बदला सावन
इस बार सावन,
कुछ बदला-बदला है।
ना उमंग है,ना तरंग है।
लागे सब देखो वेरंग है।
चारों ओर हाहाकार मचा है।
मुँह खोल बिकराल खड़ा है
इस बार सावन,
कुछ बदला बदला है।
बगियाँ फूलों से भरी,
पर सूनी-सूनी हैं।
ताल-तलैया तृप्त हुऐ,
पर प्यासी-प्यासी हैं।
इस बार सावन,
कुछ बदला-बदला हैं।
काले-काले बादल भी है।
झूम-झूम के बरस रहे हैं
धरती की प्यास बुझी है।
फिर भी अन्तर्मन प्यासा हैं।
इस बार सावन,
कुछ बदला-बदला हैं।
दादुर, मोर,पीहा बोले।
कोयल गीत सुनाती है।
झूम रही है बगियां।
पर मनमीत बेसुरा है।
इस बार सावन,
कुछ बदला-बदला है
हरे चुनर में लिपटी गोरी।
हरी हो रही धरती है।
महामारी से रक्तरंजित
युद्ध की तैयारी है।
इस बार सावन,
कुछ बदला-बदला है।
बादल की बूदें ना बरसे।
आंसू बन के छलक रही हैं।
अबकी सावन कैसा सावन।
मन क्यों भीगा-भीगा सा है।
इस बार सावन।
कुछ बदला-बदला है।
छाया प्रसाद
जमशेदपुर, झारखंड