एक अलग सा सावन
अब के सावन बारिश कुछ अलग सी फुहार लेे आई है
बिरह से सींची बूंदों को बहने से अखियां न रोक पाई है
न खिल रही इन हाथो में मेहंदी की लाली
न दील के बगीचे में सजती कदंब की डाली
हरी चूड़ियां आजकल गुमसुम सी है रहती
न जाने उसकी खनक क्यों नहीं किसी से कुछ कहती
झूले में बैठे अक्सर भूल जाती हूं मै झूलना
मुड़ती पीछे तो तुम्हे ही ढूंढते है नैना
गाए थे जो मेघ मल्हार , गले में आकर थम जाता
मोर सा मन थिरकना छोड़ खो कहीं और जाता
घंटो रहती खड़ी खिड़की पे पलक बिछाए
तेरे लौटने की उम्मीद के आस दिल में सजाए
काली लंबी , गहरी रातें गुजरती करवटें बदलते
कांप उठती हूं आशंकाओं के बादल जब गरजते
खतरो की खबरों से सहसा मन आकुल हो उठता
बहुत मुश्किल से फिर व्याकुल मन है संभलता
पर हिम्मत अभी टूटी नहीं, क्योंकि तुम डटे हो सीना तान
किसी की भ्रुकुटी से क्या डरना जब सीमा पर हो मेरे वीर जवान
बस इन्तजार है , जब शत्रुओं को हरा कर तुम घर वापस आओगे
सोलह सृंगार कर झूम झूम हरियाली तीज मनाएंगे ।
पामेला घोष दत्ता
जमशेदपुर