शीतला अष्टमी

शीतला अष्टमी

शीतला अष्टमी का उल्लेख स्कंदपुराण में मिलता है.

शीतला माता की उपासना का मुख्य पर्व शीतला अष्टमी है. शीतला अष्टमी का पर्व चैत्र मास की कृष्णपक्ष की अष्ठमी को यह त्योहार मनाया जाता है. इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल को है. होली के बाद इसे मनाया जाता है. इस दिन शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है. शीतला अष्टमी के दिन घर में बासी खाना खाने का रिवाज होता है इसे बासौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. शीतला अष्टमी के एक दिन पहले खाना बनाकर तैयार कर लिया जाता है. बासोड़ा के दिन लोग घरों में चूल्हा नहीं जलाते हैं . शीतला माता को भी बासी खाने का ही भोग लगाया जाता है. अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है.

शीतला माता और बसौड़ा पर्व

होलिका दहन के ठीक एक सप्ताह बाद “बसौड़ा ” अधिकतर उत्तर प्रदेश,राजस्थान, हरियाणा में मनाया जाता, जिसमे शीतला मां की पूजा होती हैं।
इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है. ये कष्ट-रोग हरने वाली होती हैं. इनकी सवारी गधे की है और हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते लिए रखती है. गधे की सवारी पर यह अभय मुद्रा में विराजमान होती हैं. मां शीतला के हाथ में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई और समृद्धि का सूचक हैं. माता शीतला को शीतल जल और बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है. इसी के कारण इसे बसौड़ा भी कहते हैं. इन्हें चांदी का चौकोर टुकड़ा भी अर्पित करते हैं जिस पर इनकी छवि को उकेरा गया हो. शीतला माता को चेचक और चिकन पॉक्स जैसे रोगों की देवी माना गया है।

शीतलाष्ठमी की पूजन तिथि अपने परिवार के मुताबिक मनाई जाती है।मां का भव्य मंदिर गुड़गांव में स्थित है। जहां बच्चों के मुंडन संस्कार भी किएं जाते हैं।

शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावल का भोग चढ़ाया जाता है. ये चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. इन्हें सप्तमी की रात को बनाया जाता है. इसी प्रसाद को घर में सभी सदस्यों को खिलाया जाता है.शीतला अष्टमी के दिन घर में नई मटकी रखने की भी प्रथा होती है.प्रत्येक मौसम के बदलाव के पीछे भारतीय संस्कृति का अनूठा संबंध चला आ रहा है, शीतला अष्ठमी का वैज्ञानिक आधार भी है ।चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि रोगों के संक्रमण से आम व्यक्ति को बचाने के लिए शीतला अष्ठमी मनाई जाती है. इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं. इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. अगर इस दिन के बाद भी बासी भोजन किया जाए तो स्वस्थ्य संबंधित समस्याएं आ सकती है. यह पर्व गर्मी के मौसम में आता है. गर्मी के मौसम में आपको साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायटिक गुणों से युक्त नीम का विशेष प्रयोग करना चाहिए.

शीतला माता की पूजन विधि कुछ यूं होती है

पूजा की थाली तैयार कर सभी छोटे बच्चें , बहुएं नए या शादी के परिधान में घर से निकलती है। थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें अपनी श्रद्धानुसार घर में पूजा करने के बाद अब मंदिर में पूजा कर के फिर माता के मंदिर जाकर पूजा में पहले माता को जल चढ़ा कर आटे से बना दिया, हल्दी, वस्त्र ,रोली, मौली ,सिक्के, मेंहदी ,प्रसाद व बड़कुले ( उपले) की माला व आटे के दीपक को बिना जलाए अर्पित करें।

माता को सभी चीज़े का भोग लगाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगा कर आशीर्वाद देने की प्रथा है।

विनी भटनागर
नई दिल्ली

0