायीं हैं उन्हें ट्यूब के ज़रिए शिक्षण सामग्री उपलब्ध करायी जाएगी। हंसी आती है ऐसे अव्यवहारिक बात कैसे सोच लेते हैं।
कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी लगभग स्थिति यही हैं। नगरों की समस्या मोबाइल की नहीं। अधिकांश छात्रों के पास मोबाइल है पर उस मोबाइल का सोशल मीडिया और इंटरनेट ब्राउज़िंग के अलावा कक्षा शिक्षण में भी प्रयोग हो सकता है यह कम लोगों को पता है । पता होता तो १४- १५ साल के दिल्ली के बच्चें लॉकर रूम में अपनी ही कक्षा की लड़कियों के रेप की साज़िश नहीं बना रहें होतें । महाविद्यालय की ऑनलाइन कक्षा में बाहरी लड़के प्रोफ़ेसर को अपशब्द कहने के लिए नहीं जुड़ते। कैसी शिक्षा की बात हम कर रहे हैं ? क्या केवल पुस्तकीय ज्ञान कॉलेज की चारदीवारी के अंदर बैठ कर देना ही शिक्षा है? क्या ब्लैक बोर्ड बेंच किताब के बिना गुरु से ज्ञान नहीं मिल सकता? कोचिंग इंस्टिचयूट और ट्यूटोरियल कक्षा में पढ़ कर नौकरी प्राप्त कर शिक्षा की इति श्री करने वाले छात्र और लाखों लेकर पीएचडी की डिग्री दिलाने वाले शिक्षक दोनो ही भारतीय शिक्षा व्यवस्था की उपज हैं।
इस कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने कई शिक्षितों के चेहरे पर से झूठ ,फ़रेब, बेमानी, चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार के नक़ाब उतार कर रख दिया है। लॉकडाउन में जो सचमुच कर्तव्यनिष्ठ ,सच्चा और ईमानदार शिक्षक है वही घर में रह कर अपने राष्ट्र और अपने छात्र की चिंता कर रहा हैं। उसे ना तो अपनी मासिक पगा़र की फ़िक्र है ना महंगाई की। उसे बस अपने छात्रों के भविष्य की चिंता है जिनको गढ़ने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ उसकी हैं । योगनिष्ठ वह येन केन प्रकेरण अपने सीमित संसाधनों से उन नौनिहालों की चिंता कर आँसू बहाता है कि कहीं उनके दिमाग़ का भी लॉकडाउन ना हो जाए। सारी अर्थव्यवस्था देर सबेर सुधर जाएगी, रेल पुनः पटरी पर दौड़ेगी, लेकिन बच्चों के दिमाग का यदि तीन महीने में लॉकडाउन हुआ तो प्राथमिक से लेकर विश्व विद्यालय तक की शिक्षा लॉक हो जाएगी और उस ताले को खोल पाना असम्भव हो जाएगा। एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा प्रभावित होगी जिसे सुव्यवस्थित कर ,सुचारु रूप से चला पाना किसी भी देश की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। कोरोना ने समाज की आंखें खोल दी है,समाज के हर वर्ग को समझ में आ गया है कि भौतिकतावादी संस्कृति नहीं बल्कि पारंपरिक मूल्यों पर आधारित अपनी भारतीय संस्कृति अपनाना ही श्रेयस्कर होगा..। पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ मैं शामिल युवा पीढ़ी के भी आंखों से पर्दा हट गया है । अब उन्हें भी समझ में आ गया कि फास्ट फूड और मॉल संस्कृति के बिना भी जीवन जिया जा सकता है। लेकिन जैसे सूर्य और चांद के बिना दिन और रात की कल्पना नहीं की जा सकती उसी प्रकार शिक्षकों के बिना किसी भी समाज की नीव नहीं रखी जा सकती । देश के सभी बड़ी यूनिवर्सिटी में ऑनलाइन कोर्स शुरू करने की घोषणा सरकार ने की है । ई शिक्षण का नया दौर शुरू हो रहा है जिसमें दूरदर्शन डिजिटल शिक्षा के माध्यम से पूरे देश को एक इकाई बनाया जा सकता है। हर व्यक्ति को अब यह समझ लेना चाहिए तकनीकी शिक्षा या डिजिटल शिक्षा का कोई विकल्प नहीं । आईआईटी , आई आई एम, और राष्ट्रीय स्तर के निजी विश्वविद्यालयों में इसकी अनिवार्यता आवश्यक है । कोविद 19 में जिस तरह के भावनात्मक डर और मानसिक दबाव से हम सब गुजर रहे हैं कि जल्द ही एक नया पाठ्यक्रम , नया विषय स्कूलों में शुरू किया जाना चाहिए जिससे बच्चे अपने स्ट्रेस से बचने का उपाय ढूंढ सकें। मनोवैज्ञानिक शिक्षा पर भी फोकस करना होगा । इस अनिश्चितता के दौर में जब कोई भी निश्चिंत नहीं रह सकता एक शिक्षक ही है जो शैक्षणिक वातावरण तैयार कर ,आपके बच्चों के भविष्य को संवार कर, उन्हें और आपको सुखद भविष्य का आश्वासन दे सकता है । शिक्षा ही एकमात्र निवेश है जहां आपकी पूंजी सुरक्षित रहेंगी।
डॉ जूही समर्पिता
प्राचार्या,डीबीएमएस कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन
जमशेदपुर,झारखंड