‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ’
सावन के मौसम में बड़े पैमाने पर वर्षा होती है जिसे मानसून कहा जाता है. “मानसून में तीन अलग-अलग कारक शामिल होते हैं – हवा, जमीन और समुद्र। मानसून का वर्णन प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। ऋग्वेद और सिलप्पाधीकरम, गाथासप्तशती , अर्थशास्त्र, मेघदूत, हर्षचरित्र जैसे प्राचीन ग्रंथ हवाओं, बादलों और बारिश के विभिन्न रूपों को बयान करते हैं, इन से उत्पन्न प्राकृतिक घटनाओं को लोगों के सांस्कृतिक जीवन से जोड़ते हैं। वैदिक साहित्य में वाष्पीकरण और वर्षा चक्र का वर्णन है। मेंढक जिसे बारिश के आगमन का प्रतीक माना जाता है, उस पर वेदों में एक श्लोक भी समर्पित है, कि वर्षा ऋतु में मेंढक वेद सीखने वाले छात्रों की तरह है जो कोरस में आवाज करते हैं। संस्कृत कवि कालिदास ने अपनी कृति ‘मेघदूत’ में संदेशों को व्यक्त करने के लिए सावन के बादलों का उपयोग किया है। आधुनिक काल में महादेवी वर्मा अपनी कविता ‘मैं नीर भरी दुःख बदली’ में सावन के विरह की झलक दिखाई पड़ती है।
सावन- मानसूनी वर्षा में काले बादलों का आगमन आकाश में एक मोर के पंख के रंग की तरह दिखाई देने वाली पंक्तियों में उतरता है (इंद्रधनुषी रंग), तब मुझे विलियम वर्ड्सवर्थ की वो पंक्तियाँ याद आ गयी जो कभी मैंने स्कूल में पढ़ी थी ,’माई हार्ट लीप्स अप व्हेन आई सी ए रेनबो इन द स्काई’; सावन के आगमन की घोषणा करते हुए गरजते हुए, नम-भरी ठंडी-ठंडी हवाओं की बौछार होती है, इसकी शानदार धुनें देहात में और वनों में मोरों के नृत्य के साथ उनका स्वागत करती हैं। हालांकि, भारत में सावन एक वार्षिक विशेषता है उल्लास का प्रतीक है और, यह हर साल ताजा और सुगंधित दिखाई देता है, जैसे कि अपने साथी-झुलसी हुई पृथ्वी को अमृत में डुबो देती है. भारतीय फिल्मों में भी सावन को ले कर ‘ओ सजना बरखा बहार आयी रास की फुहार लायी’, सावन का महीना पवन करे शोर, अबकी साजन सावन में जैसे गाने मन को तरंगित कर देते हैं। सावन में सुख है, प्रसन्नता है, विरह है, आग है, भूख भी है, बेताबी भी है.
काव्य-विमर्श एक तरफ, भारतीय अर्थव्यवस्था सावन के मानसून पर निर्भर है, माना जाता है कि “भारतीय बजट मानसून पर एक जुआ है”. मानसून की बारिश को केलकर जैसे वैज्ञानिक उल्लेख करते हैं , जून-सितंबर से दक्षिण-पश्चिम मानसून और अक्टूबर- दिसंबर में उत्तर-पूर्व मानसून के रूप में बारिश कृषि के लिए उपदायी माना जाता है, और आज भी कृषि जो जीडीपी के पच्चीस प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है, रोजगार प्रदान करती है और देश की सत्तर प्रतिशत आबादी (कृषि) सिर्फ बारिश पर निर्भर है। कृषि पर निर्भर आबादी के बड़े हिस्से की क्रय शक्ति पर सूखे का अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, भारत के महत्वपूर्ण मैक्रोइकॉनॉमिक पहलू प्राचीन समय से ही मानसून से अत्याधिक प्रभावित होते रहें हैं।
भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वैश्विक जलवायु प्रणाली के एक महत्वपूर्ण घटक का प्रतिनिधित्व करता है, विशेष रूप से जून से सितंबर के ग्रीष्मकालीन मानसून महीनों के दौरान जल विज्ञान चक्र में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है जब भारतीय उपमहाद्वीप में भारी मात्रा में वर्षा होती है।भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून घनी आबादी वाले भारतीय उपमहाद्वीप कीसामाजिक-अर्थव्यवस्थाओं पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। विषम मानसून के मौसम में बहुत अधिक वर्षा से जुड़ी बाढ़ से व्यापक बुनियादी ढांचे की क्षति हो सकती है, और सामान्य वर्षा से नीचे के मौसम में फसल खराब हो सकती है और अकाल पड़ सकता है। मानवजनित कृत्यों से प्रेरित जलवायु परिवर्तन के तहत हम देखते है कि विश्व में अनचाही समस्याएं बिन बुलाये मेहमान की तरह बढ़ रही हैं।इसलिए हमें बदलते जलवायु को बेहतर ढंग से समझने के लिए विभिन्न मौसमी परिदृश्यों की संवेदनशीलता का आकलन करने और भारतीय मानसून की व्यापक समझ रखने की आवश्यकता है। हम हवाओं की गति से जुड़े जटिल कारकों को नहीं जानते हैं।मौसम विज्ञानियों की भविष्यवाणी का काम कठिन है और कई बार गलत हो जाती है तो हम सब मज़ाक उड़ाते हैं। मगर उनका विश्लेषण वैज्ञानिक तर्कों पर आधारित होता है. कई बार तेजी से बदलते मौसम का मिजाज़ समझने में आंकड़े गड़बड़ा जाते हैं और हालात ‘बरसे सावन भीगा आंचल’ जैसा हो जाता है। बारिश की खुशबू, वातावरण को नहला देती है और मन झूम उठता है, मगर कभी कभी यह आपात स्थिति भी पैदा कर देता है। उसके बावजूद भी सावन तो सावन है और उसमे बिहार के खीर पूड़ी का सुगंध कोई कैसे भूल सकता है. विज्ञान और अर्थव्यवस्था से परे मन गा उठता है- ‘सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ …तुम चले आओ’
विजय लक्ष्मी सिंह
इतिहास विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय